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Nidhish Solanki

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Nidhish Solanki

उन से एक अदद कोई भूल हो जाए।
हमे भी माफ़ करने का मज़ा आ जाए।।

©Nidhish Solanki
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Nidhish Solanki

🛕राधा रमण🛕

गया था बृंदाबन
कुछ तो बात सुनाऊं।
एक मंदिर देखा पुराना
सबको दरस कराऊं।।
छोटी सी है काया उनकी।
पर नैन बड़े कजरारे।।
छोटे से है चरण कमल।
और छोटी बंशी धारे।।
मंद मंद मुस्कान  चेहरे पर।
राधा संग इठलाते।।
देखकर उनकी प्यारी मूरत।
दुःख दर्द सभी बिसराते।।
अग्नि  प्रज्वलित पांच सदी से।
गोस्वामी भोग पकाते।
बारी बारी अपनी बारी
रुचिकर खूब पवाते।।
देखकर मंदिर के उत्सव को।
सभी बहुत हर्षाते।
खुश रहो आनंद करो
प्रभु यही आशीष वर्षाते।।
जब भी जाओ बृंदावन
दर्शन तुम कर आना।
अब काम है निधीश तुम्हारा।
सब को नाम बताना।।
गंडकी नदी से सबको मालूम 
   निकले शालिग्राम।
भक्त गोपाल भट्ट 
की इक्छा भारी 
 प्रकट भए भगवान।।
कुंज गलियों मैं राधे राधे।
सभी उद्घोष लगाते।
सहस्त्र नामो वाले कान्हा।
यहां *राधारमण* कहलाते।।

निधीश सोलंकी
गुना

©Nidhish Solanki
  #janmashtami
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Nidhish Solanki

*मेरे पिताजी*
हिम्मत नही है,पर बहुत ज़िद करते है।
      मेरे पिता जी अपने काम खुद करते है।।
धीरे धीरे चलते है छड़ी टेक कर।
    गिर न जाए डर लगता है देख कर।।
नन्हे नन्हे कदमों से चलते देख 
अपना बचपन याद आता है।
     कितना सब्र किया होगा मुझे 
चलना सीखने में जिसे दौड़ना आता है।।
थोड़ा तेज चलो अक्सर बोल ही जाता हूं।
   धीरी चाल देख कर अधीर हो जाता हूं।।
खाने की थाली तो गुजरे जमाने की बात हो गई।
   दूध गली एक रोटी ही उनकी खुराक हो गई।।
मां भी दौड़ दौड़ कर सेवा को आती है ।
   बदले मे दो चार डांट ही खाती है।।
अब लगता है कुछ तो अलग हो गया।
   जवानी छोड़ उनपर बुढ़ापा हावी हो गया।।
अब तो एक बात समझ आती है।
   हम सब को उनकी जिद भी रास आती है।।

–निधीश सोलंकी

©Nidhish Solanki
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Nidhish Solanki

"पिता"
हुई जब मेरी संतान तो पता चला।
फूल से बच्चे को उठने पर,भार का पता चला।।
होती है नींद पिता को भी प्यारी।
रात को रोते बच्चे को सुलाने मैं पता चला।।
छोड़ना आसान होगा बच्चे को फिर।
स्कूल मैं रोते हुए छोडा तो पता चला।।
आनाकानी की थी पिता की बाते मानने मैं।
अपने पर बीती वही  बात तो पता चला।।
होती है संतान ही दुनिया मैं सबसे प्यारी।
पिता बनने पर ही,
 पिता होने की हकीकत का पता चला।

निधीश सोलंकी

©Nidhish Solanki
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Nidhish Solanki

।।युद्ध।।
एक से हुए दो
अब दो दो हाथ हो रहे।
रूस और उक्रेन
लड़ लड़ कर बर्बाद हो रहे।।

©Nidhish Solanki #Foggy
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Nidhish Solanki

जिंदगी खेल है मन का 
     जो बहुत खेलता है   

इंसान मन से,मनो नकरात्मकता झेलता है.
 जीभ को स्वाद,
आंखों को सौंदर्य भाता  है
नाक को सुगंध,
 त्वचा को कोमल स्पर्श रास आता है
कानों को हर समय कर्णप्रिय शब्द चाहिए
मालिक बन बैठी
इंद्रियों को 
हमारा गुलाम होना चाहिए
मन में दौड़ते इच्छा अश्व को विश्राम  चाहिए 
 इच्छाओ पर भी कसी  लगाम चाहिए।

©Nidhish Solanki #WinterSunset
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Nidhish Solanki

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Nidhish Solanki

पितृ मोक्ष
पुरखे भी अपने आप 
         उनके तर जाते।
घरों मै मां बाप जिनके 
   खुश हो ठहाके लगाते।

 परवाह जिस जिस ने की
         बूढ़े मां बाप की।
बदले मै बहुत इज्जत 
        पाई अपनी औलाद की।

खजाना दुआओं का 
         छुपाए रखते है
चाबी हाथ लगी उनके 
        जिसने सेवा की मां बाप की।।

–निधीश सोलंकी

©Nidhish Solanki
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Nidhish Solanki

आओ तुम्हारी लहराती जुल्फों को थोड़ा लगाम लगाऊं।
         तुम ही बताओ चोटी बनाऊं कि जूडा बनाऊं।

यहां मौजूद हर शख्स को दीवाना होने से बचाऊं
 तुम ही बताओ चोटी बनाऊं या जुड़ा बनाऊं

या तुम कहो तो दीवानों में पहला नाम अपना लिखाऊ।
ना चोटी बनाऊं ना जुड़ा बनाऊं।

बस इन लहराती जुल्फों का दीवाना हो जाऊं।

©Nidhish Solanki #Love
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Nidhish Solanki

फूल खिलते हैं सुबह को              
      शाम को मुरझा जाना है। 
खुशबू मिली है उनको,
         बिखेर कर जाना है।
पंछी उड़ते हैं सुबह को,
      शाम को घोसले मे आना है।
 पंख मिले हैं उनको,
      उड़ान भी तो दिखाना है।
नदी बहती है हरदम
      पत्थरो से भी टकराना है
बहते बहते एक दिन
        समुंदर से मिल जाना है
 फिर तू क्यों उदास है
          हौसला तेरे पास है।
मन में विश्वास जगाकर
        हौसले को आजमाना है
आए हैं जग में,
       जीत कर जाना है।

©Nidhish Solanki #neerajchopra
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