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Sandeep Sagar

एक खत लिखा था बादलों को कभी भिगा भिगा जवाब आया है अभी

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Sandeep Sagar

मुझे इतनी खबर तो हो,वो गया किधर को हो 
जरा पता चले कि मेरा घर उधर तो हो 
जिस नज़र से बार बार देख के सुकूँ मिला 
उस नज़र के आसपास वो नज़र तो हो 
एक मैंने बात जो थी कहीं कभी तुझे 
उस जरा सी बात का कुछ असर तो हो 
छोड़ के चले गए जैसे कोई गुम हुआ 
तुझे ना फरक हुआ तो सरबसर तो हो
यादों में फिरा फिरा मैं फिर भी ना वो दर मिला 
एक कोई दर मिले जिसमें पहर तो हो 
आईने में देख के खुद को जरा यकीं हुआ 
आँख में आँसू नहीं थोड़ी जहर तो हो।

©Sandeep Sagar
  #boat
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Sandeep Sagar

एक मोती आँख से छलका तो ऐसा क्यूँ लगा 
क्यूँ लगा कि आँख से निकला है कुछ बिखरा हुआ 
यूँ बिखर के आँख से निकला है क्यूँ ऐ पानी सा 
क्यूँ लगा कि ये निकल के और भी हैं गहरा हुआ।
मेरी आँखों में समंदर की बहुत गहराई है 
फिर निकल के आँख से ये बाहर कैसे आई है 
मैं समझा यूँ ही मेरी आँखों से ऐ निकल गई 
फिर लगा कि ग़म की मेरे निकली ये परछाई है।
मैंने उसको ऐसे देखा जैसे सूरज नम हुआ 
आँखों में चुभन थी फिर भी ये भी क्या कुछ कम हुआ 
जिसको चाहा साथ रहे वो हर पल हर रुसवाई में 
आज उसी का साथ है छुटा चलो ये किस्सा ख़तम हुआ।
किस्से की भरपाई देखो कहाँ मिले कब खत्म हुआ 
ऐसी जगह पे चोट लगी कि मरहम भी अब ज़ख्म हुआ 
एक कहानी चला था बुनने पर खुद उसका किरदार हुआ 
खत्म कहानी हुई तो मेरा स्वागत भी जोरदार हुआ।

©Sandeep Sagar कहानी 

#bike

कहानी #bike #कविता

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Sandeep Sagar

मैं अक्सर खुद को किसी कहानी के किरदार में ढूँढने की कोशिश करते रहता हूँ और ऐसे करके मैंने अपने कई रूप देख लिया है या यूँ कहें कि उसको जी लिया है।कहानी में अपने किरदार को ढूँढने पर एक बात मैंने महसूस कि है की वो कभी भी आपको दिखाई नहीं देगा पर ऐसा लगेगा जैसे कि वो आपके आँखों के सामने है और आप उसके चेहरे को देख नहीं पा रहे हो या आप उससे बातें करना चाहते हो पर हो नहीं पा रही है।हाँ ये बात अलग है कि वो आपसे आसानी से सारी बातें कर लेता है और आपको अपनी दुनिया में लेके चला जाता है।मैंने जब पहली बार "half Girlfriend" पढ़ी तो रिया सोमानी का चेहरा मेरे आँखों में था और जब मैंने उस फिल्म को देखा तो ऐसा लगा कि नहीं ये चेहरा है ही नहीं उसका।पता नहीं क्यूँ पर मुझे रिया का चेहरा आज भी ऐसा लगता है जैसे वो कहीं छुप के बैठी हुई सबको देख रही है पर हम सब उसे नहीं देख पा रहे है।मैंने इस किरदार को इस लिए बताया कि ये किरदार सबको पता है पर मैं बहुत सी किताबों में किरदार को इतने अच्छे से जाना है कि मुझे लगता है उन किरदारों को बस किताबों में ही रहना चाहिए नहीं तो बाहर पर्दे पे आने के बाद उन किरदारों की चमक चली सी जाती है। अगर आप भी ऐसा महसूस करते है तो तब तो बहुत अच्छी बात है नहीं तो मैं कुछ किताबों के नाम बताऊँगा आप लोग पढ़ के उस किरदार को महसूस करे और तब देखे कि अपनी जिंदगी में आप किसके किरदार बनना पसंद करते है या आपके किरदार को कौन पसंद करता है।
              किताबों के नाम 
I HAD TO A LOVE STORY
OCTOBER JUNCTION
MUSAFIR CAFE
IBNEBATUTI
84
FOUR PATRIOTS
THIS IS NOT YOUR STORY
REVOLUTION 2020
ONE INDIAN GIRL 
AND MANY MORE😊👍.

©Sandeep Sagar kirdar

#Dark
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Sandeep Sagar

सच कहें तो आज तक अपनी भावनाओं को किसी से बताना जरूरी नहीं समझा,बस जो भी अच्छा,बुरा लगा उसे अपने अंदर नहीं तो अपनी डायरी के अंदर छुपा के समझ लिया कि बस ये बातें अब हम दोनों के बीच रह जायेगी।पर हम दोनों में एक बात बहुत समान्य सी है कि हमलोगों को पढ़ तो सब कोई लेता है पर समझ शायद ही किसी को आते है।सब को शायद लगता है शब्द पकड़ लेने से अर्थ समझ आ जाए पर क्या है ना एक शब्द के हजारों अर्थ होते है और हमलोगों के शब्द का अर्थ क्या है ये समझ पाना मुश्किल है।बचपन में माँ बिन एक शब्द कहे ही समझ जाती थी कि क्या चाहिए फिर धीरे-धीरे बड़े होते गए और भावनायें, शब्दों और अर्थों के जाल में फंस कर कहीं दूर चली गई वैसे ही जैसे हम अपने सपनों से,अपने हकीकत से और अपने आप से दूर हो रहे है।
मुझे बस यही लगता था कि लोग शब्दों को ना सुन के ख़ामोशी को सुनना क्यों पसंद नहीं करते।मुझे ख़ामोशी उतनी ही पसंद है जितनी कि छोटे बच्चे की चेहरे की हसी। ख़ामोशी अगर कोई सुनना शुरू कर दीं तो उसे पता चले ख़ामोशी मे जितना शोर है उतना शोर,शोर में नहीं है।
खैर सबको सबकी शोर मुबारक 
मुझको अपनी ख़ामोशी 
खुद के हाल बेहाल निकाले 
जब सब सुन लेंगे ख़ामोशी

©Sandeep Sagar #Hill
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Sandeep Sagar

मैंने बचपन में कसम खाई थी 
कि साथ रहूँगा उम्र भर तुम्हारे 
ये शान ओ शौकत की जिंदगी को धूल कर 
तुम्हारे कदमों में डाल दूँगा सारे सितारें।
हो जब भी दुखों का पहरा है आता 
ना कोई समंदर ना दरिया समाता 
ना कोई रखे है जब मुझसे वो नाता 
फिर तेरी यादों का गहना बना के 
घर में बिछा के वो बचपन की बातें 
हस लेती हूँ थोड़ी छुप छुपा के 
वो आँखों के कोरों से आते है आंसू 
पर उनकी अहमियत को मैं ही हूँ समझूँ 
ये छोटे खिलौने जो तुमने है भेजे 
मेरे अक्सों के है या ये मेरे लिए है 
ढूँढते हो जिनमे तुम मेरी परछाई को 
उनमे कैसे ढूँढ लूँ मैं अपने प्यारे भाई को 
वो है मेरे पास जैसे घर के साथ छत रहे 
मैं रहूँ या ना रहूँ पर साथ वो हर वक़्त रहे
हर दुआ में बस यही रब से हूँ मैं माँगती 
रब मिले या ना मिले बस तुझको ही मैं जानती 
एक दुनिया कम पड़े है तेरे मेरे प्यार को 
सौ जनम में भी तुझे अपना भाई माँगती।

©Sandeep Sagar #Rakhi
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Sandeep Sagar

सपनों में सपने भी हकीकत लगते है पर अगर वही सपने हकीकत बन जाए तो वो सपना लगने लगता है।

©Sandeep Sagar #Journey
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Sandeep Sagar

आज जब घर के दहलीज पे कदम रखा तो जान पाया कि बचपन खत्म हो गई है और अंदर कुछ बचा है तो वो है थोड़ी सी बचपना।जो चौखट बहुत शान से लंबा होने का दंभ भरता था आज उसके बराबर मे खड़ा हो गया था मैं।जो खिड़कियाँ रातों में डराने के लिए बेचैन रहती थी आज वो खुद बिखरी हुई उदास सी नजरों से देख रहीं थीं।जिस बिछावन पे मुझे सुकून भरी नींद आगोश में लेने को बेचैन रहती थी आज उसपे सोते ही ना ही नींद आयी और ना वो सपने।एक चीज थी जो आज भी नहीं बदला थी वो थी भगवान गणेश जी कि फोटो जिसको मैंने लकड़ी के अलमारी के ऊपर चिपकाया था,आज भी वो वैसी ही है जैसे मैंने बचपन में लगाया था पर एक बात है वो अलमारी अब मुझसे ज्यादा छोटा हो गया है जिसके कारण अब मैं गणेश जी से अच्छे से मिल पाता हूँ। 
अलमारी में डिब्बे खाली पड़े हुए है मेरे सपनों की तरह।पुराने सिक्के जिसको मैंने गुल्लक में रखा था,पथराई नजरों से देख रहे थे।पूरा घर खाली खाली सा लग रहा था,ऐसे जैसे मानो किसी ने अपनी जिंदगी पूरी कर ली हो और अपने आप को सबकी यादों में कैद कर के सुकून के साथ थोड़ा सा ग़म लेके जा रहा हो।बस इसी सुकून में हम भी अपनी परछाई को देख कर यादों का सिलसिला बुनना शुरू किया है,अब आगे देखते है क्या होता है।

©Sandeep Sagar #Luka_chuppi
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Sandeep Sagar

आज कल ऐसा लग रहा है जैसे मै खुद से बहुत दूर निकल गया हूँ।मैं जो पहले था वो अब नहीं हूँ,ये बात मैं समझ तो रहा हूँ पर यकीं नहीं कर पा रहा हूँ।पहले जो मैं सबको खुश देखना चाहता था पर आज खुद की खुशी गायब हुई पड़ी है।पहले सबसे मिलना पसंद था पर आज खुद के अलावा किसी से बात करना भी गुनाह सा लगता है पर फिर भी अच्छा लग रहा है कि अकेले में रह के खुद के सुकून को महसूस कर पा रहा हूँ,अपने बारे में सोच पा रहा हूँ और मैं क्या हो सकता हूँ अकेले रह के,क्या कर सकता हूँ,या फिर क्या अकेले जीवन के सफर में सफ़र कर सकता हूँ कि नहीं ,ये सब बातें जान पा रहा हूँ।ये बातें सबको शायद थोड़ी अटपटी या फिर मज़ाक सी लगे पर किसी का मज़ाक किसी की  पूरी जिंदगी होती है और जिंदगी इतनी छोटी भी नहीं होती है कि उसे दो लाइन के हसी मे उड़ा दिया जाए।खैर मैंने अब अपने रास्ते को अलग कर दिया है और जिसको जिसको मेरे रास्तों से परेशानियाँ है वो अपने रास्तों पे खुश रहें और जिसको परेशानी नहीं है वो भी अपने रास्तों पे ही चले।अकेले रहना सीख लिया है मैंने अब और ना तो दोस्त बनाने है और ना ही किसी का दोस्त बनना है और ना ही कोई नए रिश्तों को नाम देना है।जितने थे उतनो से ही रिश्ता पूरा नहीं हो पाया है या नहीं हो पा रहा है। जितने दिन सबके साथ थे बहुत अच्छे दिन थे अकेले भी वैसे ही मिले शायद।
                       धन्यवाद 🙏

©Sandeep Sagar #philosophy
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Sandeep Sagar

आज कल ऐसा लग रहा है जैसे मै खुद से बहुत दूर निकल गया हूँ।मैं जो पहले था वो अब नहीं हूँ,ये बात मैं समझ तो रहा हूँ पर यकीं नहीं कर पा रहा हूँ।पहले जो मैं सबको खुश देखना चाहता था पर आज खुद की खुशी गायब हुई पड़ी है।पहले सबसे मिलना पसंद था पर आज खुद के अलावा किसी से बात करना भी गुनाह सा लगता है पर फिर भी अच्छा लग रहा है कि अकेले में रह के खुद के सुकून को महसूस कर पा रहा हूँ,अपने बारे में सोच पा रहा हूँ और मैं क्या हो सकता हूँ अकेले रह के,क्या कर सकता हूँ,या फिर क्या अकेले जीवन के सफर में सफ़र कर सकता हूँ कि नहीं ,ये सब बातें जान पा रहा हूँ।ये बातें सबको शायद थोड़ी अटपटी या फिर मज़ाक सी लगे पर किसी का मज़ाक किसी की  पूरी जिंदगी होती है और जिंदगी इतनी छोटी भी नहीं होती है कि उसे दो लाइन के हसी मे उड़ा दिया जाए।खैर मैंने अब अपने रास्ते को अलग कर दिया है और जिसको जिसको मेरे रास्तों से परेशानियाँ है वो अपने रास्तों पे खुश रहें और जिसको परेशानी नहीं है वो भी अपने रास्तों पे ही चले।अकेले रहना सीख लिया है मैंने अब और ना तो दोस्त बनाने है और ना ही किसी का दोस्त बनना है और ना ही कोई नए रिश्तों को नाम देना है।जितने थे उतनो से ही रिश्ता पूरा नहीं हो पाया है या नहीं हो पा रहा है। जितने दिन सबके साथ थे बहुत अच्छे दिन थे अकेले भी वैसे ही मिले शायद।
                       धन्यवाद 🙏

©Sandeep Sagar
  #Akele
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Sandeep Sagar

मेरी दुनिया में इतनी जो शोहरत है
मेरे माता-पिता कि बदौलत है।
आदित्य राज

©Sandeep Sagar #parent
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