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abhishekyadav3034
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Abhishek Yadav

मैं शब्दों में जीता हूँ, अर्थों को समझने के लिए।😍 प्रकृति प्रेमी, साहित्यिक।।

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Abhishek Yadav

White एक सितारा हुआ करता था, आज सितारों में खो चुका है।
 कभी साथ हुआ करता था अब यादों में हो चुका है।।

माँ भारती की सेवा में जीवन समर्पित करता था हर।
 वसुधावासी के हृदय में प्रेम सहित वह रहता था।।

मानव नही वह देवता था जो वसुधा पर जन्म लिया।
उसका न कोई शत्रु था, उसने ऐसा कर्म किया।।

अब सिर्फ उसकी यादें हैं जो यादों में रह जायेंगी।
जब भी नाम जुबां पर होगा आंखे नम रह जायेंगी।।
        -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #Ratan_Tata  गोल्डन कोट्स इन हिंदी

#Ratan_Tata गोल्डन कोट्स इन हिंदी

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Abhishek Yadav

∆∆ नवरात्रि (मॉं दुर्गा) ∆∆
      
सतत् ऊर्जा के संचयन, संलयन और रूपांतरण के लिए शक्ति के साथ एक बेहतर संयोग और समन्वय आवश्यक है। पुरुष और प्रकृति के तादात्म्य से पूर्णता जन्म लेती है दोनों एक दूसरे के पूरक है। ऊर्जा के एक स्थाई स्रोत के रूप में शक्ति की उपस्थिति को अनुभूत करनें के लिए खुद के शिव तत्व को परिमार्जित करना पड़ता है तभी इसका सहज साक्षात्कार सम्भव है। चैतन्य यात्रा में शिव-शक्ति,पुरुष-प्रकृति ये सब उस आदि ब्रह्म के प्रतीक है जिनका अंश लेकर हम इस ग्रह पर विचरण कर रहें हैं।

मन के तुमुल अन्धकार के समस्त प्रयास शक्ति से सम्बंधता बाधित करने के रहते है। वो हमें दीन असहाय भरम में पड़े देखना चाहता है उसकी चाह में कुछ अंश प्रारब्ध का है तो कुछ हमारे कथित अर्जित ज्ञान का।

शक्ति स्वरूपा नाद को अनुभूत करने के लिए कामना रहित समर्पण चाहिए होता है। अस्तित्व को मूल ऊर्जा स्रोत से जोड़ने की अपेक्षित तैयारी भी अनिवार्य होती है।
'स्व' को व्यापक दृष्टि में पूर्ण करने के लिए शिव और शक्ति से सम्मलित ऊर्जा आहरित करनी होती है।

आप्त पुरुष अहंकार को तज शक्ति की सत्ता को स्मरण करते है। उसकी उपस्थिति में याचक नही अधिकारपूर्वक ढंग से खुद को समर्पित कर पूर्णता की प्रक्रिया का हिस्सा बनतें हैं। पौराणिक गल्प से इतर पुरुष प्रकृति के सांख्य योग के बीज सूत्र सदैव से अखिल ब्रह्माण्ड में उपस्थित रहते है। अपनी तत्व दृष्टि और पुनीत अभिलाषा से उनसे केंद्रीय संयोजन और संवाद की आवश्यकता होती है।

शिव तत्व को शक्ति के समक्ष समर्पित करके खुद की लघुता का बोध प्रकट होता है। और यही लघुता अस्तित्व की ऊंची यात्राओं का निमित्त बनती है। कण-कण में चेतना और संवदेना को अनुभूत करनें के लिए खुद को देह लिंग और ज्ञान के आवरण से मुक्त कर सच्चे अर्थों में मुक्तकामी और पूर्णतावादी बनना पड़ता है। 

रात्रि अन्धकार का प्रतीक लौकिक दृष्टि में मानी गई है, परंतु रात्रि वस्तुतः अन्धकार की नही अपने अस्तित्व की अपूर्णता का प्रतीक है। दिन के प्रकाश में अन्तस् के उन गहरे वलयों को हम देख नही पाते है। जिन पर अहंकार की परत जमी होती है। रात्रि का अन्धकार अन्तस् में प्रकाश आलोकित करने का अवसर प्रदान करता है, जिसके माध्यम से हम अपने अन्तस् में फैले अन्धकार को देख सकते हैं। और बाहर से अन्धकार से उसकी भिन्नता को अनुभूत कर सकते हैं। 

शक्ति की उपादेयता हमें आलोकित और ऊर्जित करने की है। पुरूष और प्रकृति का समन्वय ब्रह्माण्ड के वृहत नियोजन का हिस्सा है जो जीवात्माएं इस नियोजन में खुद की भूमिका को पहचान लेती है। वें सच में अस्तित्व की समग्रता को भी जान लेती है। शिव-शक्ति के तादात्म्य के अनुकूल अवसर के रूप में संख्याबद्ध दिन या रात का निर्धारण एक पंचागीय सुविधा भर है, इस उत्सव में खुद को समर्पित और सहज भाव से शामिल करके खुद को परिष्कृत किया जा सकता है। और उस अनन्त की यात्रा की तैयारी के लिए आवश्यक ऊर्जा का संचयन भी किया जा सकता है जिसके बल पर हमें पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण तोड़कर एक दिन उसी शून्य में विलीन हो जाना है जहाँ से एकदिन सायास हम यहां आए थे।
     -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #navratri  अनमोल विचार आज शुभ विचार

#navratri अनमोल विचार आज शुभ विचार

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Abhishek Yadav

White ◆◆ जीवन-मृत्यु की समांतर रेखाएँ ◆◆

समांतर रेखाएँ कहाँ मिलती होंगी?
एक-दूसरे के नजदीक से गुजरते हुए
उनके ख्याल तो मिलते ही होंगें
अनंत बिन्दु पर एकसार होने से कहीं पहले।

दोनों के दरम्यां जो जगह है वो खालीपन से
भरी तो लगती है, ध्यान से देखो! 

दो पटरियाँ हैं, समानांतर बढ़ती यात्रा में
जानते हुए की साझा करेंगी रेल का वजन।
फिर! भी उस मिलन के इंतजार में झगड़ती सी लगती है
एक-दूसरे को काटती, मिलती फिर अचानक
दूर होती सी..जैसी सौतनें।

दो छोरों को जोड़ने वाली राहों में ऐसे टकराव 
जिंदगी के भी दो छोर हैं, 

पहला, जहाँ आत्म को एक रूप मिलता है
ब्रम्हा से कुछ अलग, और जन्म लेती हैं सम्भवनायें
निराकार से साकार निकलता है
बिलख उठती है इकाई संरक्षण खोकर 
हर एक रचना का जो सबसे सशक्त उपमान है।

दूसरा, जहाँ सम्भवनाएँ नियति से मिलती है
और किताब के अंतिम पन्ने जैसी संतुष्टि लिए रहती है, आत्म और परमात्म अलग नही रहते हैं।
सार्थकता और निरर्थकता की बहस मायने खोने लगती है
समय में गोधूलि वेला के धूसर रंग मिलने लगे हैं
घर चलें, ब्रम्हा में लीन होने का समय है
चलो! पटाक्षेप।

इन्ही दोनो छोरों के बीच 
हम बांधकर एक डोरी और उस पर चढ़कर
फासला तय करने का प्रयास करते हैं।

कई बार देखने वाले तालियाँ खूब बजाते हैं
जहाँ दर्शकों के आनन्द के लिए
एक पैर से रस्सी पार करने से पहले 
एक पल भी नही सोचते हैं।
वो जो डोरी कहीं उलझी हुई रखी है
उसे देखने कौन जाता है?

इस खेल का नाम जानते हो?
मैंने कहा- जीवन।

अब अलग होकर देखो!
जन्म एक घटना है
मृत्यु एक घटना है
जीवन जो बहुत बड़ा लगता है
वो भी एक घटना है
और, ब्रम्हा के ब्रम्हाण्ड में ऐसी घटनायें होती रहती हैं।।
      -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #GoodNight
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Abhishek Yadav

◆◆ बारिश की बूँदें ◆◆

बरसती बूँदें अचानक ठहर गयी,
बहती हुई तेज हवा भी थम गई चुपचाप।
आपस में गुँथे हुये सब पर्वत
ढीले होकर तकने लगे आकाश।

उड़ते हुए रेत कण तटस्थ हो देखने लगे,
रास्ते सारे मुड़कर आने लगे झील की ओर। 
फिर चहकते हुये जीवों की सब बोलियाँ छीन ली गयीं
और तब उस पल झील की एक लहर जागृत हुई!

वह सोचने लगी...🤔

क्या जन्म और पुनर्जन्म की बहस 
उसके लिए भी है?
क्या उसका किनारे के पत्थरों से बार-बार टकरा जाना ,
पिछले जन्मों का परिणाम है?
या आगे आने वाले जन्मों के लिए,
जमा की जा रही कर्मों की पूँजी है?
यूँ उसका मचलना,
सूरज की किरणों में नाचना,
ये सब क्या वह खुद कर रही है 
या करवाने वाला कोई और ही है?
और वह सिर्फ एक माध्यम मात्र है!

उसको यह जिज्ञासा भी हुई,
कि उसके जीवन का रिव्यू कैसा होगा?
रोज एक ही कार्य समान रूप से करने पर,
निरंतरता के लिए प्रशंसा होगी!
या बार-बार दोहराने पर, 
मौलिकता के अभाव वाली आलोचना होगी?

उसने अपने चारों तरफ घूमकर देखा 
और खुद से पूछ बैठी-
क्या वह सुन्दर दृश्य में टांक दिए जाने के लिए है केवल? 
पहले से तय एक भूमिका निभा देने के लिए है बस?
कभी खुद तय करके किसी धारा में क्या बह पायेगी वह?
उसे पहाड़, हवा, रास्ते, रेत, कण
सब की दिनचर्या एकदम अपने जैसी लगी,
और उनसे जवाब पाने की उम्मीद खोकर 
वह और निराश हो गई।
इन गहरे सवालों के जवाब लहर को
न मिलने थे और न मिले।
रास्ते फिर चलने लगे वैसे ही दिशाहीन, 
जीव फिर से आवाज पा गए और निरर्थक कुछ कहने लगे।
पहाड़ों ने फिर लहरों को घेर लिया,
रेत, कण फिर उड़ने लगे तमाशा समाप्त देखकर।
हवायें फिर से पगलाकर सरसराने लगीं,
और लहरें फिर चल पड़ीं होकर उदास।😢
मगर! चलने के पहले 
एक लहर मेरे पास आयी और तपाक से बोली-
"तुमने फिर मुझमें अपनी छवि खोज ली न ?"😕😍
               -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #rain  कविताएं

#rain कविताएं

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Abhishek Yadav

White   ◆◆ बारिशें और तुम्हारी यादें ◆◆

रात के इतने पहर में भी मैंने अभी-अभी चाय बनाया है।  बारिश हो रही है, तेज हवाएं बारिश के साथ आईस-पाईस खेल रही हैं। और इस घड़ी में मुझे तुम्हारे साथ बैठकर चाय पीने का मन हो चला है। बादलों की अफवाह का असर सीधा दिल पर हो रहा है। बारिश ने जो तुम्हारे खत पहुचाएं हैं, उनको पढ़ने के लिये मैंने खुद को बूंदों के हवाले कर दिया है। तुम्हारी बेरुखी की स्याही थोड़ी नमी सोख कर बह रही है। मैं उसे छू कर अपनी अनामिका से लिफाफे पर स्वास्तिक बनाता हूँ। इसके बाद तुम्हारे तमाम उलाहने भी पवित्र दिखने लगें हैं। मेरे माथे पर नमी है, दिल में खुश्की और आंखों में तरावट। कोई देखे तो साफ अनुमान लगा सकता है कि मैं किसी की याद में हूँ। मैं बारिश को देखता हूँ और हवा के कान में मंत्र फूंकता हूँ। क्यूँकि! मैं चाहता हूँ कि, बारिश तब तक न थमे जब तुम तुम्हारे मन के गीले होने की खबर बादल मुझ तक न पहुँचा दे।

अभी सोचा! चाय और बारिश दो अजीब से बहाने हैं। जिनके जरिए तुम्हे याद करने का सुअवसर मिल जाता है। लेकिन आज की बारिश में तुम्हारी कसम खाकर कह सकता हूँ कि, मैं बूंदों के बीच खड़ा जरूर हूँ मगर! भीग नही रहा हूँ। मैं केवल कुछ बातें सोच रहा हूँ, बारिश में भीगने के लिए थोड़ा लापरवाह होना पड़ता है। सोचकर केवल हँसा जा सकता है, क्योंकि! रोने की भी अक्सर कोई वजह नही होती है। मेरे पास भीगने की तमाम वजह है और बारिश से बचकर अंदर कमरें में दाखिल होने की एक भी वजह मेरे पास नही है। क्योंकि वहाँ चाय के साथ तुम मेरी प्रतीक्षा में नही हो। तुम फिलहाल कहाँ पर हो? यह बात मुझे बारिश, बादल, हवा, बूँद किसी ने भी नही बताया है। कुछ बूंदें मेरी त्वचा के तापमान से आहत है। शायद! उन्हें मेरे मनुष्य होने पर संदेह है, वो आपस में गुपचुप ढंग से बात करतीं हैं और बादलों पर ताने कसती हैं कि उन्हें मैदान में भी पहाड़ पर क्यों पटक दिया? ठंडी हवा मेरे कान के सबसे निचले हिस्से को मन्दिर की घण्टी की तरह हिलाती है मगर वहाँ कोई ध्वनि नही निकलती है। हवा को मेरे कान के समाधिस्थ होने पर सन्देह है। इसलिए वो बार-बार तुम्हारा नाम लेती है, ताकि! मेरी तन्द्रा टूट सके।

बारिश का गीलापन मन के गलियारे में आकर एक छोटी नदी बन जाता है, फिर यह नदी आँसुओं का एक न्यूमतम जलस्तर को बनाये रखने में मदद करती है। मगर इतनी तरलता के बावजूद भी मन की बंद गलियों से बाहर निकलने के लिए आंसुओं को रास्ता नही मिलता है। वो अंदर ही मेरे लिए पर्याप्त नमी का इंतजाम करते-करते सुख जाते हैं। 
मेरा ह्रदय इसलिए भी सबसे खारा है, यह राज आज तुम्हे बारिश के बहाने से बता देता हूँ।

बारिश आई है, मेरे मन का पञ्चाङ्ग इसकी वजह के लिए ग्रहों, नक्षत्रों की गणना करते हुए तुमसे दूरी की प्रकाशवर्ष में कालगणना में लग गया है। मगर एक बड़ी बात है, मेरे पास न दशमलव है, और न ही मेरे पास शून्य है।
ये दोनों अंक तुमने मुझसे कभी उधार लिए थे। 
मगर! आज तक नही लौटाए हैं। इसलिए मेरा अनुमान अक्सर गलत सिद्ध हो जाता है, और तुमसे दूरी घटती-बढ़ती जाती है।

फिलहाल!...
बस इतना ही निवेदन करूँगा कि अगली मौसमी बारिश से पहले मुझे मेरा दशमलव और शून्य लौटा देना। 
ताकि! किसी बेमौसमी बारिश में तुम्हारी भौतिक दूरी का सही से आंकलन करके मैं कुछ सही भविष्यवाणी कर सकूँ।

खैर!...
बाहर की बारिश थम गई है, मगर अंदर एक झड़ी लगा गई है, कि वो कब थमेगी? कुछ कह नही सकता हूँ, मेरे कान थोड़े ठंडे हो गए हैं, और हथेलियां गर्म। तुम्हारे साथ की चाय पीने से तो अब रही। इसलिए जा रहा हूँ अब खुद अकेले ही चाय पीने। ताकि! घूँट-घूँट तुम्हें याद करता हुआ भूल सकूँ।।🥰😊
       -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #love_shayari  लव स्टेटस

#love_shayari लव स्टेटस

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Abhishek Yadav

◆◆ बारिश, यादें ◆◆

कुछ नही बहुत वक्त बीत गया है मिले हमको
वो खुश्क, सूखा मगर तृप्त लम्हा
आज बरसती बूँदों में भी प्यासा वक्त।

एक वो शाम थी जो सन्दल सी महक रही थी
आज वही खुशबू फिर साँसों में आई थी।

हम बच रहे थे बारिश से
और अपनी नजरों से भी।
पर न बारिश रुकी, न मेरी नजरें 
एक दफा फिर उसकी खुली जुल्फें
जो कभी बंधी रहती थी...को देखने के लिए मुड़ा तो लाल डोरों वाली उसकी आँखों में मेरी आँखें बंध गयीं।

उसके अधरों पर तनी औपचारिकता की फीकी लकीर, मेरे रुखसारों पर असर कर गयी।

कई अच्छे सवाल थे जेहन में उसे झकझोरने वाले
पर पूछा कि- "परफ्यूम अब तक वही है?"

"हम्म...पसन्द था मुझे तो नही बदला"
और तुम?..."मैं भी" मैं हँस दिया।

"तो! तुम बिल्कुल नही बदले?"
तुम जो बदल गयी।
"हम मजबूर थे।"
"नही तुम सिर्फ तुम!"

वो चुप रह गयी
"तो तुम सचमुच नही बदले?"

न मैं रवायतों सा हो गया
तुम मौसम बन गयी।

क्यों? मैंने उसे देखा, उसने नजर सामने बूंदों पर टिका रखी थी।
क्योंकि! मेरा इश्क ठहर गया है, और वहीं पे मैं भी।

"इश्क कभी ठहरता है भला?"

हाँ उम्मीदों में ठहरता है
मुलाकात की धुँधली यादों में
मटमैले पन्नों की साफ लिखावटों में
सूखे हुए फूलों में जो उन्ही पन्नों में अब तक कैद है, 
पिछली शमाओं के निशानी में जिनकी रोशनी के उस पार तुम बैठा करती थी।

वो सब अब तक बिखरे हैं राहों में
"और तुम?"
मैं आखिरी मुलाकात से खुद को घसीट लाया हूँ।

"तो उन लम्हों को क्यों नही साथ लाये चुनकर?"
तुम्हारे लिए...ताकि! मौसम अपना चक्र पूरा करे तो तुम्हे मुझे ढूँढने में मुश्किल न आये।

वो चुप थी और बूँदें भी
उठकर जाने से पहले उसने मुड़कर फिर कहा-
"सचमुच तुम नही बदले।।"
        -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #raindrops  प्यार पर कविता

#raindrops प्यार पर कविता

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Abhishek Yadav

White मैं लफ्जों के दरम्यां हाल-ए-दिल की 
तस्वीर खिंचता हूँ... मैं मुझे लिखता हूँ,
पर तुम्हें पढ़ता हूँ।

मुझे कब परवाह रही है खुद की?
मैं कब इतना सोचता हूँ?
मैं मुझमे दिखता हूँ, पर तुममें रहता हूँ।

बंजर जमीं को आस ज्यों इक ओस की, मैं यूँ तुम्हे देखता हूँ! 
मैं छूना चाहता हूँ खुद के तरन्नुम को,
पर महसूस तुम्हें करता हूँ।

मदहोशी! इश्क की तुम्हारी जिंदा करती है मुझे, 
मैं तुम्हारी यादों में धड़कता हूँ।
सरगोशी में तुम्हारे आलम की, मैं सांसों में ख्याल तुम्हारा चाहता हूँ।

आँखों मे आते लाल डोरे और धुँधली पड़ती नजर, 
फिर भी याद तुम्हें करता हूँ।
मैं आईने देखता हूँ, पर अक्स में तुमको पाता हूँ।

ख्वाबों को तुम्हारा पता मालूम है, 
मैं तो तुम्हे सोच के बस खो जाता हूँ।
होशजदा होके तुमको ढूंढता हूँ, फिर बिस्तर पे बनी सलवटें देख मुस्कुराता हूँ।

बेजार है ये आजादी लगती मुझको,
मैं तो कैद होना चाहता हूँ।
खुद से टूटकर...कहीं तुमसे जुड़ना चाहता हूँ।
धड़कने और सांसे तो नाम है तुम्हारे, लेकिन इक कमी है...मैं तो हर लम्हें में तुम्हारा जिक्र चाहता हूँ।

फकत बदहवास करता है ये बाजार मुझको, मैं सिर्फ तुममें उलझा रहना चाहता हूँ।
ये उम्र तुम्हारे इश्क में बसर चाहता हूँ।
तुमसे मिलती खुशियों की गरज कम नही होती, पर मैं तुम्हारे गम भी चाहता हूँ।

तुमसे तो हँसी मिली ही है...जो आँसूं गिरे आंखों से तो उन कतरों से नाम तुम्हारा लिखना चाहता हूँ, 
जो मुहब्बत सरफरोशी सी कभी, मैं एकमुश्त मरना चाहता हूँ।

मैं मुझको कर के फना!
तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ,
क्योंकि मैं तो बस तुम्हे चाहता हूँ! बस तुम्हे ही चाहता हूँ।।
     -✍️अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #love_shayari  प्रेम कविता

#love_shayari प्रेम कविता

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Abhishek Yadav

White जैसे-जैसे सूर्य अपने चरम पर पहुँचता है, अस्तित्व के हरे-भरे चित्रपट पर एक गर्म चमक बिखेरता है, भाई-बहनों के बीच का सहजीवी बंधन एक दुर्लभ, उत्तम वनस्पति की तरह खिलता है, जिसे प्रेम और भक्ति की दिव्य लय द्वारा पोषित किया जाता है।

जैसे विशाल नदियाँ स्थलीय परिदृश्य से होकर बहती हैं, हमारी आत्माओं की स्थलाकृति को आकार देती हैं, वैसे ही राखी के पवित्र धागे भाईचारे के स्नेह की एक अदम्य कहानी बुनते हैं, जो हमेशा के लिए भाइयों और बहनों की नियति को जोड़ते हैं। 

बहन की मुस्कान, भोर की पहली लालिमा की तरह, उसके भाई के चेहरे को रोशन करे, जैसे राखी, अटूट प्रतिबद्धता का एक ताबीज, उसकी कलाई को सजाती है, जो उनके बीच साझा किए गए शाश्वत, अटूट बंधन का प्रतीक है। और इस बंधन के सुप्रतिम "रक्षाबंधन" के प्रतीक को मेरी तरफ से आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं! 🙏🥰
            - अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #raksha_bandhan_2024  आज का विचार सुप्रभात

#raksha_bandhan_2024 आज का विचार सुप्रभात

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Abhishek Yadav

White डॉ. मौमिता देबनाथ के साथ हुई इतनी जघन्य अपराध ने हमारे समाज की सामूहिक चेतना पर एक अमिट निशान छोड़ दिया है। इस मासूम आत्मा पर जो क्रूरता और बर्बरता की गई, वह हमारी दुनिया में व्याप्त अनैतिकता का एक स्पष्ट प्रमाण है।

एक उज्ज्वल और होनहार युवा जीवन, जो आशा और वादे से भरा था, को उन लोगों द्वारा क्रूरता से बुझा दिया गया, जिन्हें उसकी रक्षा और सेवा करनी थी। मानव जीवन के प्रति कठोर उपेक्षा, मानवीय आत्मा की पवित्रता के प्रति घोर-तिरस्कार, हमारे समाज की छाया में छिपी हुई काली शक्तियों की एक गंभीर याद दिलाता है।

उसके प्रियजनों को जो पीड़ा और आघात सहना पड़ता है, वह धरती पर एक वास्तविक नरक है, दर्द और पीड़ा का एक कभी न खत्म होने वाला चक्र जिसे कभी भी पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता है। उसके क्रूर शरीर, उसके टूटे हुए सपनों और उसकी खामोश आवाज के बारे में सोचना एक बहुत ही भयावह स्थिति है, जो हमेशा हमारे सामूहिक मानस को सताता रहेगा।

बलात्कार की भयावह छाया हमेशा हमारे समाज के ताने-बाने पर एक काली छाया डालती है, जो इसके पीड़ितों की मानसिकता पर एक अमिट निशान छोड़ जाती है। इस जघन्य अपराध की सरासर दुस्साहसता हमारी दुनिया में व्याप्त अनैतिकता का एक मार्मिक प्रमाण है।

"बलात्कार" शब्द की अर्थगत बारीकियाँ मार्मिक रूप से स्पष्ट हैं-शारीरिक स्वायत्तता का क्रूर उल्लंघन, मानवाधिकारों का एक गंभीर उल्लंघन, और गरिमा के सार का एक निंदनीय अपमान। अपराधी की निंदनीय हरकतें उनकी विकृत मानसिकता का एक स्पष्ट प्रतिबिंब हैं, उनकी अंतर्निहित स्त्री-द्वेष की एक विचित्र अभिव्यक्ति है।

इस घृणित अपराध के बाद आघात की एक भूलभुलैया है, भावनात्मक पीड़ा का एक वास्तविक दलदल जो पीड़ित के अस्तित्व को ही निगलने की धमकी देता है। इस प्रकार की निरंतर और असहनीय पीड़ा इस जघन्य अपराध के गहरे प्रभाव की एक गंभीर याद दिलाती है।

इसके अलावा, सत्ता में बैठे लोगों की कपटपूर्ण चालें, जो इस अपराध की गंभीरता को "भाग्य" या "दुर्भाग्य" के कारण बताकर छिपाने की कोशिश करते हैं, उनकी नैतिक-अधमता का एक तीखा आरोप है। बलात्कार की गंभीरता को कमतर आंकने के उनके घिनौने प्रयास उनकी अंतर्निहित कठोरता का एक स्पष्ट प्रमाण हैं।

इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वाली व्यवस्थागत विफलताएँ हमारे समाज के नैतिक दिवालियापन का एक तीखा आरोप हैं। जिस तरह से उसके हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं, वह हमारे समाज के हर ताने-बाने में व्याप्त पितृसत्ता और स्त्री-द्वेष की एक कठोर याद दिलाता है।

बलात्कार का अभिशाप एक ऐसा कैंसर है जिसे हमारे समाज से अत्यंत शीघ्रता से समाप्त किया जाना चाहिए। हमें सामूहिक रूप से इस जघन्य अपराध के खिलाफ आक्रोशपूर्वक अपनी आवाज उठानी चाहिए। और हमें एक ऐसी दुनिया के लिए लड़ना चाहिए जहाँ इस तरह के जघन्य अपराध कभी न दोहराए जाएँ। आँसू बहाने का समय खत्म हो गया है, अब कार्रवाई का समय है।।
       -✍️अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #GoodMorning  आज का विचार

#GoodMorning आज का विचार

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Abhishek Yadav

शिद्दत की गर्मी है फिर भी न जाने क्यूँ बहुत राहत है।
लोग कहते हैं इसमें मौसम की तुझसे बहुत मुहब्बत है।।

गर्म हवाएँ भी खूब हैं जो तुझे जी भर कर चाहे हैं कुछ यूँ।
जैसे इसमें उन हवाओं की सारे जमाने से अदावत है।।

कब तुम आओगी सावन का इक झोंका बनकर?
क्यूँकि मेरी ख्वाहिशों में तेरी इकलौती इबादत है।।

सुबह से शाम हो जाती है तेरा ख्वाब देखते हुए।
जैसे लगता है कि सदियों की कोई पुरानी मन्नत है।।

खामोशी से तुझसे बात करके कितना अच्छा लगता है।
या रब तेरे हुस्न की इस दिल में कितनी इज्जत है।।

एक बात कहें तुमसे अपने मन की कहीं सुन न ले अभिषेक।
हाँ, हमें भी तुझसे बहुत मुहब्बत है, बहुत मुहब्बत है।।
           -✍️ अभिषेक यादव

©Abhishek Yadav #Stars&Me  शायरी लव शायरी हिंदी में शायरी लव शायरी attitude लव शायरी

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