#dawn एक दिन यह देश
मूर्तियों का देश होगा
मूर्तियाँ,
जो न बोल सकती हैं
न देख सकती हैं
न चल सकती हैं #poem
Bharmal GaRg
मुश्किल था , मगर कल समंदर बँट गया।
बस एक लकीर खींची और घर बँट गया।।
ठीक वैसे जैसे बच्चों में रोटी का बँटवारा।
माँ देखती रही सब , इधर-उधर बँट गया।।
बुज़ुर्ग बाप को अब भी ख़्वाब सा लगता है।
कि कैसे यूं देखते सब इस कदर बँट गया।। #dawn#विचार
Bharmal GaRg
तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये।
थे कभी मुख्पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये॥
वक्त का पहिया किसे कुचले कहाँ कब क्या पता।
थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये॥
देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं।
जो कि अध्यादेश थे खुद अर्जियों तक आ गये॥
Bharmal GaRg
भाग्य एक ऐसी किताब है जिसमें लिखा सब कुछ है
लेकिन पढ़ा कुछ भी नहीं जा सकता।
• पंक्तियां : भारमल गर्ग "साहित्य" 🌻
#Forest#विचार