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sandeepkalia1622
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Sandeep Kalia

अपनों-परायों की तो बात ही क्या मैंने खुद को भी दगा दिया है कहने को जिन्दगी मिली है मुझे पर मैंने मौत को ज्यादा जिया है!!

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Sandeep Kalia

मेरे गले लगकर  खिल जाती थी कभी तबियत जिसकी। 

गिनती करता है वो मेरी अब लाइलाज बीमारों में।।

उनके जाने का अब इतना अफसोस क्या करना।

जो पतझड़ गुजरते ही मिल जाएगा फिर बहारों में।।

वो यार जो यारी में भी देखते हैं  तिजारत।

नहीं मिलते हैं ऐसे लोग अक्सर खसारों में।।

दो कदम भी धूप में चल ना सका वो।

जो कहता था तेरे खातिर चल दूं अंगारों में।। 

जिसकी खातिर सजा रहा था वर्षों से घर को।

वो ही शख्स  मुझे दिखा सबसे आगे लुटेरों में।।

‘नायाब’ समझ कर सीने से लगाया जिसे उम्र भर।

बिक गया वो शख्स बहुत सस्ता बाजारों में।।

जो हुआ बहुत अच्छा हुआ तेरे साथ‘समर’।

फर्क तो समझा आखिर यारों और मक्कारों में।।

©Sandeep Kalia यारी और मक्कारी

#Sunrise

यारी और मक्कारी #Sunrise #शायरी

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Sandeep Kalia

मौत भी उस वक़्त खूब जोर से हंसती है
देखती है जब दवा से ज्यादा जिंदगी सस्ती है 

जिस बच्ची का नोचा हुआ जिस्म मिला है जहाँ 
कहते हैं वो पढ़े-लिखे सभ्य इंसानो की बस्ती है 

पहले देखा न था इन हमदर्दों को गरीब के घर
लगता है अब इस घर में बेटी जवान रहती है

चोरों को हर घर-गली का नक्शा दे रखा है 
सारा शहर सोचता है क्या महफ़ूज़ गश्ती है 

तुम चोर उच्चके हो तो चुनाव जीत भी सकते हो 
जनता बड़ी सयानी है यहाँ ईमानदारी पर सख्ती है 

जिस नेता ने घर जलाये थे कभी मजहब की आग में 
उसे देखकर लोग आज कहते हैं ये बड़ी हस्ती है हकीकत..

हकीकत.. #poem

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Sandeep Kalia

मौत भी उस वक़्त खूब जोर से हंसती है
देखती है जब दवा से ज्यादा जिंदगी सस्ती है 

जिस बच्ची का नोचा हुआ जिस्म मिला है जहाँ 
कहते हैं वो पढ़े-लिखे सभ्य इंसानो की बस्ती है 

उसने घर जलाये थे कभी मजहब की आग में 
जिसे देखकर लोग आज कहते हैं ये बड़ी हस्ती है

पूरी रात गुजार कर आया है मजे से जिस घर में 
सुबह थूकता है उसपे क्योंकि तवायफ की बस्ती है 

तुम चोर उच्चके हो तो चुनाव जीत भी सकते हो 
जनता बड़ी सयानी है यहाँ ईमानदारी पर सख्ती है भारत... का  ... हाल

भारत... का ... हाल #Shayari

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Sandeep Kalia

कुछ इस तरह से उसने मेरे ज़ख्मों पर मलहम लगाया
रो-रो कर हाल पूछा मेरा हँस हँस कर दुनिया को बताया! मलहम

मलहम #poem

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Sandeep Kalia

मुहब्बत थी बेशुमार कभी अंदाज-ए-कातिल बता रहा है

जान जा चुकी है मगर अब भी लाश पर खंजर चला रहा है बेशुमार मुहब्बत...

बेशुमार मुहब्बत... #Shayari

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Sandeep Kalia

कहां जरूरत थी चराग को तूफानों की
तेरे लबों से थोड़ी सी ग़र हवा दी होती.

तुम पर मरते हैं उन्हें भी जहर दे रहे हो
ये काम भी हो जाता ग़र दवा दी होती!! दवा ही जहर...

दवा ही जहर... #Shayari

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Sandeep Kalia

जब तू किसी राह चलती औरत को ताकता होगा! 
शायद तेरे अंदर का बलात्कारी बाहर झाँकता होगा!! बलात्कारी...

बलात्कारी... #Shayari

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Sandeep Kalia

शादी क्या हुई उस बेटी की जिंदगी विरान हो गयी

कल तक था जो खुद का घर वहीं मेहमान हो गयी बेटी..

बेटी.. #Shayari

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Sandeep Kalia

ऐसी उठी तेरी तलब जब भी निकला तेरे शहर से..
कि लाश कोई मुद्दतों से जैसे जनाजे को तरसे!! तेरी तलब...

तेरी तलब... #Shayari

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Sandeep Kalia

एक डांट पर सीना तान खड़ा हो गया है..

लगता है मेरा बेटा बड़ा हो गया है!!!!!
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