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abhijitagrahari4525
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Abhijit Agrahari

poet,writter,sayar

www.laxmi@gmail.com

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Abhijit Agrahari

वोटर और प्रत्याशी के बीच महत्त्वपूर्ण रामायणिक धरमयोद्धिक बातें.. प्रत्याशी की पूरी बात,,वोटर एक लाइन में खत्म कर देता है.....

प्रत्याशी- मात-पिता तुम मेरे शरण गहूं मैं किसकी,तम बिन और न दूजा आस करूं मैं किसकी||
वोटर- तुम पूरन परमात्मा तुम अंतर्यामी||
प्रत्याशी- चरण पकरि कर जोरि मनाऊं,यहि अवसर अब केहि गोहराऊं||
वोटर-राम दुलारे तुम रखवारे,होत न आज्ञा बिनु "पैसा" रे||
प्रत्याशी- पूजा जप तप नेम अचारा,नहि जानत कछु दास तुम्हारा||
वोटर- आपन तेज सम्हारो आपै,तीनहुं लोक हांकते कापै||
प्रत्याशी- जेहि विधि होहि नाथ हित मोरा,करहुं सुवेग दास मय तोरा|
वोटर- हौइहि वहीं जो राम रचि राखा||

फिर हर प्रत्याशी को वोटर,, तेरे जैसा यार कहां,,,,,
 Abhijit Agrahari

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Abhijit Agrahari

लग जा गले   "वैसे लोग  ऊंचे होकर  भी  नीच कहे जाते हैं
     जैसे लोकसभा को निम्न सदन कहा जाता है..!"

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Abhijit Agrahari

एक वादा "वैसे   लोग ऊंचे  होकर भी नीच कहे जाते हैं
 जैसे लोकसभा को निम्न सदन कहा जाता है..!"@_Abhijit

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Abhijit Agrahari

इज़हार "एक दिल था बेचारा जो हारा गया
जंग के  मध्य पहले ही मारा गया
 थे जमीं पर मेरे इश्क़ के प्रश्नचिन्ह
    फिर उत्तरों में हमीं को उतारा गया.!"
@Abhijit aghrahari

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Abhijit Agrahari

फूलों सी "अपनी हद में रह कर करना दान हो या दक्षिणा
    वरना  तुम्हें  वक्त का  रावण   उठा  ले जाएगा.!"
(अंसार कबरी)

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Abhijit Agrahari

तब दिल का काला होना लाजिम है
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जब आंखें काली-काली हो
बाल भी अपने काले हो
पतलून भी अपनी काली हो
हर चेहरो पर काला तिल हो
सबकी निगाहें कातिल हो
जहां काले-गोरे का भेद रहे
सिर्फ तन का रंग सफेद रहे
जब चश्मे का काला होना लाजिम है
तब दिल का काला होना लाजिम है

जब घनघोर घटाएं काली हो
मानवता की परछाई काली हो
सारा माहौल  ही  काला लगता हो
पूरा-पूरा भूमंडल काला लगता हो
गर तेरे संग में कालिख लग जाए
अन्तर्मन अक्षर अक्षर लिख जाए
चोटिल मन का काला होना लाजिम है
तब दिल का काला होना लाजिम है..!"
Abhijit Agrahari

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Abhijit Agrahari

Press अंक अंक जब मिल जाते तो
 बहुत खुशी होती  जानम..!"
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भुज परिधि बन्ध के घेरों से
जब व्यास किसी का बढ़ जाता है
आकार नही मिल पाता किसी का
पानी सर से चढ़ जाता है

तो चाप लगाकर अभीष्ट बनाने में
रोज खुदकुशी होती  जानम।।

स्थानीय मान निकालने मे
खुद का अभिमान निकल पड़ता है
हर  एक कोष्ठक पहरेदार किन्तु
कोई  न सोता  जगता है

भिन्न-भिन्न में बंटे है सब
अभिन्न हमनशी होती जानम।।

जीवन के इस प्रमेय राह में
अक्सर इश्क़ के रहबर कट जाते हैं 
खंड-खंड कर दूं मन वाले
खुद गुणनखंड में फंस जाते हैं 

प्रतिस्पर्धी  संख्याओं में
गर एक शशी होती जानम।।

कई सवालों के बाराती 
जब उत्तर के घर आते हैं
भटक भटक कर रेखाओं से
प्रतिशत गणित लगातें है

रिश्तों की इस जोड़ गांठ में
काश! निमोशी होती जानम..!"

अंक अंक जब मिल जाते तो
बहुत   खुशी  होती   जानम।।।
Abhijit Sultanpuri

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Abhijit Agrahari

गुनहगारों  की   हिफाजत  कां  मतलब
ज़रा देख वक्त की नजाकत कां मतलब

कोई शान  से जियें -मरे तो और बेहतर
सिर्फ मरना है नशे की लत कां मतलब

कम से  कम इक बरस का  तकाजा ले 
इससे -  उससे   फजीहत  कां  मतलब

पहले मरने का  सुबूत तो  दे दुनिया को
तेरे जिंदा होने की वकालत कां मतलब

इधर से उधर तक बधाई का सिलसिला
ये चुनावी हवा की  ताक़त  कां  मतलब

अब न करना चरागों के वजूदों पे सवाल
इन उजालों की  मोहब्बत  कां  मतलब

गज़लें तो हम भी कहते हैं जनाब़  मगर
सच कहने  में इत्ती  दहशत कां मतलब

जहां   इश्क को बगावत  समझा  जाए
फिर  तो   ऐसी  हूकूमत   कां   मतलब

अदब लफ्ज़ हर्फ किस अंदाज से धोएं
उस  तस्वीर की  शराफ़त  कां  मतलब

बड़ा   ज्ञानी तालीमवर  है अभिजीत तू
तेरे पोशाक से ही गफलत  कां  मतलब

वक्त का मिसरा हैं‌  जुमला भी वक्त का  
खुद  की आ जाए ये नौबत कां मतलब....!!"
___________________
@Abhijit Sultanpuri

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Abhijit Agrahari

छप्पन इंची छाती की दुर्दशा
_______________________
चौड़ी सड़कों पर
छातियों को चौड़ी 
करने वालों
जरा एक नजर डालो तो सही
उन तमाम "छप्पन इंची" छातियों पर.....

क्या हुआ..??
खुद की छातियां आत्मघाती हो गई
   या 
अपने पौरुष के दमखम को देखकर
छातियां,,चौड़ी ,,नहीं कर पाए तुम

वाकई गजब
कभी नारों से पैमाइश
तो कभी दुशासन वाली निगाहें
विश्व की छातियां मसलने
का सलीका...
सहसा इन छातियों की दुर्दशा

इस वीभत्स रस का सेवन करने वाले
नरपिशाचों
क्या छातियों का कोई स्टेडियम नहीं..?
कोई मैदान नहीं,, कोई मानक नही
सरे राह यूं ही मशल दिए जाते हैं
आखिर इसका जिम्मेदार कौन‌,, है??

मुझे लगता है
छातियां नेताओं और नरभक्षियो
के भाषणों और शोषणों की
आभारी रहेगी....
____________ Abhijit Agrahari

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Abhijit Agrahari

मित्र दर्शन
______________
दुनिया की सबसे अच्छी
मित्र कहीं जाती है
"किताबे"
मगर आज तलक
वो पाठ्यक्रम नहीं आया
जिसे हम पढ़ना चाहते हैं..!"

आखिर क्या पढ़ना चाहते हैं हम
कभी सोचा तुमने?? 
न ललक है न लगन
फिर भी हम उसके करीब होते जा रहे
अनवरत ये कौन सी जिज्ञासा है

किंतु ये अक्सर करते हैं
जो हमें अच्छा लग जाता है
उसको हम फाड़ देते हैं
सोचते हैं पहुंच जाएंगे उसकी तह तक

उसकी बिना अनुमति के
अनेक प्रतिष्ठित परतों को निचोड़ते हुए
अपनी जल्द से उसकी जिल्द की ओर
इस प्रकार के पथ
दोनों ही अज्ञानता को कायम करते हैं

जबकि हमें यह ज्ञात है 
कि "कागज" और "कलम" की मार में
तलवारें लहूलुहान हुईं है
_____ Abhijit Agrahari

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