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sandeepsharma8905
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Sandeep Sharma

m men like men in nature, but hobbies r few sitting idle,gossiping, writing ✍️. can't spent more time in time taken writing. jai shree Krishna g is chanting mantras.jai shree Krishna g.

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Sandeep Sharma

हर शाम उदास सी करती है,
और रात दर्द सी थमती है,
तेरी इक याद के तस्वुर मे,
पलके बरबस ही बरसती है।।
###
संदीप शर्मा।।

©Sandeep Sharma #Parchhai शायरी।

Parchhai शायरी।

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Sandeep Sharma

हर शाम उदास सी करती है,
और रात दर्द सी थमती है,
तेरी इक याद के तस्वुर मे,
पलके बरबस ही बरसती है।।
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संदीप शर्मा।।

©Sandeep Sharma
  #Parchhai शायराना।

Parchhai शायराना।

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Sandeep Sharma

तूफ़ानों का इक कारवां गुजरा,
मैं था क्या, इक पत्ता उखड़ा,।।
वृक्ष से जुदा हुआ  कुछ ऐसे,
वजूद न  रहा,बस रहा ही सिकुड़ा।।
===
जैसे जिसके हिस्से आया,
वैसे उसने रौंदा, कुचला,
बात तभी बस ,समझ थी  आई, 
दरख़्त वजूद था ,, अब घरौंदा उजड़ा।।
===
हुआ एहसास थोड़ा तभी तब,
मैं था पत्ता इक फिज़ा का,
फिदा तभी तक मुझपर थी मेहरबान, ,
अब क्या जो डाली से उतरा।।
===
अब तो बे सुकून हूँ रहता,
सभी से हूँ कहानी कहता,
जो समझो हकीकत यही है,
परिवार मे हो तो फायदा सबका।।
=#=
संदीप शर्मा।।

©Sandeep Sharma
  #BhaagChalo
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Sandeep Sharma

है क्या तूफ़ान, 
बस ख़्वाहिशों के बवंडर पर,
रिक्त होते ख़्वाब।।

अरमानों की आंधियों मे ,
टूटता दरख्त नुमा मैं,

हवा उड़ाए लिए  जाती,
हसीन सपनों को,
बना देती ,
बे टीन की इक छत,।।

ठीक  वैसे,
जैसे इक गरीब की ,
सिर्फ  उम्र भर की कमाई, 
बारिश मे धुल गई।।

तूफ़ान  के आने से पूर्व, 
का मंजर भी तो,
सांय सांय करती हवाओं मे,
भय,विविशता की धूल मे,
कुछ  न दिखना।।

और मींच लेना कान ऑख,
बादलों की गड़गड़ाहट पर,
जब गिरती बिजली,
मन को राख का ढेर बनती देखती,
अपने ही ख्यालों, ख्वाब, ख्वाहिशों को।।

और  झरझर बहती, 
ऑखो से गंदला पानी,
हलक से  न निकलती आवाज, 
यही तो हैं न यह तूफ़ान।।

देखा तो होगा न ,
यह झंझावात, उड़ाता खिल्ली, 
टूटी टहनियों की तरह ,
बिखरे हरे हरे जानदार पत्तों से
बिन कसूर अपने वजूद से 
बिखर इतर हुए ।।

सब खोकर, चिर शांत सी,
मासूमियत लिए, 
अंनजान बना,बैठा वक्त, ऐसे,,
जैसे कुछ देखा ही न हो ,उसने,
ठीक  वैसे।।

असल बात तो यह है ,
कि हर कोई गुजरा है इस दौर  से,
नाम अलग अलग लिए, 
और  परिणाम, 
अविरल से लिए।।
##
संदीप शर्मा।।

©Sandeep Sharma
  #Sitaare तूफ़ान।।

Sitaare तूफ़ान।।

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Sandeep Sharma

मैं जो  तुम्हारी  इक शिकायत हूँ,
यह अच्छा हैं,
तुम झगड़ती हो मुझसे ,
यह और भी अच्छा है।।

तुम इस सब से नवीन हो जाती हो,
ऐसा लगता है,जम गई, 
आइसक्रीम हो लगती हो।।

तब पा कर  एक स्पर्श, 
और  तुम्हारा पिघल जाना,
है न कितना यह एहसास, सुहाना।।

लगता है न,

कितने पल वो सब जो खो दिए थे,
इक जरा सी लड़ाई ने,
इस उष्मा को पाते ही ,
आ गए  है करीब, 
इक अंगडाई मे।।

चाहता हूँ 
तुम शिकायत ही करो 
रहो जमी सी बर्फ की तरह,
ताकि पा कर  गर्मी  
हम पिघल जाए, 
ख़्वाब, ख़्वाहिश मे ही सही,
पास तो आए।।
###
संदीप  शर्मा।।

©Sandeep Sharma
  #tag,Sandeep #Sharma .शिकायत।

tag,Sandeep Sharma .शिकायत।

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Sandeep Sharma

मोहब्बत कैसे करते है हम तुमको बताएंगे,
करो तुम नफ़रत लाख, पर हम न कर पाएँगे,
बंधन मे रखेंगे न तुमको कहीं,
तुम चाहो किसी को भी, हम तुम्हें ही चाहेंगे।।
###
संदीप शर्मा।।

©Sandeep Sharma #adventure मुक्तक #tag Sandeep Sharma.

adventure मुक्तक tag Sandeep Sharma.

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Sandeep Sharma

मजबूर भी वक्त के हाथों थे,
और सिखाया भी वक्त के सफहों ने, 
जो  जिद्द किया  कभी करते थे,
अब सब्र ही किया करते है।।
###
फिक्र न कर दिल्लगी कि तू,
जो अश्क  बहाया करते थे,
अब अश्क सुखाया करते है।।
###
इक सूकून मे दिखाने की खातिर, 
हमने उलझनों को संभाले रखा,
और कहते रहे वो सबसे,
कि हम बडे मजे मे है।।
###
संदीप शर्मा।।

©Sandeep Sharma
  #adventure

adventure

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Sandeep Sharma

वो यादों का जो गुजरा कारवां,
तो दिल ठहर गया,,
कहा तक चला आया था मैं,देख
अरे, मैं खुद ही सिहर गया।।

न वो आक्रोश, न ही जोश,
इतना हार गया,
वक्त के सितम थे,
या कि ख़्वाहिशों की दरगाह मेरी
देख ,देखता ही रह गया।।

आया दिखा इक पल वो भी कही ,
यहां मैं बैठा हँस रहा था,
देख कर पहचानना चाहा कि मैं ही हूँ,
यकीं मानिए  मुट्ठियां कस रहा था ।।

दिखा वो भी बचपन का सहपाठी,
जो  हुआ  करता था नालायक,,
हैरत हुई देख व्यवस्था, 
जिसमे था वो बना बैठा था अब नायक।।

कामयाबी के पैमाने भी न ,जाने,,
कितने बदल गए है,,
गर होना है कामयाब  तो करने ही होगे,
समझोते, दखल बदल गए है।।

यादों के गलियारे मे ही दिखी ,
अम्मा सरीखी इक बूढ़ी माई,
जो शायद सिखा रही थी कोई सबक, 
नैतिकता की जिसकी अब नही थी भरपाई।।

मंजर हर इक बदला था,
स्नेह, संतोष, सब हुआ कतरा कतरा था,,
सिलवटों मे पडा वही सुकून दिखा,
कैसे था छिपा बैठा धैर्य,वही,
हुआ खून खून दिखा।।

यह कहा चला आया मैं ,,
सपना था कोई,,
अरे यादों का कारवां था,
नही सपना कोई।।
###
संदीप शर्मा।।

©Sandeep Sharma  
  #Tuaurmain

Tuaurmain

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Sandeep Sharma

जो लगावे वो गुलाबी लिपस्टिक,
 तो हिल जावें सारा डिस्ट्रिक्ट, 
लल्लन टाॅप लागे रे।। (2)
##
यह मजाक था।
पर गिरती सोच का आईना भी,
वीभत्स चेहरा दिखाती है यह पंक्तियां,,
कि मात्र उपभोग की वस्तु है वह कोई।।
कैसे ,,
देखे तो ऐसे।।
उसके होठो का रुखापन ,,
उसने अपनी गुलाबी लिपस्टिक से छिपा लिया है,
हालात मजबूर कर रहे,पर उसने ,न किसी को, दगा दिया है।।

कमबख्त भूख चीज  भी  तो ऐसी है,
नोच ले उसके जिस्म को भी चाहे तो,
 वो अपनी भूख तो बर्दाश्त कर लेती है , 
पर  उसके बच्चो की भूख के आगे .....
लगा गुलाबी लिपस्टिक बिक भी जाए वो यहा तक मन बना लेती है।।

वैसे भी तो,,  ?  ,,

कितना शातिर खेल है समाज का,जो औरत के जिस्म को अपनी भूख मिटाने, को,,हजारो नोट उछाल देता है,
उसकी पेट की भूख  मिटाने को एक रूपया तक नही देता है ।।

उल्टा नसीहते, व ताने उसके हार पहनाता है।।
देखो ,अरे,देखो तो, यह समाज के ठेकेदार कहलाता है।।

वो गर देह को बेचने को जो न तैयार हो, 
तो भी व्यवहार से उसे छलनी कर डालता है।।

यह समाज है साहब, मदद को आगे नही आता,
पर मिल जाए  बस एक मौका ,चूसने को गुलाबी लिपस्टिक, 
बस हरदम यही निहारता है।।

यह पुरुष प्रधान समाज की ही नही स्त्री प्रधान सोच का भी कमाल है ,,
कि एक जरा सी गुलाबी लिपस्टिक क्या  लगा ली,,
उठाता उसके चरित्र पर सवाल है।।

बड़ी ही नाजुक है यह रत्नावली माना ,,
पर उसके भी पेट है ,जिसे भूख  लगती है 
वो जिस्म की भूख से न मिटेगी ,,
यह  बात क्यू न किसी  को दिखती है।।

सब खड़े है एक मौके की तलाश को,
यह तक भूल जाते है पाते ही अवसर,
कि है उसके भाई ,के यार वो।।

लांछन लगाने मे  भी ,पीछे वही नही हटते ,,
जिसे उसके सपने पूरे होते नही दिखते ।।

यह मातृ शक्ति है,बहन,है,बेटी है,
क्यू  भूल जाते है,,
बस उन्हे उसके उबार ही क्यूँ सिर्फ नजर आते  दिखते है।।

कितना वहशी हो गया है  न,समाज, और उसकी मानसिकता,
रिश्तो को तार तार करती इंसान ,कैसी है यह तेरी  रिक्तता।।

प्रश्न कहो तो पूछ लू,,
नजर गुलाबी लिपस्टिक तक गई कैसे ?
क्यूँ बढी पांव से आगे ,चरित्र तुम्हारा कैसा है ?
सोचता हूँ जो ढिगा ऐसे ।।

धिक्कार है,

जो ख्याल गुलाबी लिपस्टिक का तो आया,
पर
वो किसी इसां की जान है, 
यह  क्यूं  न कोई समझ पाया।।

अरे जरा सा तो इंसान बन ,
इंसानियत दिखाओ,
वो हमारी ही बेटी ,बहू, माँ ,,
या कंजक रूपी है,
उसे मान दिलाओ,।।
###
संदीप शर्मा ।।
देहरादून उत्तराखंड।।

©Sandeep Sharma #walkalone संदीप शर्मा।

walkalone संदीप शर्मा।

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Sandeep Sharma

इतना शातिर नही कि दिलो से खेल लूं,क्योकि मैं भी नाजुक सा ही रखता हूँ,,
होगी फितरत तुम्हारी भले,ही,पर
मैं तो तुमसे भी मोहब्बत करता हूँ।।
संदीप शर्मा।।

©Sandeep Sharma  
  #JodhaAkbar संदीप शर्मा।

#JodhaAkbar संदीप शर्मा। #लव

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