ना निकलो तुम आशियाने से, जद में रहो
बिगड़ने वालें हैं और भी हालात, हद में रहो
बना बैठा था रब उसने भी हार मान लिया
तुम हो अदना सा नादाँ, बैठे अपने घर में रहो
बंद हो नहीं रुख़सत कर जाओगे दुनियाँ से
बनो एक सामाजिक इंसान अपने शहर में रहो
वैसे तो ख़ूब बहाते हो खूँ-पसीना इनके लिए
अपने ना सही, इनके ख़ातिर इनके नज़र में रहो
ᗩTᑌᒪ
कोई साज़िश हुई है खिलाफ़ हमारे
हमें राख करने की भारी तैयारी हुई है
घुल गयी ज़हर जो इन फ़िज़ाओं में
तब हुक्मरानों की फ़रमान जारी हुई है
वतन जल रहा मज़हबी आग में औ
मेहमानों का इस्तक़बाल सरकारी हुई है
शहीद हो गया रतन दावँ पेंच में इनके
कहीं मासूम के खून से भी इफ्तारी हुई है
ᗩTᑌᒪ
खड़ा किया मज़हब का बैर
परिन्दों का घर जला दिया तुमने
सब रहते थे भाई से उनके ही
दिल में नफ़रत घर कर दिया तुमने
बरसों पहले बीज जो बोया था
उसको ताज़ा ख़बर कर दिया तुमने
था कभी जो रहनुमाओं का काम
हर वह काम ख़ुशी से कर दिया तुमने
ᗩTᑌᒪ
दुनियाँ को सुनाना भी है हमें
उसी जहान से जीत जाना है तुमको
बेरंग सी दुनियाँ के रंगों से दूर
अपनी दिलों ज़द में लाना है तुमको
एक तेरे बिना क्या हाल है मेरा
आँखों की नमी दिखलाना है तुमको
अपनी हर किस्सा बिन छिपाए
बिन कहे हर बात बतलाना है तुमको
ᗩTᑌᒪ
मैं कतरा था
सो तुझतक आकर रुक गया मैं
तू दरिया है
जा तुझको बहता पानी मुबारक
हसीं सूरत देख
तू जो कर गयी है बेवफ़ाई मुझसे
तू खुश रह
तुझे चमकता हुआ चेहरा मुबारक
ᗩTᑌᒪ
बरसात हुई थी धूप में उस दिन
हिन्द का हर बच्चा-बूढ़ा रोया था
जब सफ़र में सोता हुआ जवान
बारुद से उठे अंगारों में समाया था
इंतेज़ार था बूढ़े बाप को उसका
बचपन मे चलना जिसे सिखाया था
नजाने कितने टूकड़े हुए थे उसके
बोटी बोटी उनको घर अपने लाया था