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vikaskori6175
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Vikas Kori

Writer & Poet

https://m.youtube.com/user/Vikaskori1

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Vikas Kori

जब जब आया ज़िन्दगी में ग़मो का सिलसिला 
माँ तेरी गोद में सर रख कर एक सुकून सा मिला 

औरो से मै रखता हूँ पर तुझसे न गिला 
"माँ" तू ही तो थी जिसकी ऊँगली पकड़ कर था मै चला 

आज भी कभी चोट लगे या मै बिखरा
मुह से मेरे पहला शब्द बस माँ निकला 

दूर कही जाता हूँ तो बार बार याद करती है 
मै जानता हूँ बैठ कर मेरा इन्तज़ार करती है 

कोई आंच न आए मुझ पे बस यही दुआऐ करती है 
खुद मुसीबतें लाख सहले पर मेरे लिए वो डरती है 

मुझे देख के परेशान वो कही खोई थी 
उसकी आखे बता रही है की वो बहुत रोइ थी 

"कोरी" तू कर्ज चूका नहीं सकता जो "माँ" ने किया है 
किसी ने ठीक ही कहा है 
भगवान हर जगह हो नहीं सकते तभी माँ को दिया है 

उसके पास कभी बैठा तो बस एक शिकायत करती है 
बेटा कभी मुझे भी वक्त दिया कर , ये आँखे तुझे देखने को तरसती है 

हर रिश्ते इस ज़माने मै हमको मिल जाते  है कही 
बस प्यार माँ बाप का कभी मिलता नहीं 

वो देवी जगजननी ममता का सागर , इस में  कोई भ्रम नहीं 
माँ शब्द को बया करदे जो ऐसी दुनिया में कलम नहीं 
ऐसी कोरी को कलम नहीं.. #MothersDay
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Vikas Kori

दिया है दिल अगर उस को , बशर है क्या कहिये 
हुआ रक़ीब तो वो , नामाबर है , क्या कहिये

यह ज़िद की आज न आये और आये बिन न रहे 
काजा से शिकवा हमें किस क़दर है , क्या कहिये
ज़ाहे -करिश्मा के यूँ दे रखा है हमको फरेब 
की बिन कहे ही उन्हें सब खबर है , क्या कहिये

समझ के करते हैं बाजार में वो पुर्सिश -ऐ -हाल 
की यह कहे की सर -ऐ -रहगुज़र है , क्या कहिये

तुम्हें नहीं है सर-ऐ-रिश्ता-ऐ-वफ़ा का ख्याल 
हमारे हाथ में कुछ है , मगर है क्या कहिये

कहा है किस ने की “ग़ालिब ” बुरा नहीं लेकिन 
सिवाय इसके की आशुफ़्तासार है क्या कहिये
BY :(MIRZA GHALIB) #alone
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Vikas Kori

कोई दिन गर ज़िंदगानी और है 
अपने जी में हमने ठानी और है 

आतिश -ऐ -दोज़ख में ये गर्मी कहाँ 
सोज़-ऐ -गम है निहानी और है
बारह देखीं हैं उन की रंजिशें , 
पर कुछ अब के सरगिरानी और है 

देके खत मुँह देखता है नामाबर ,
कुछ तो पैगाम -ऐ -ज़बानी और है 

हो चुकीं ‘ग़ालिब’ बलायें सब तमाम ,
एक मर्ग -ऐ -नागहानी और है .

BY :(MIRZA GHALIB)


 #mirzagalib
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Vikas Kori

कोई दिन गर ज़िंदगानी और है 
अपने जी में हमने ठानी और है 

आतिश -ऐ -दोज़ख में ये गर्मी कहाँ 
सोज़-ऐ -गम है निहानी और है
बारह देखीं हैं उन की रंजिशें , 
पर कुछ अब के सरगिरानी और है 

देके खत मुँह देखता है नामाबर ,
कुछ तो पैगाम -ऐ -ज़बानी और है 

हो चुकीं ‘ग़ालिब’ बलायें सब तमाम ,
एक मर्ग -ऐ -नागहानी और है .

BY :(MIRZA GHALIB) #mirzagalib
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Vikas Kori

Bashir Badr shab..

Bashir Badr shab.. #शायरी #nojotovideo

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Vikas Kori

आप की याद आती रही रात भर ,
चांदनी दिल दुखाती रही रात भर

गाह जलती हुई गाह बुझती हुई ,
शाम-ऐ-गम झिलमिलाती रही रात भर
कोई खुशबु बदलती रही पैराहन ,
कोई तस्वीर गाती रही रात भर

फिर सवा साया-ऐ-शाख-ऐ -गुल के तले ,
कोई किस्सा सुनाती रही रात भर

जो न आया उसे कोई ज़ंज़ीर-ऐ-दर ,
हर सदा पर बुलाती रही रात भर

एक उम्मीद से दिल बहलाता रहा ,
एक तम्मन्ना सताती रही रात भर

BY :(faiz ahmed faiz) #faizahmedfaiz
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Vikas Kori

अब के यूँ दिल को सजा दी हम ने 
उस की हर बात भुला दी हम ने .

एक एक फूल बहुत याद आया 
शेख -ऐ -गुल जब वो जला दी हम ने .
आज तक जिस पे वो शर्माते हैं ,
बात वो कब की भुला दी हम ने .

शहर -ऐ जहाँ राख से आबाद हुआ ,
आग जब दिल की बुझा दी हम ने .

आज फिर याद बहुत आया वह 
आज फिर उस को दुआ दी हम ने .

कोई तो बात है उस में ‘फैज़” 
हर ख़ुशी जिस पे लूटा दी हम ने . !!

BY :(faiz ahmed faiz) #faizahmadfaiz
#poetry
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Vikas Kori

दुनिया की समझ नहीं मुझको,
 खली सा कुआ  देखो...

 दुआ का असर नहीं मुझ पर,
 देकर कोई बद्दुआ देखो||
(विकास कोरी) #world_health_day 
#शायरी
#उर्दुशयरी
#poetry
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Vikas Kori

एहसासों ने तबाही का मंजर भी देखा है..
कम्बख़त तू है कि, दुनिया के रंग में बहका हैं।

आलम ये है तेरी बेरुखी का सनम,
मेरे दर्द को तेरे सिवा हर शख्श ने देखा है।।
(विकास कोरी) #world_health_day 
#शायरी
#उर्दुशयरी

world_health_day शायरी उर्दुशयरी

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Vikas Kori

#poetryonline
#onlinepoetry
#poetry #fatherday #पिता
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