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sanjaykumarmishr4734
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sanjay Kumar Mishra

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sanjay Kumar Mishra

White प्राचीन शास्त्रों एवं वदों में भी नारी को इतना सम्मान नहीं दिया गया है क्यों? नारी को सदियों से ही असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ी है। आखिर युगों से हमारा समाज नारी के प्रति क्यों उदासीन रहा है? इसके कई कारण रहे हैं, वेद पुराणों एवं अन्य धार्मिक स्रोतों में आर्यों ने नारी के संबंध में जो नियम निश्चित कर दिए थे वे नियम आज भी प्रचलन में हैं। सती प्रथा नारी उत्पीड़न का सबसे बड़ा उदाहरण है, क्या नारी को अपने पति की मृत्यु के बाद जीने का अधिकार नहीं? लेकिन इस प्रथा को चलाने वाले इस घृणित प्रथा को भी अपना धर्म स्वीकारते थे। क्या धर्म किसी नारी को जिंदा जलाने की इजाजत देता है? अगर देता है तो वो धर्म नहीं तुम्हारा शोषण है। आज सती प्रथा तो नहीं है मगर अन्य अनेक रूपों में नारी का शोषण आज भी विद्यमान है। जब तक लोग धर्म को मानेंगे तब तक वो नारी के प्रति अपनी मानसिकता को त्याग नहीं सकते क्योंकि उनके धर्म में ऐसा ही लिखा है।

©sanjay Kumar Mishra #good_night  अनमोल विचार

#good_night अनमोल विचार

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sanjay Kumar Mishra

White स्वधा शक्ति की प्राप्ति के अनन्तर मनुष्य के भावों का विकास होता है, और वह अपने आपको स्वाहा करने लगता है, त्याग, आत्मोत्सर्ग करता है और स्वार्थ की जगह परमार्थ-त्याग स्थान ले लेता है। जिससे प्रेम किया जाता है उसके लिए त्याग करने की इच्छा बढ़ जाती है। मनुष्य कष्ट उठाने लगता है। तब प्रेम का व्यावहारिक स्वरूप त्याग ही हो जाता है। त्याग, आत्मोत्सर्ग, बलिदान की स्थिति के अनुसार ही प्रेम कर सत्य स्वरूप विकसित होने लगता है। जब मनुष्य अपने आपको पूर्णतया स्वाहा कर देता है तब एक मात्र प्रेम की सत्ता ही सर्वत्र शेष रह जाती है। प्रेम दिव्य तत्व है। इसके परिणाम सदैव दिव्य ही मिलते हैं। किन्तु यह तब जबकि मनुष्य पुरस्कार की कामना से रहित होकर केवल प्रेम के लिए त्याग बलिदान, आत्मोत्सर्ग करता है। प्रेम का पुरस्कार तो स्वतः प्राप्त होता है और वह है आत्मसन्तोष, शान्ति, प्रसन्नता, जीवन में उत्साह आदि। प्रेम तो मनुष्य की चेतना का विकास कर उसे विश्व चेतना में प्रतिष्ठित करता

©sanjay Kumar Mishra #good_night  अच्छे विचारों

#good_night अच्छे विचारों

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sanjay Kumar Mishra

White मां सरस्वती ही बुद्धि देने वाली शक्ति स्वरुपा है ।
जब हमे सद्ब बुद्धि आ जाती है तो विवेक उत्पन्न होता है जो हमें ज्ञान की तरफ ले जाता है । वास्तव में ज्ञान तो अनंत है जो हमें तत्वज्ञानी बनता है तत्वज्ञानी बनने पर हमें आत्मज्ञान का बोध हो जाता है । आत्मज्ञान होने के बाद फिर कुछ जानना शेष नहीं रह जाता🙏 यह पहले दृष्टिकोण था अब दूसरा हां ज्ञान शक्ति है  रावण महाज्ञानी था इसलिए वह महाशक्तिशाली भी था श्स्वयं प्रभु राम इस बात को जानते थे तभी उन्होंने लक्ष्मण को मृत्यु के समय रावण के पास ज्ञान लेने के लिए भेजा था आत्मा की अनेक शक्तियों में ज्ञान प्रमुख शक्ति है।

©sanjay Kumar Mishra #Sad_Status  आज का विचार

#Sad_Status आज का विचार

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sanjay Kumar Mishra

White 
ज्ञान से व्यक्ति अपने समाज में प्रभाव डाल सकता है और बदलाव ला सकता है।
शक्ति से ज्ञान: शक्ति के बिना ज्ञान का उपयोग नहीं किया जा सकता। शक्ति के साथ ज्ञान का उपयोग करके व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। शक्ति के साथ ज्ञान का उपयोग करके व्यक्ति अपने समाज में बदलाव ला सकता है।शक्ति के साथ ज्ञान का उपयोग करके व्यक्ति अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है।
इस प्रकार, ज्ञान और शक्ति एक दूसरे के पूरक हैं। ज्ञान के साथ शक्ति की प्राप्ति होती है, और शक्ति के साथ ज्ञान की आवश्यकता होती है।

©sanjay Kumar Mishra #sunset_time  'अच्छे विचार'  अच्छे विचारों

#sunset_time 'अच्छे विचार' अच्छे विचारों

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sanjay Kumar Mishra

White जिस कर्म को करते हुए या करने के बाद मन में डर , शंका और लज्जा का अनुभव हो वह पाप है ।
जिस कर्म को करते हुए या करने के बाद मन में उमंग , उत्साह और आनन्द का अनुभव हो वह पुण्य है ।
जिस कर्म को करते हुए या करने के बाद मन मे कोई भाव न आये वह निष्काम होता है । इस प्रकार का कर्म सिर्फ वही कर सकता है जिसने अपने मन को पवित्र कर लिया है ।
इसी सिद्धान्त के आधार पर हिंदु धर्म मे हिंसा का भी स्थान है । जैसे श्रीकृष्ण और रामचन्द्र जी ने कई अधर्मियों को सजादी और मौत के घाट उतारा है । अरिहंत: अधर्म, अधर्मी का हंत करने से बड़ा पुण्य कोई नही है। अधर्मी को दंड दिए बिना छोड़ने का मतलब, वह अधर्म करता रहेगा, और उसके पाप का फल आपको भी मिलेगा।

©sanjay Kumar Mishra #International_Day_Of_Peace  'अच्छे विचार' नये अच्छे विचार

#International_Day_Of_Peace 'अच्छे विचार' नये अच्छे विचार

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sanjay Kumar Mishra

White सगुण भक्ति काव्य धारा
राम और कृष्ण दो प्रमुख अराध्य देव के रूप में प्रतिष्ठित हुए। इसमें कृष्ण बहुआयामी और गरिमामय व्यक्तित्व द्वारा मानवता को एक तागे से जोड़ने का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। सगुण कवियों ने प्रेम और हरि को अभेद्य माना, प्रेम कृष्ण का रूप है और स्वयं कृष्ण प्रेम-स्वरुप हैं।भगवान श्रीकृष्ण ने प्रेम के बारे में कई सिद्धांत बताए हैं: 
1 प्रेम में त्याग और निःस्वार्थता होना ज़रूरी है. 
 2 प्रेम को छीना या मांगा नहीं जा सकता.  
3 प्रेम एक भावना है जो किसी व्यक्ति को अपने प्रेमी के प्रति समर्पित करती है. 4 प्यार बंधन नहीं है, बल्कि आज़ादी है. 5 सच्चा प्यार आपको अकल्पनीय तरीकों से बढ़ने में मदद करता है. 6 प्रेम इष्ट वियोग और अनिष्ट योग में परीक्षा की कसौटी पर चढ़ता है. 7 सच्चे साधक इन दुर्निवार अवस्थाओं में प्रेम से विचलित नहीं होते. 
 8 प्रेम मनुष्य हृदय की सर्वोत्कृष्ट वृत्ति है. 
 प्रेम का तत्व यही है कि प्राणी मात्र को प्रेम की दृष्टि से देखा जाए.

©sanjay Kumar Mishra #GoodMorning  'अच्छे विचार'

#GoodMorning 'अच्छे विचार'

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sanjay Kumar Mishra

White स्वस्थ आत्मविश्वास और प्रेम की क्षमता अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जो सभी व्यक्तियों और वस्तुओं को एकत्रित करती है। अस्वस्थ अहंकार से प्रेम और शक्ति का विकास असंभव है। समाज में अधिकतर अस्वस्थ अहंकार का प्रभाव दृष्टिगोचर है।

©sanjay Kumar Mishra #GoodMorning  आज का विचार

#GoodMorning आज का विचार

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sanjay Kumar Mishra

White स्वस्थ आत्मसम्मान वाले व्यक्ति में आत्मविश्वास और प्रशंसा की स्वीकार्यता होती है, जबकि अस्वस्थ आत्मसम्मान वाले व्यक्ति में आत्म-आलोचना और असंतोष प्रमुख होता है. स्वस्थ आत्मसम्मान में असफलताओं को तथ्यात्मक दृष्टिकोण से देखा जाता है और आत्म-माफी की जाती है, जबकि अस्वस्थ आत्मसम्मान में असफलताओं को स्थायी समस्या माना जाता है. स्वस्थ आत्मसम्मान में सहायता लेने और नियंत्रण से बाहर की चीजों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति होती है. स्वस्थ गर्व को मुखर तरीके से व्यक्त किया जाता है, और इसे अक्सर निहित रूप से व्यक्त किया जाता है। यह किसी की क्षमताओं की शांत, आत्मविश्वासी पुष्टि है। इसके विपरीत, अस्वस्थ गर्व कहीं अधिक आक्रामक है - और स्पष्ट - योग्यता की नहीं, बल्कि व्यक्तिगत श्रेष्ठता की घोषणा।

©sanjay Kumar Mishra #GoodMorning  अनमोल विचार

#GoodMorning अनमोल विचार

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sanjay Kumar Mishra

White  आपका व्यवहार आपकी व्यक्तिगत पहचान और आत्म-महत्व की भावना को विकसित करता है, जिससे आपकी विशिष्टता और मानवीय अद्वि तीयता की समझ बढ़ती है। यह आपके स्वाभिमान' की भावना को मजबूत बनाता है। अंग्रेजी में 'अहंकार' की उत्पत्ति लैटिन शब्द 'मैं' से हुई है। लेकिन आत्म-घृणा की स्थिति में, आत्म-सुरक्षा के लिए कोई अन्य विकल्प नहीं होता, जिससे एक अस्वस्थ अहंकार विकसित हो सकता है। एक स्वस्थ इंसान अपनी जगह पर स्थापित जगह के अंदर रहता है। ये झुकाव लिए होता है, ये प्रेम करना होता है, और  यह पूर्णता  है. एक स्वस्थ व्यवहार को अपनी सीमा में पहचाना जा सकता है और पूरे आत्मसम्मान को स्वीकार कर सकता है। यह बेकार टोक़ से डरता नहीं है बल्कि आपके हर हिस्से को, अच्छे और बुरे को, जीवन और विकास के साधन के रूप में अपनाता है। इस प्रक्रिया में, यह आत्म-प्रेम में कार्य करता है। एक स्वस्थ व्यवहार किसी भी चीज़ की परवाह किए बिना उसकी कीमत को छोड़ नहीं है और आपकी पूरी कोशिश को बनाए रखने के लिए काम करता है। दुर्भाग्य से, मनुष्य आत्म-प्रेम के बारे में एक तिरछा विचार रखते हैं।

©sanjay Kumar Mishra #diwali_wishes  आज का विचार  सुविचार इन हिंदी

#diwali_wishes आज का विचार सुविचार इन हिंदी

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sanjay Kumar Mishra

White जिस प्रकार अंधकार और रोशनी एक साथ नही रह सकते उसी प्रकार अहंकार और प्रेम एक साथ कभी नही रह सकते। अहंकार अहम की भावना लिए होता है जो सबको हरा कर जितना चाहता है,जबकि प्रेम सबकुछ हारकर दूसरे को जीताता है। अहंकार कभी अपनी गलती मानने का प्रयास नही करता क्योंकि अहंकार को झुकना नही आता,प्रेम हमेशा अपनी गलती को स्वीकार करता है और झुक जाता है क्योंकि प्रेम को रिश्ता बचाना होता है जबकि अहंकार को अपना अहम। प्रेम सुबह है और अहंकार रात दोनों कभी मिल नही सकते एक खत्म होगा तभी दूसरा शुरू होगा ।

©sanjay Kumar Mishra #happy_diwali  अनमोल विचार

#happy_diwali अनमोल विचार

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