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kamalsharma8553
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kamal sharma

यायावर

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kamal sharma

वो लपेटकर खिलायेंगे
धर्म अफीम के पुड़िये
मे,थमायेंगे हाथों में छुरी
तमंचे और तलवारें
छिड़ेगा धर्मयुद्ध ईश्वर 
और खुदाओं के बीच
रक्तरंजित होगा इतिहास
तुम्हारी जय पराजय का.
वो लगायेंगे अट्ठहास विजय
का,करेंगे तेरे रक्त से राज्याभिषेक
फिर खोलेंगे नये नये मोर्चे
नफरतों के,राजनीति लाशों
पर भी की जाती है तथ्य है
मुर्दे जीवित से ज्यादा प्रमाणिक
है राजनीति के मैदान में # धर्मयुद्ध

# धर्मयुद्ध

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kamal sharma

मुझे लगता है कि कविताओं
पर पहला अधिकार वंचितों
का ही होना चाहिये,ये उनके
लिये पहली सार्वभौमिक घोषणा
हो,किसी राजनीतिक सब्जबाग
से परे, क्युँ ? इसलिये क्युँकि
कवितायें इनमें से ही आती है
है,ये कृतित्व के सबसे सहज
आधार है जो हमेशा हमारे
आस पास रहते है विषयों में
जहाँ इनकी भाषा चूकती है
कविताएं वयक्त कर देती है
कविताएं संविधान नही होती
ना इनके लिये संवैधानिक
अवसरों की व्याख्या करती है
ना बुनियादी अधिकारों की 
कोई घोषणा करती है
कविताएं महज अपने साथ 
साझा करती है इनका दर्द 
और समाज के सामने केवल
एक सार्वभौमिक प्रश्न #वंचित कविता

#वंचित कविता

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kamal sharma

वो होड़ में है सबको
चिंता है समाजवादी
होने और दिखने की 
वो मंचों से योजनाओं
से, घोर समाजवादी होने
का पाखंड करेंगे
न्याय स्वतंत्रता समानता
जैसे संवैधानिक शब्दों पर
लच्छेदार भाषण देंगे
कुछ खैरात की घोषणाएं
भी होगी,गरीबो को एक
मानवतावादी चेहरा भी
दिखाना समाजवादी चिंतन 
है,पूँजीवादी दिमाग की 
सुरक्षा समाजवादी खोल 
में ही है,ये उन्हे पता है
ये पेशेवर लोग है #समाजवाद
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kamal sharma

स्वयंभू भगवानों को
यकीं नही ईश्वर की
किसी भी व्यवस्था में
वो संपूर्ण मानवता के
ठेकेदार हो जाना चाहते
है,राजनीतिक सत्ता की
साजिश है कि वो ईश्वर
को ही बेदखल घोषित 
करके, लोगों की किस्मत
अपनी सुविधा से तय कर
सके, ईश्वर ने कभी किसी
के साथ असमानता नही की
उसकी संतुलित व्यवस्था में
सबके लिये समान अवसर
रहा होगा,ये तुम्हारे लालच
तुम्हारे क्षुद्र स्वार्थो का नतीजा
है कि आदमी और आदमी में
भेद है, इतना भेद कि हर
आदमी कई खाँचों में बँटा है
तुम्हारी न्याय स्वतंत्रता समानता
की उदघोषणा एक छलावा है
वस्तुतः तुम एक ऐसी व्यवस्था
के हिमायती हो जो तुम्हे सर्व
शक्तिमान बना दें और ईश्वर
से भी ऊपर घोषित कर दे # स्वयंभू

# स्वयंभू

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kamal sharma

एक छोटा सा कस्बा 
बड़ी गर्मजोशी से
मिलता था 
हर शख्स जाना पहचाना
सा लगता था
बाग बगीचे सड़को
नुक्कड़ और बाजारों
में हरदम गहमागहमी
सा दिखता था
साल बीते जाने कितना
वक्त गुजरा उम्र निकली
कस्बा शहर में तब्दील हुआ
सड़क इमारते माॅल काँम्पलेक्स
सिनेमा मल्टीप्लेक्स और भी जाने
क्या क्या,बदल गई सूरत इस तरह
कि उजालों की जगमग रौशनी के
बावजूद एक कस्बा भीतर ही भीतर
सिसकता है # शहर का दर्द

# शहर का दर्द

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kamal sharma

मैं जब भी याद करता हुँ
तेरा वो किस्सा याद आता है
कितनी साफगोई से कहा था
कि मेरे दिल में कोई उम्मीद 
मत जगाओ,मेरे टुटे अरमान
मुझे सपनें सजाने की इजाजत
नहीं देते,उस शख्स के जाने के
बाद मेरा युँ बेख्याल हो जाना ही
अब मेरी नियति है,भूल जाओ
कोई अहसास मेरा सजाया हो
मैं वो प्यार ना दे सकुँ शायद
जो किसी पर लुटा चुकी कही
हर बार कर लुँ दिल का सौदा
ये मुझसे मुमकिन ना होगा कभी
वो वक्त बीता अरसा गुजरा कोई
खबर अब मिलती नही कहीं से
उसकी,एक अधूरी सी कहानी 
युँ अहसास दे जाती है मुझे
जैसे एक सपना हो खुली
आँखों हुई से देखा हुआ # अहसास

# अहसास

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kamal sharma

इस दौर के मोहब्बत के क्या कहना
एक खेल है बस दिल का जिस्म से

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kamal sharma

तुम्हारा साधारण होना अब
एक असाधारण घटना है
क्युँकि यदि तुम कुटिल नही
हो,तो सफलता के पैमाने में
तुम अयोग्य ही घोषित हो
यदि तुम्हारी रीढ सीधी है
और तुममे झुकने की कला
नहीं है,तो फिर उनके तय
किये मापदंड में तुम्हारी
अहमियत इतनी नही कि
तुम उनके राग दरबारियों 
में शामिल माने जा सको
तुम्हारा विवेकहीन होना ही
उनको सहुलियत देता है
तुम्हारी मुखरता उन्हे चोट
दे सकती है तुम्हारे बोध
से वो भयभीत हो सकते है
अतः तुम्हारी असाधारणता ही
तुम्हारा कवच है नेपथ्य के शोर
पर कान बंद कर आगे बढो
लोकतंत्र में आजादी के 
खतरे बहुत है # आम आदमी

# आम आदमी

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kamal sharma

यदि तुम्हारे मापदंड में
 सटीक नही बैठती मेरी
 कविता तो क्षमा करें
 मैं पेशेवर कवि नहीं हुँ
 शायद कवि भी नही हुँ
 मैं भाषा के व्याकरण 
 और वर्तनी की शुद्धता
 और ना कविता होने की
 किसी शर्त पर कायम हुँ
 मैं कवि होने की कोई 
 औपचारिक घोषणा भी
 नहीं करता,हाँ मै घोषित
 हुँ अंतःकरण की शुद्धता
 से उपजे वो भाव जो भले
 कविता की कसौटी को पूरे
 ना करते हो लेकिन अपने
 भाव को वयक्त करने की
 पूरी आजादी को शिद्दत से
 महसूस करता हुँ बिना कुछ
 होने के शर्त से बिल्कुल परे # बेशर्त

# बेशर्त

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kamal sharma

तुम्हारी सारी शिक्षा व्यर्थ है
हासिल डिग्रियाँ मात्र कागज
का पुलिंदा भर रह जाता है
यदि गलत को गलत कहने
का साहस नहीं जुटा पाते
नहीं कर पाते अन्याय का
प्रतिरोध और साध लेते हो
सुविधा की चुप्पी उस वक्त 
जब तुम्हें मुखर होना ही था
हालांकि हर समस्या तुम्हारी
नहीं है इसलिये मुँह चुराने का
भी अधिकार है तुम्हें,और मुझे
भी हम सब तमाम लोगो को भी
ये जानते हुये भी कि यदि हम 
किसी समस्या का समाधान नहीं
है,तो हम स्वयं एक समस्या है # ख्याल

# ख्याल

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