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praveenchandrati6622
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Praveen Chandra Tiwari

मैं तो मुसाफ़िर हूँ, रास्तों से दोस्ती करते चल रहा हूँ, लोग पूछते रहते हैं की मंज़िल की ख़ता क्या है। Instagram: @omkeshabd Facebook: @omkikalamse

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Praveen Chandra Tiwari

जीता रहा हूँ मैं 
खुद की आवाज़ को सुनकर चौंकता रहा हूँ मैं,
इन सन्नाटों से कहकर ही तो सोचता रहा हूँ मैं।
इतनी फुर्सत नहीं की ठहराव ला सकूँ,
हर बार पुराने ज़ख्मों को कुरेदता रहा हूँ मैं।

चलते रहा रास्तों में, बनाए किसी और के,
हर वक़्त कर्ज के बोझ में दबता रहा हूँ मैं।
हिदायत बेचने के लिए ही बात करते हो तुम,
ठहरी हुई जमीन में बहता रहा हूँ मैं।

नकाबों कि तरफदारी है, चहरों पर सवाल,
कुछ रंग के घुटनों से मरता रहा हुं मैं।
क्या धर्म मेरा था, किस दर से तुम्हारा है,
कुछ छोटे से कागजों पर बिकता रहा हूँ मैं।

लकीरें डाली है अपनी जमीन में, उसकी जमीन में,
मुठ्ठी भर जमीन के लिए, कटता रहा हूँ मैं।
वक्त के गुलामों को और क्या बंदिश,
न जाने कितनों के पिंजरों में जीता रहा हूँ मैं।
-ओम #जीता_रहा_हूं_मैं
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Praveen Chandra Tiwari

चमक उठा अपना घर  रोशनी से,
अँधेरे शिकायत करने लगे दूर जा कर।
-ओम

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Praveen Chandra Tiwari

ये ही वक्त है ज़िन्दगी से हैरान होने का,
लिफाफे की दिखावट से ब्याज नहीं बदलता है,
एक नज़र खोल के सोना चाहिए हम सबको,
हद से ज्यादा ईमानदार कहीं नही चलता है।
-ओम
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Praveen Chandra Tiwari

खुद की नज़र में धूल देख कर ज़िन्दगी पर बात कर,
समाज के नहीं, खुद के अहम को पोछने  पर बात कर।
ज़बान मिली है, गनीमत है, महर है रब की,
तू फूलों को भूल जा, काटों को छू के बात कर।
- ओम #धूल #अहम
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Praveen Chandra Tiwari

हाथ में मसाल लिए ही आदमी निकलता होगा,
 क्या इसी लौ से इसका दिल भी पिघलता होगा?
 मारा जाता है हर तरफ से इसका ढलता शरीर,
 क्या इसी असर के लिए ये कोख़ से निकलता होगा?
क्या ये जरूरी नहीं की उसके घर से उसका बच्चा सीखे,
वो उसी तालीम से ज़िन्दगी को परखता होगा, पर 
चाकू इस नुक्कड़ में है, ज़हर फैला है उस गली में,
क्या इसी डर से वो बच्चों को पकड़ता होगा?
-ओम
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Praveen Chandra Tiwari

ये ज़रूरी नहीं की आसमान हो उड़ान मेरी,
हर ऊँचाई में कुछ ज़मीन होनी चाहिए 
-ओम #उड़ान‌ #ज़मीन
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Praveen Chandra Tiwari

यूँ रास्ते में ज़हर बिखेर कर, क्यूँ चलते हैं लोग?
आग को छोड़ कर, रंजिश में क्यूँ जलते हैं लोग?
सब रास्ते ख़त्म होते हैं, दो गज़ की ज़मीन में,
सारे हाथ छोड़ कर, क्यूँ अकेले चलते हैं लोग?
-ओम #रास्ते #अकेले
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Praveen Chandra Tiwari

अपनी क़िस्मत पर रोता , और सबके दुख पर हँसता है , 
ख़ुद के ज़मीर पर आग लगने से ही आदमी जलता है।
दिन के उजाले में चुप , रात के सन्नाटे में सुनता है ,
पेट पे भूख और जिंदगी में दर्द होने से ही आदमी उठता है।। 
-ओम #भूख #दर्द
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Praveen Chandra Tiwari

अपनी आवाज़ में थोड़ा ज़ोर डालकर चिल्ला ले,
सुना है आजकल समंदर शान्त बैठा है। 
तकलीफ न कर बेकार में बार बार चुप रहने की, 
ये सरकारी दफ्तर है जो विराने में बैठा है ।।
- ओम #सरकारी_दफ्तर
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Praveen Chandra Tiwari

एक लंबी दौड़ लगा, फिर ऊंची छलांग लगा,
ये जरूरी नहीं कि तू मरता है, जरूरी है कि तू करता है।
-ओम
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