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दीक्षा गुणवंत

लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"

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दीक्षा गुणवंत

राहत, सुकून, आराम
तुझे क्या-क्या नाम दूँ ?
के आँखें बंद कर तेरा नाम लूँ
और इस बेचैन दिल को आराम दूँ।

          -लफ्ज़-ए-आशना "पहाड़ी"

















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©दीक्षा गुणवंत राहत, सुकून, आराम
तुझे क्या क्या नाम दूँ ?
के आँखें बंद कर तेरा नाम लूँ
और इस बेचैन दिल को आराम दूँ।

-लफ्ज़-ए-आशना "पहाड़ी"

राहत, सुकून, आराम तुझे क्या क्या नाम दूँ ? के आँखें बंद कर तेरा नाम लूँ और इस बेचैन दिल को आराम दूँ। -लफ्ज़-ए-आशना "पहाड़ी"

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दीक्षा गुणवंत

बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो?
जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो?
दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी,
इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो?


इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की,
उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो? 
आज समझाना पड़ेगा इस नादान-ए-दिल को ख़्वाब और हकीकत में अंतर,
गर हर ख़्वाब हकीकत हो जाए तो हज़ारों आशिक़ बरबाद कहाँ से हो?


बहुत मासूम है ये दिल जो आज भी मुंतजिर है उनके हसरत-ए-दीदार को,
जो आसानी से दीदार हो जाए तो ईनायत-ए-यार कहाँ से हो? 
लिखे हैं उनकी यादों में ख़त कई सारे,
जो हर्फ़-दर-हर्फ़ वो पढ़ ले तो इंतज़ार-ए-इज़हार कहाँ से हो?


शायद उन्हें पसंद नहीं हमारा ये मुसलसल उन्हें याद करना,
जो नाम ना आए लबों पर उनका तो हमारी सहर-ए-शुरुवात कहाँ से हो?
तुम्हीं पर शुरू, तुम्हीं पर बीते ये दिन हर दफा,
जो मिल जाए साथ आसानी से तुम्हारा, तो हमें नसीब दर्द-ए-हयात कहाँ से हो?

-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"






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©दीक्षा गुणवंत बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो?
जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो?
दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी,
इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो?


इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की,
उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो?

बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो? जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो? दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी, इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो? इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की, उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो?

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दीक्षा गुणवंत

रोशन है शम-ऐ-महफ़िल जिनसे हर आंगन में,
के उन्हें ही उस लौ को रोशनी को तरसते देखा है।।


-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"













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©दीक्षा गुणवंत रोशन है शम-ऐ-महफ़िल जिनसे हर आंगन में,
के उन्हें ही उस लौ को रोशनी को तरसते देखा है।।
-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"

#Texture

रोशन है शम-ऐ-महफ़िल जिनसे हर आंगन में, के उन्हें ही उस लौ को रोशनी को तरसते देखा है।। -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Texture

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दीक्षा गुणवंत

जब घर जाते वक्त आपको रास्ते कुछ नए नए से लगने लगे,

तो समझ लो के घर से बहुत दूर आ गए हो तुम।।



                      -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"










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©दीक्षा गुणवंत जब घर जाते वक्त आपको रास्ते कुछ नए नए से लगने लगे,

तो समझ लो के घर से बहुत दूर आ गए हो तुम।।

  -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"


#Texture

जब घर जाते वक्त आपको रास्ते कुछ नए नए से लगने लगे, तो समझ लो के घर से बहुत दूर आ गए हो तुम।। -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Texture

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दीक्षा गुणवंत

दो पल तन्हा क्या बैठे, तेरी याद आ गई।।

तेरी याद आई तो हम सबसे तन्हा हो गए।।



                    -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"












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©दीक्षा गुणवंत दो पल तन्हा क्या बैठे, तेरी याद आ गई।।

तेरी याद आई तो हम सबसे तन्हा हो गए।।
   -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"

दो पल तन्हा क्या बैठे, तेरी याद आ गई।। तेरी याद आई तो हम सबसे तन्हा हो गए।। -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Shayari

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दीक्षा गुणवंत

थकी हुई इस रूह को सुकून के दो पल चाहिए
आज थक गए हैं इस ज़िन्दगी से कदम मिलाते हुए
बैठते थे आँगन में बिना किसी फ़िक्र के कभी
फ़िर से वापस वो कल चाहिए।।

                      -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" थकी हुई इस रूह को सुकून के दो पल चाहिए
आज थक गए हैं इस ज़िन्दगी से कदम मिलाते हुए
बैठते थे आँगन में बिना किसी फ़िक्र के
फ़िर से वापस वो कल चाहिए।।

                    -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"

थकी हुई इस रूह को सुकून के दो पल चाहिए आज थक गए हैं इस ज़िन्दगी से कदम मिलाते हुए बैठते थे आँगन में बिना किसी फ़िक्र के फ़िर से वापस वो कल चाहिए।। -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"

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दीक्षा गुणवंत

तेज़ बारिश की उन घनी बूँदों सी 
तेरी याद कुछ इस तरह आई,
के "आशना", जो संभाले बैठे थे खुद को-खुद में,
 हम तेरे बहाव में तेरे साथ बह चले।।
                    
                        -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" तेज़ बारिश की उन घनी बूँदों सी 
तेरी याद कुछ इस तरह आई,
के "आशना", जो संभाले बैठे थे खुद को-खुद में,
 हम तेरे बहाव में तेरे साथ बह चले।।
                    
                    -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"

तेज़ बारिश की उन घनी बूँदों सी तेरी याद कुछ इस तरह आई, के "आशना", जो संभाले बैठे थे खुद को-खुद में, हम तेरे बहाव में तेरे साथ बह चले।। -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Shayari

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दीक्षा गुणवंत

सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है,
आज इस शहर में फ़िर से एक नई बिमारी आई है।

लोगों से भरे रास्ते आज कुछ सुनसान से हैं,
चका-चोंध होते थे परिवार से जो आंगन, वो आज कुछ विरान से हैं।
कभी खुली हवा में साँस लेने को निकलना ज़रूरी सा लगता था,
आज उसी हवा से बचने को मुँह धकना मजबूरी सा लगता है।।

भरे रहते थे बाज़ार लोगों की ख्वाहिशों से कभी,
आज उन्ही लोगों से अस्पताल भरे हैं।
बिक रही है मौत खुले आम जहाँ 
आज के समय में हम ऐसी हवा में जी रहे हैं।। 

कभी शराब की बोतलों के लिए कतार में, 
तो आज बोतल में चंद साँसें पाने को भटक रहे हैं। 
क्या करवट ली है समय ने,
आज दो वक़्त की रोटी से ज़्यादा, दो पल की साँसों को तरस रहे हैं।। 

दूर नहीं वो दिन जब फ़िर से खुली हवा में घूमेंगे
चार दिवारों में नहीं, खुले आंगन में पुरानी खुशियाँ ढूढेंगे।
अपनो से आज कुछ दूर रहना मजबूरी है,
मजबूरी ही सही पर आज कुछ एह्तियाद ज़रूरी हैं।। 

क्योंकि.. 
सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है,
आज इस शहर में फ़िर से एक नई बिमारी आई है।।
        
                         -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है,
आज इस शहर में फ़िर से एक नई बिमारी आई है।

लोगों से भरे रास्ते आज कुछ सुनसान से हैं,
चका-चोंध होते थे परिवार से जो आंगन, वो आज कुछ विरान से हैं।
कभी खुली हवा में साँस लेने को निकलना ज़रूरी सा लगता था,
आज उसी हवा से बचने को मुँह धकना मजबूरी सा लगता है।।

सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है, आज इस शहर में फ़िर से एक नई बिमारी आई है। लोगों से भरे रास्ते आज कुछ सुनसान से हैं, चका-चोंध होते थे परिवार से जो आंगन, वो आज कुछ विरान से हैं। कभी खुली हवा में साँस लेने को निकलना ज़रूरी सा लगता था, आज उसी हवा से बचने को मुँह धकना मजबूरी सा लगता है।।

4a67ba625f4c8d1c809a1a19e6f22cba

दीक्षा गुणवंत

मैखाने में जाम के दो घूँट पी कर तो सब ही बहक जाते हैं।

कोई हमारे लफ़्ज़ों के नशे में डूब जाए तो बात है।। 

                   -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" मैखाने में जाम के दो घूँट पी कर तो सब ही बहक जाते हैं।

कोई हमारे लफ़्ज़ों के नशे में डूब जाए तो बात है।। 

                   -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"

मैखाने में जाम के दो घूँट पी कर तो सब ही बहक जाते हैं। कोई हमारे लफ़्ज़ों के नशे में डूब जाए तो बात है।। -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Shayari

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दीक्षा गुणवंत

जिस से पहली नज़र का पहला प्यार हुआ,
जिसकी बाहों में दुनिया-जहाँ का आराम हुआ।
क्या ज़रूरत है किसी और के इश्क़ की मुझे
मेरी किस्मत में मेरी माँ का प्यार हुआ।।

                      -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" जिस से पहली नज़र का पहला प्यार हुआ,
जिसकी बाहों में दुनिया जहाँ का आराम हुआ।
क्या ज़रूरत है किसी और के इश्क़ की मुझे
मेरी किस्मत में मेरी माँ का प्यार हुआ।।
              -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"

जिस से पहली नज़र का पहला प्यार हुआ, जिसकी बाहों में दुनिया जहाँ का आराम हुआ। क्या ज़रूरत है किसी और के इश्क़ की मुझे मेरी किस्मत में मेरी माँ का प्यार हुआ।। -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Shayari

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