राहत, सुकून, आराम
तुझे क्या क्या नाम दूँ ?
के आँखें बंद कर तेरा नाम लूँ
और इस बेचैन दिल को आराम दूँ।
-लफ्ज़-ए-आशना "पहाड़ी"
दीक्षा गुणवंत
बिन आँखे खोले उनका दीदार कहाँ से हो?
जो ख़्वाब में देखा उस बात का इज़हार कहाँ से हो?
दर्द-ए-दिल वक़्त दर वक़्त रिसता रहा यूं तन्हाई में उनकी,
इस दर्द-ए-तन्हाई का आज इलाज कहाँ से हो?
इक आह उठी है इस दिल में उन्हें पाने की,
उन्हें पा सकें एक रोज़ ऐसी कयामत की रात कहाँ से हो?
दीक्षा गुणवंत
रोशन है शम-ऐ-महफ़िल जिनसे हर आंगन में,
के उन्हें ही उस लौ को रोशनी को तरसते देखा है।।
-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"
#Texture
दीक्षा गुणवंत
जब घर जाते वक्त आपको रास्ते कुछ नए नए से लगने लगे,
तो समझ लो के घर से बहुत दूर आ गए हो तुम।।
-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"
#Texture
दीक्षा गुणवंत
दो पल तन्हा क्या बैठे, तेरी याद आ गई।।
तेरी याद आई तो हम सबसे तन्हा हो गए।।
-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Shayari
दीक्षा गुणवंत
थकी हुई इस रूह को सुकून के दो पल चाहिए
आज थक गए हैं इस ज़िन्दगी से कदम मिलाते हुए
बैठते थे आँगन में बिना किसी फ़िक्र के
फ़िर से वापस वो कल चाहिए।।
-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़"
दीक्षा गुणवंत
तेज़ बारिश की उन घनी बूँदों सी
तेरी याद कुछ इस तरह आई,
के "आशना", जो संभाले बैठे थे खुद को-खुद में,
हम तेरे बहाव में तेरे साथ बह चले।।
-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Shayari
दीक्षा गुणवंत
सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है,
आज इस शहर में फ़िर से एक नई बिमारी आई है।
लोगों से भरे रास्ते आज कुछ सुनसान से हैं,
चका-चोंध होते थे परिवार से जो आंगन, वो आज कुछ विरान से हैं।
कभी खुली हवा में साँस लेने को निकलना ज़रूरी सा लगता था,
आज उसी हवा से बचने को मुँह धकना मजबूरी सा लगता है।।
दीक्षा गुणवंत
मैखाने में जाम के दो घूँट पी कर तो सब ही बहक जाते हैं।
कोई हमारे लफ़्ज़ों के नशे में डूब जाए तो बात है।।
-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Shayari
दीक्षा गुणवंत
जिस से पहली नज़र का पहला प्यार हुआ,
जिसकी बाहों में दुनिया जहाँ का आराम हुआ।
क्या ज़रूरत है किसी और के इश्क़ की मुझे
मेरी किस्मत में मेरी माँ का प्यार हुआ।।
-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" #Shayari