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सभा है कोई भी शामिल नहीं है
उजाला है मगर झिलमिल नहीं है
मेरे सीने में क्या तुम तोड़ लोगे
मेरे सीने में कोई दिल नहीं है
जो मेरे लफ्ज को पढ़कर भी पढ़ ले
कोई इतना भी तो काबिल नहीं है
दोनों पक्षों में एक मशवरा है #शायरी#writervinayazad
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मुझे कुछ भ्रम ही खैर हो गया था
या सहुलत से बैर हो गया था
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वो महज दोस्त था अच्छे दिनों का
हवा बदली तो गैर हो गया था
#writervinayazad#शायरी
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उसने मुझको खरीद रक्खा है
नर्म लहजे ने जीत रक्खा है
देखो दीपक धुंआ नहीं करता
कैसे जलने से प्रीत रक्खा है
मेरा दिल कुछ हरा भरा सा है
उसने यादों से सींच रक्खा है
उसमें मौसम की झलक लगती है #कविता#writervinayazad
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मैं तेरी सांस के लहजे से समझ जाता हूं
तु किस हवा में है सहजे से समझ जाता हूं
#writervinayazad#शायरी
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जहर बेशक निगलना पड़ता है
जख्म खाकर ही कद उभरता है
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शहर में जंगली ओहदे बहोत हैं
संभल-संभल के चलना पड़ता है
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रोज मौसम बदल सा जाता है #शायरी#writervinayazad