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क्षितिज श्याम सिंह

महाराणा का वंसज हूँ, गद्दार नहीं हो सकता हूँ।

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क्षितिज श्याम सिंह

जिंदगी इक जहाज हो जाए,
बात जुबाँ पे आते ही राज हो जाए। 
ये राज़ को राज़ ही रहने दो क्षितिज-श्याम, 
भले कोई तुम्हारी हमराज हो जाए॥ #HopeMessage
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क्षितिज श्याम सिंह

ढूंढते फिर रहा हूँ गली दर गली,
जाने कहाँ है सनम हरजाई।

माना कि करना मुहब्बत बुरा है,
मगर एक कोशिश में क्या है बुराई।

अकेला ही चलता चला जा रहा था,
न जाने ये आवाज़ किसने लगाई।

...क्षितिज श्याम सिंह.... #Isolated
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क्षितिज श्याम सिंह

बेरोजगारी और लाचारी का जब ये हाल है,
कैसे कह दें कि हम खुशहाल हैं। 
विध्यालय मे मध्यान भोजन है,
खिचड़ी और चावल दाल है । 
जग जाहीर है ऐ जगवालों, 
वर्तमान शिक्षा का क्या हाल है।
पॉलिटिकल साइन्स क्या होता है,
ये टॉपर से पूछा गया सवाल है।
प्रश्न हमेशा कौंध रहा है,
ये तंत्र कि नाकामी है या तंत्र ही दलाल है।।
 क्षितिज श्याम

.......................... #शासन_तन्त्र
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क्षितिज श्याम सिंह

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क्षितिज श्याम सिंह

यूँ नजरे चुराकर सितमगर बनो ना, 
निगाहें मिला लो बहार आ जाए। 
वफ़ाओं का इतना शिला मुझको दे दो, 
के बेचैन दिल को करार आ जाए।।
....क्षितिज श्याम #nigahe
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क्षितिज श्याम सिंह

ये जो माथे की बिंदिया है, 
कसम से रेड सिग्नल है।
इसे देखे जब भी कोई, 
तो ट्रैफिक रुक जाती है।
दिल को घायल बनाती है,
बस तेरा नजरे उठा लेना।
कयामत सी दिखाई दे,
जब भी निगाहे झुक जाती है। #alone
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क्षितिज श्याम सिंह

भले कोई रूठता या कोई रंज हो जाता,
काश के जिन्दगी भी शतरंज हो जाता। 
चाल कोई कितना भी चलता शातीराना, 
पर अपनो को तो कोई नहीं मार पाता।।

'क्षितिज' श्याम सिंह... #life
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क्षितिज श्याम सिंह

मैं तो उम्मीदों से बंधा हुआ एक जिद्दी सा परिंदा हूँ,
घायल भी उम्मीदों से हूँ और उम्मीदों पर ही जिंदा हूँ॥ #Wish

Wish #Wish

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क्षितिज श्याम सिंह

कोरोना को जीत भी लेंगे, 
पर अपनो से कैसे लड़ें।
कुरुक्षेत्र सी असमंजस है, 
उधर पितामह भीष्म खड़ें।
ब्रह्म अस्त्र संधान ले कैसे,
जो है अति प्रलयंकारी।
इसी धर्म संकट में अर्जुन,
रण में है गांडीव धरे।। 
        .....क्षितिज श्याम #Dreams
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क्षितिज श्याम सिंह

कैसे कहूँ के तेरा मुखड़ा,
चाँद का टुकड़ा लागे है।
एक झलक देखन को खातिर,
कई कई रात तक जागे हैं।

घुमड़ घुमड़ जब बादल आती, 
तुम छुप जाया करती थी ।
सच कहना क्या तुम भी उस पल,
ठंडी आँहे भारती थी।

छुपते छुपाते उन दिन मैं,
छत पर चढ़ जाया करता था ।
भाग दौड़ करते करते ,
धड़कन बढ़ जाया करता था ।

थोड़ी थोड़ी झलक दिखा कर,
जाने कहाँ छुप जाती थी ।
क्या मुझको ब्याकुल पाकर,
तुम्हे तनिक दया नहीं आती थी।

कैसे कहूँ मैं ओ यारों, 
कि प्यार में धोखा खा गया।
अच्छे थे नादान थे जब,
क्यूँ समझदारी अब आ गया ।

वाह रि किश्मत तेरी भी क्या, 
अद्भुत है ये सफ़रनामा। 
जिनको अब जानम कहता हूँ ,
बचपन में कहता था मामा । 

क्षितिज श्याम जानम को अपने,
चाँद कभी मत कहना ,
देख कर उनको भले ही हरदम,
ठंडी आँहे भरना ।
........... #Light
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