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आचार्य विजय गुंजन

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आचार्य विजय गुंजन

दीपमालिका से रहे , आलोकित संसार ।
रिद्धि-सिद्धि के देवता , लसें आप के द्वार ।। Nojetopatna#

Nojetopatna#

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आचार्य विजय गुंजन

🏵 कुण्डलिया 🏵
------------------------

हिन्दी की छोटी बहन , उर्दू बड़ी हसीन ।
नाज़ और नखरे बहुत , थोड़ी है नमकीन।।
थोड़ी है कमसीन सहज अति नटखट -भोली ।
आकर्षक मंजुल शब्दों से करे ठिठोली ।
कह गुंजन बहनें दोनों गंगा- कालिंदी ।
राज रहीं बिंदी बनकर है उर्दू-हिंदी ।।

                - आचार्य विजय गुंजन

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आचार्य विजय गुंजन

#2YearsOfNojoto  🏹 कुण्डलिया 🏹
🍇--------------🍇
मेरी नैनो इक दफ़ा , जिधर दृष्टि दे फेक ।
रणचण्डी की छवि विकट , क्षण में दिखे अनेक ।।
क्षण में दिखे अनेक " तरेगन " दिन में सूझे ।
मन की चिड़िया मन के अन्दर धीमे कूजे ।
ओ मधु चेरी , छोड़ बजाना अब रणभेरी ।
तू ठहरी रसभरी 'बिम्बिका' नैनो मेरी ।
            🌹 - विजय गुंजन 🌹 nojotopatna#
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आचार्य विजय गुंजन

🏹 कुण्डलिया 🏹
🍇--------------🍇
मेरी नैनो इक दफ़ा , जिधर दृष्टि दे फेक ।
रणचण्डी की छवि विकट , क्षण में दिखे अनेक ।।
क्षण में दिखे अनेक "तरेगन" दिन में सूझे ।
मन की चिड़िया मन के अन्दर धीमे कूजे ।
ओ मधु चेरी , छोड़ बजाना अब रणभेरी ।
तू ठहरी रसभरी 'बिम्बिका' नैनो मेरी ।
            🌹 - विजय गुंजन 🌹 Nojotopatna#

Nojotopatna# #कविता

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आचार्य विजय गुंजन

है जमीन जो भुरभुरी , बना उसी पर मंच ।
खड़े हुए उसपर सभी , कपटी बनकर पंच ।।

- विजय गुंजन Bonitopatna#

Bonitopatna# #कविता

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आचार्य विजय गुंजन

🌸ग़ज़ल🌸
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कौन है किसको डराता है रहा डर कौन 
आज वातावरण में विष है रहा भर कौन ।

हादसे पर हादसे होते यहाँ हरदिन 
तितलियों सी ज़िन्दगी को है रहा हर कौन ।

दरिंदों की बस्तियों में दर्द ही बस दर्द 
जोड़ने की जगह हिगरा है रहा घर कौन ।

प्रश्न ही बस प्रश्न -चिह्नों से पटी दीवार 
कतर जन-मन -परिंदों के है रहा पर कौन ।

आतताई के शहर में मौत का आलम
कौन अब गुंजन रहा जी है रहा मर कौन ।
                - विजय गुंजन
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आचार्य विजय गुंजन

🌷दोहा🌷
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ऋतु रानी सज-धज खड़ी , कर सोलह श्रृंगार ।
अँगड़ाई ले वसुंधरा , लुटा रही अब प्यार ।।
                    - वि . गुं . Nojoto patna #

Nojoto patna # #कविता

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आचार्य विजय गुंजन

घूसखोरों को दो दोहे
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कौए-कुत्ते सी न भी , है उनकी औकात ।
जो खाते हैं घूस की , रोटी-सब्जी-भात ।।

वेतन से भरता न गर , मूरख तेरा पेट ।
चौराहे - लिख टाँग दे , तू "अपनी" का रेट ।। Nojoto patna#

Nojoto patna# #कविता

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आचार्य विजय गुंजन

#DearZindagi मुक्तक
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निमंत्रण नेह का देकर नदी तट पर बुलाती है ,
मनोरम कामनाओं को तरंगों पर झुलाती है ।
बहुत बेचैन मिलने के लिए अपने किनारों को 
बड़े ही प्यार से वह थपकियाँ दे-दे सुलाती है ।

- विजय गुंजन Nojetopatna#
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आचार्य विजय गुंजन

दोहा
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कौए-कुत्ते सी न भी , है उनकी औकात ।
जो खाते हैं घूस की , रोटी-सब्जी-भात ।। Bonito patna

Bonito patna

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