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शशांक की कलम से

बस मनमौजी,मन में आया लिख गया

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शशांक की कलम से

टेसू के रंगों सी ज्वाला,वो मन में भड़काती है

कोयल की बोली में मीठे,मीठे गीत सुनाती है

महुआ सी मादकता लेकर,तन-मन को बहकाती है

आमों की बौरों सी पगली,सबको ही बौराती है

फागुन में होली आकर तब,दिल को शीतल करती है

गालों पर साजन के सजनी,जब प्रीत का रंग लगाती है

©शशांक की कलम से
  #prem
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शशांक की कलम से

Jai Shri Ram "प्रतीक्षा"
प्रतीक्षा "अहिल्या" की
प्रतीक्षा "निषादराज" की
प्रतीक्षा "ऋषि शरभंग" की
प्रतीक्षा "माता शबरी" की
प्रतीक्षा "हनुमंत लाल"की
प्रतीक्षा "माता सीता"की
प्रतीक्षा स्वयं "प्रभु राम"की

कमलनयन,नयनाभिराम 
बाल राम के नेत्रों में खोकर 
समाप्त हुई समस्त प्रतीक्षाएं
मिट गई मन की सब पीड़ाएं

#जय श्री राम
#शशांक की कलम से

©शशांक की कलम से
  #jaishriram
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शशांक की कलम से

कुटी बना काननों में,शिविर लगा वनों में
वनवास काल राजा,राम ने बिताया था

नहीं कुछ वर्षों का,कई शत वर्षों का
कष्ट वनवास का यूँ,प्रभु जी ने पाया था।।

यक्ष-देवता-नरों ने,भालू और वानरों ने
मिलकर सबने ही,लंका को ढहाया था।

लौटे जब राजा राम,पावन अवध धाम
खुशियों के आँसुओं से,दीपों को जलाया था।।

©शशांक की कलम से
  #ram_rajya
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शशांक की कलम से

बचपना कब गया,कब जवाँ हो गए
दिन खुशियों भरे,सब हवा हो गए।
ज़िंदगी ने हमें,यूँ सताया की हम
अपने ही दर्द की खुद दवा हो गए

©शशांक की कलम से
  #Feeling
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शशांक की कलम से

टूट गया जो टूटा,उसको जोड़े कौन??
धार नदी की तेज,उसको मोड़े कौन?
आगे जिसको आना हो वो आ जाए
सुकूँ भला है अपना,उसको छोड़े कौन?

©शशांक की कलम से
  #coldwinter
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शशांक की कलम से

अब कल क्या हो जाए, कि किसने देखा है?
ताज मिले छिन जाए, कि किसने देखा है?
श्रीराम अवध को छोड़,थे वन को चले गए
क़िस्मत क्या पलटी खाए, कि किसने देखा है?
#शशांक की कलम से

©शशांक की कलम से
  #exitpole
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शशांक की कलम से

तुम्हारे साथ,कंटकाकीर्ण मार्ग भी
पुष्पों के बिछौने सा लगता है।
क्षुधा- तृष्णा की कोई अनुभूति नहीं होती
अंतरात्मा तृप्त हो मोक्षगामी होने लगती है।

तुम्हारे बिना मैं स्वयं को देख भी नहीं पाती
तुम्हारे दृग ही तो मेरे दर्पण हैं
जो दिखाते है मेरा सीधा और वास्तविक प्रतिबिंब
विज्ञान की सारी सीमाओं से परे।

मैं वह शून्य हूं जिसका मान तभी होता है
जब होती हूं तुम्हारे दाहिनी ओर
तुम भी तो मेरे लिए यही भावना रखते हो 
मैंने हर पल ये स्नेह तुम्हारे नेत्रों में देखा है।

मैंने उन तेरह वर्षों में जितना तुम्हें जाना है
उतना शायद ही तुम्हें कोई जान सकेगा
मैं सबसे इतना ही कहना चाहती हूं
राम और सीता अलग नहीं बल्कि एक ही हैं।

और ये बात केवल वे समझेंगे
जिन्होंने कभी प्रेम का अनुभव किया हो
कष्टों की परिभाषा गढ़ने वाले
शायद ही कभी हमें समझेंगे
या शायद कभी भी नहीं

©शशांक की कलम से #vanvas
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शशांक की कलम से

फेस बुक और व्हाट्स एप में माँ ही माँ लो छाई है
मातृ दिवस पर देते दिखते सब के सभी बधाई है।
दिवस बड़ा ये पुण्य हुआ,खुशियों की बेला छाई है
फिर कौन है ऐसा माँ जिसकी वृद्धाश्रम में आई है?

©शशांक की कलम से #shashank

#MothersDay
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शशांक की कलम से

एक चाय
 और एक तुम
जितना मिल
 जाए उतना कम

©शशांक की कलम से #tea
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शशांक की कलम से

दुख अपना वो खूब छुपाए रखते हैं
दिल में तो तूफ़ान दबाए रखते हैं
लेकिन कुछ पहचान अलग ही है उनकी
ओंठो पर मुस्कान बनाए रखते हैं

©शशांक की कलम से #यूहीं
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