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anuj5009765614358
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अनुज

लखनऊ, भारत

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अनुज

मंदिर की मां को सबने पूजा,
घर के भगवान न पूजे जाएं,
मन में ईर्ष्या, छल कपट भरा,
और तन गंगा में कूदे जाएं,
              मंदिर की मां को सबने पूजा!!
              घर के भगवान न पूजे जाएं!!
घर में मां ने रहकर भूखे,
तुम सबको दिया निवाला है,
उनको क्या मालूम था ऐसा,
कि मन बच्चों का काला है,
एक भी आंसु उनके निकले,
फिर तुमको ईश्वर नहीं मिलेंगे,
पुण्य क्षीण हो जाएंगे सब,
खुशहाली के फूल नहीं खिलेंगे,
कुछ ऐसा भी कर दो इंसानों,
मां बाप के चेहरे खिल जाए,
             मंदिर की मां को सबने पूजा!!
              घर के भगवान न पूजे जाएं!!
खुशहाली के मौकों पर,
कितना उत्पात मचाओगे,
जिन मां बाप को धिक्कारा,
फिर उनके चरणों में आओगे,
सब कुछ न्योछावर कर डाला,
कितना हिसाब दे पाओगे,
अब तुम तुले हुए हो कि,
ईश्वर तुम पर उपकार करे,
और एक पैर पर खड़े रहे कि,
जो मन में हो वो मिल जाए,
              मंदिर की मां को सबने पूजा!!
              घर के भगवान न पूजे जाएं!!

©अनुज #oldage
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अनुज

White कर्म को सिंचित करूं मैं
फूंक कर पग को धरूं मै,
स्वांस को मै भींच लेता 
प्राण को मै खींच लेता
दो गज धरा को नाप लेता
और स्वयं अभिशाप लेता
कर रहा सर्वस्व अर्पण 
मृत्यु को जीवन समर्पण......

प्रेम का तर्पण करूं मैं,
स्वयं का समर्पण करूं मैं,
आशाओं की रेखा खींच लेता,
अश्रुओं से मन को सींच लेता,
मखमल की चादर छोड़ देता,
बिस्तर मगर पाषाण लेता,
आसमान को कर के दर्पण,
मृत्यु को जीवन समर्पण.......

©अनुज #Poetry
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अनुज

White संबंधों से पृथक,
जीवन का मूल्यांकन,
मन आश्वस्त और
मन से ही मन का अनबन,
प्रेम सर्वश्रेष्ठ परन्तु,
त्याग की अनुभूति भव्य,
अग्नि में समाहित सार,
जीवन का अंतिम गंतव्य,
वैराग्य स्वयं को कर समर्पित,
ओंकार में लीन,
सामाजिकता से परे,
व्यक्ति अर्थविहीन,
कब तक इस हाड़-मांस में,
स्वांसो का अनुमान,
फिर बची राख अवशेष,
मगर पड़ा रहा अभिमान,
कब जाने हो जाए,
मेरे जीवन का तर्पण,
पंचतत्व में हो विलीन,
मुक्त रहे मेरा कण-कण,
संबंधों से पृथक,
जीवन का मूल्यांकन.....

©अनुज #lifelessons #Life
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अनुज

White कर रहा हूं रात दिन
और कितना श्रम करूं 
फटी हुई कमीज को
और कितना नम करूं 
जी रहा हूं मार कर मन
छोड़ता मैं सब गया
ख्वाहिशों की कतारें 
और कितना कम करूं
                     कर रहा हूं रात दिन
                     और कितना श्रम करूं
रोज कन्धे सह रहे है
बोझ जिम्मेदारीयों का
नजरे छिपाते चल रहे
जाने कितने उधरियों का,
बालकों सा चंचल बनू
और फिर बहुत उधम करूं
मन मेरा भी चाहता है,
कम थोड़ा परिश्रम करूं 
                     कर रहा हूं रात दिन
                     और कितना श्रम करूं
माता पिता भूखे रहे
या बच्चों का बचपन छीन लूं
पत्नि के सुख को मार कर 
खुशियों के आंसु बीन लूं
खुद को खुद ही मार कर,
दुखों को यूं खत्म करूं,
या फिर सुखों की पोटली,
पाने का मै वहम करूं
                     कर रहा हूं रात दिन
                     और कितना श्रम करूं

©अनुज 
   Pushpvritiya  Divya Joshi  Sudha Tripathi  RAVINANDAN Tiwari

Pushpvritiya Divya Joshi Sudha Tripathi RAVINANDAN Tiwari #Poetry

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अनुज

White इतने ऊंचे ऊंचे पर्वत,
इतनी नीची नदिया क्यों 
कल ही छोड़ा साथ तुम्हारा, 
लगती जैसे सदियां क्यों,
आओ ! हमारे पास रहो,
जैसे बादल से पर्वत मिलते है,
मैं बन कींच,कमल तुम बनो,
चलो साथ में खिलते है,
दिन में रोज उजाला है,
पर अंधकार में रतियाँ क्यों,
इतने ऊंचे ऊंचे पर्वत,
इतनी नीची नदिया क्यों.....
तुमको वन उपवन समझूं 
खुद को बारिश की बूंदे
इतना प्रेम समर्पण है,
फिर गहराई में क्यों कूदे 
सारे वृक्ष बुजुर्गो ने,
हिल-हिल कर सहमति दे डाला,
सबने सहज रूप स्वीकार किया,
फिर पीछे इतनी बतिया क्यों
इतने ऊंचे ऊंचे पर्वत,
इतनी नीची नदिया क्यों...

©अनुज 
  #wallpaper
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अनुज

White तारे गिन कर रात बिताना अच्छा है,
जैसे हो हालात बिताना अच्छा है,
कौन बनेगा जाने किसकी परछाईं 
जीवन अपने साथ बिताना अच्छा है,

बिन छत के बरसात बिताना अच्छा है,
प्यार में अपना ताना बाना अच्छा है,
वैसे तो परहेज मुझे सबसे घर में,
पर तेरा घर में आना जाना अच्छा है,

©अनुज #love_shayari
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अनुज

White मैं सिमट कर प्रेम में, गुमनाम हो जाऊं,
तू मेरा और मैं तेरा आयाम हो जाऊं,
टूटकर चाहे मुझे गर कोई मीरा तो,
मैं राधा का कन्हैया और सीता राम हो जाऊं।

©अनुज 
  #love_shayari
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अनुज

White  कैसे ज्यों के त्यों रहे,
प्रेम को कैसे करे परिभाषित,
कैसे बिन आलिंगन,
प्रेम को रखें मर्यादित 
हां, मैं स्पष्टता को
प्रमाणित करना चाहता हूं,
परन्तु, बिना शब्दों के अनुवादित
कोई छद्म और बिना भेद भाव,
जहां सिर्फ प्रेम हो, और
हो शब्दों का आभाव,
जहां समझ सके सिकुड़न,
माथे की हम,
और अंतर्मन के पीड़ा को,
मिल जाए थोड़ा ठहराव,
हां! अगर किंचित मात्र भी,
मन सकुचा जाए,
या फिर की कोई और,
हृदयतल में घर कर जाए,
निरुत्तर, सांझ न होने देना,
अपने नयनों को,
अश्रु मगन होने देना,
बस इतना ही हो,
कि मैं अपना आधार बदल दूंगा,
लिखे पृष्ठ प्रेम सहित,
श्रृंगार बदल दूंगा,
कहे वचन को फिर न,
मैं धूमिल होने दूंगा,
हे प्रियशी! बीज प्रेम के,
मन में, फिर न बोने दूंगा,
न ही स्वयं को मैं,
तुम पर होने दूंगा आश्रित,
न मन में प्रश्न एक भी,
न तुमको खुद पर 
होने दूंगा आच्छादित,
चलो रहे ज्यों के त्यों,
और करे प्रेम को परिभाषित।

©अनुज #love_shayari 
  Pushpvritiya RAVISHANKAR PAL Divya Joshi Sudha Tripathi Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय"

#love_shayari Pushpvritiya RAVISHANKAR PAL Divya Joshi Sudha Tripathi Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय" #Poetry

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अनुज

फिर तुम्हारी बातें और मुलाकातें
चलो आगे बढ़ते हैं....
आंसू आंखों में है, ऊपर से बरसातें
चलो आगे बढ़ते हैं....
आखिर कब तक छिपकर तुमसे 
यूं मिलना हो पायेगा
कोई  देख न‌ ले आते जाते
चलो आगे बढ़ते हैं....

©अनुज 
  #Remember #nojohindi
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अनुज

हर चेहरे का वो नूर जमीं पर रह गया
सारे मन का फितूर जमीं पर रह गया
जो कहते थे मिला देंगे खाक में तुझको
जलकर वो गुरूर जमीं पर रह गया

आसमा से बहुत दूर जमीं पर रह गया
बिन पर के एक मजबूर जमीं पर रह गया
जिनके तेवर थे शैलाबो से बगावत वाले
शीशे सा चुकनाचूर जमीं पर रह गया

मेरे दिल का नासूर जमीं पर रह गया
वो हुस्न का शुरूर जमीं पर रह गया
नफरतो के ढेर पर वो पा गया मुकाम
मोहब्बत में बेकसूर जमीं पर रह गया

©अनुज 
  #nojohindi
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