शहर गांव आया मैं तो चार पंक्तिया लिख गई,पेश है साब,स्नेह दीजियेगा।
"दहकती धूप में जैसे जरा सी छांव मिल जाये,
मैं जब भी शहर से आऊं तो मेरा गांव मिल जाये।
वही अमिया,वही जामुन,वही पर बेल का हो फल,
वही पर हो चमकता हल नदी में नाव मिल जाए।"😍🙏
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Poetry दिल से..!
पितामह भीष्म द्रोणाचार्य की विद्द्या से मर जाता,
करण के अस्त्र से ही ये न जाने कब बिखर जाता,
धनुर्धारी सुनो अर्जुन,कहा मोहन कन्हैया ने,
अगर हनुमान न होते तुम्हारा रथ उजड़ जाता।
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