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naumeshpandey7807
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Naumesh Pandey

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Naumesh Pandey

शब्द को तौला है मैंने 
अर्थ की नजदीकियों से 
भाव को तौला है मैंने 
नेह की इस नीव से 
शब्द को तौला है मैंने 
भाव की इस नीव से 
कुछ कहे को अनसुना न 
कर सका मेरा ये दिल 
विस्मृत करूँ कैसे पलो को 
घाव की नजदीकियों से 
शब्द को तौला है मैंने 
भाव की इस नीव से 
वो मेरा अपना था, क्या जो 
आज मुझको छल गया 
शब्द झूठे थे नहीं पर 
झूठ उसका खल गया 
झूठ को तौला है मैंने 
सत्य की नजदीकिओ से 
शब्द को तौला है मैंने 
भाव की इस नीव से 
मौन होकर सह भी जाता 
विष भरे इस बाण को 
शांत होती तृष्णा मेरी 
सह भी जाती वार को 
वार को तौला है मैंने 
प्यार की नजदीकियों से 
शब्द को तौला है मैंने 
भाव की इस नीव से 
भाव को तौला है मैंने 
नेह की नजदीकिओ से..... 
......... नौमेश पाण्डेय

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Naumesh Pandey

कितना तबाह हुआ हूँ अन्दर से 
बता भी नहीं सकता 
सच तो छोडो... झूठ 
छुपा भी नहीं सकता.... 
............... 
बेइंतहा रोया गैर मौजूदगी पे उसकी 
इन हादसों को.... अखबारी पन्नों पे 
छपा भी नहीं सकता..... 
................. 
सच तो छोडो...... झूठ 
छुपा भी नहीं सकता 
................... 
वक्त ने ज़ख्म दिया ही नहीं 
कुरेदा भी है 
अपनों के दिए जख्मो को 
सहला भी नहीं सकता.... 
................ 
सच तो छोड़ो....... झूठ 
छुपा भी नहीं सकता 
................... 
दिन मे वक्त होता ही नहीं 
कुछ कह सकूँ उनसे 
रात पराई है 
कुछ बता भी  नहीं सकता...... 
.............. 
सच तो छोड़ो........ झूठ 
छुपा भी नहीं सकता..... 
.................. 
न जाने कितनो ने 
कहानी सुनी मेरी 
ये कहानी मेरी है 
हक जता भी नहीं सकता....... 
............... 
सच तो छोडो....... झूठ 
छुपा भी नहीं सकता....... 
............ नौमेश पाण्डेय 
..................................

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Naumesh Pandey

माना तेरे हृदय छेत्र को 
चोट प्रेम का आ लगा 
प्रेम किया वो भी खुलकर न 
तू मरता चोरी -चोरी...... 
............@@@@@

ज़ब कहना था, कह नहीं पाया 
झूठी सच्ची बातो को 
सच को भी खुलकर न बोला 
झूठ बोलता चोरी -चोरी........
..............@@@@@@@

सच को तूने आ रक्खा है 
न्याय व्यवस्था के तन पर 
झूठ बोलता वो भी चलता 
न्याय किया चोरी -चोरी........... 
....................@@@@@@

मन भी बेचा तन भी बेचा 
गले प्यार को छूने खातिर 
प्यार किया तूने पूरा ना 
वार किया चोरी -चोरी...... 
......................@@@@@@@
ना जाने कितनी उम्मीदें लड़ती 
लड़ती मौत से 
चोरी -चोरी 
......................@@@@@@@@

प्रेम किया वो भी खुलकर न 
तू मरता चोरी -चोरी....... 
...............नौमेश पाण्डेय 
.................................

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Naumesh Pandey

ये जो राते है 
दिन की तबाहियाँ लिखती है 
जुगनुओ का सहारा पा के 
बेवफाइयाँ लिखती है 
कमबख्त भूल जाती हैं 
कोई नहीं किसी का 
दो घूट मे ही ये 
रुस्वाइयाँ लिखती हैं 
तरह -तरह के पन्नों को 
पलट देती हैं राते 
मर्ज का पता नहीं 
और दवाइयाँ लिखती है 
ये जो राते है
दिन की तबाहियाँ लिखती हैं...... 
...... नौमेश पाण्डेय

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Naumesh Pandey

जीवन की ये नीरसता 
धरा को शमसान करेगी 
दुर्दन की देख विपलता को 
मौत का आह्वान करेगी 
सत्यधाम की परम् आस्था 
मे विष का ये वाम करेगी 
जीवन की ये नीरसता 
धरा को शमसान करेगी 
उदिग्न मन की ये करुणा 
करुणा रस से निकली होगी 
पीने को तो अमृत था 
पर विष का ये पान करेगी 
जीवन की ये नीरसता 
धरा को शमसान करेगी 
चंचल मन की चंचल चपला 
जिह्वा से रस पान करेगी 
मीरा को तो विष पीते देखा 
राधा भी विष पान करेगी 
जीवन की ये नीरसता 
धरा को शमसान करेगी..... 
.......परशुराम नौमेश पाण्डेय

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Naumesh Pandey

हे मानव तुमने प्रेम ग्रन्थ पर 
कैसा बंधन डाला है 
प्रेम जहाँ सुगंध फूल का 
आदर्श प्रेम वरमाला है 
कामवशना चरित्रहीनता 
के डोरे क्यूँ डाल रहे 
प्रेम दिलो मे पलने दो 
अन्दर क्यूँ विष पाल रहे 
नैतिकता की बातो मे तुम 
प्रेम को क्यूँ उलझाते हो 
जाति देखकर धर्म देखकर 
प्रेम को तुम समझाते हो 
आदर्श प्रेम की चाहत मे तुम 
चाहत करना भूल गए 
भूल गए तुम सुगंध प्रेम का 
आदर्शो मे झूल गए...... 
...... परशुराम नौमेश पाण्डेय

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Naumesh Pandey

रूद्र है प्रचंड आज 
भारत अखंड आज 
फिर भी सभ्यता का 
अपमान हो रहा यहाँ 
संस्कृती है गिर रही 
मान भी है गिर रहा 
स्वाभिमान देश का 
खंड खंड हो रहा 
रूद्र है...... 
भूमि -भूमि तप रही 
क्रूरता है दिख रही 
धर्म की अखंडता का 
आज खंड हो रहा 
देश द्रोहियो को आज 
मृत्यु की सजा नहीं 
छोटी बेटियों का आज 
अंग -अंग रो रहा 
देश रो रहा यहाँ 
रूद्र की प्रचंडता पे 
रूद्र की प्रचंडता का 
आज खंड हो रहा 
रूद्र है प्रचंड आज 
भारत अखंड आज 
फिर भी सभ्यता का 
अपमान हो रहा यहाँ...... 
....... परशुराम नौमेश पाण्डेय

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Naumesh Pandey

इक नगर था प्रेम का 
विह्वल पड़ी थी वेदना 
चित्त मेरा अविरल तो था 
शांत थी संवेदना 
संवेदना भी शून्य थी 
कुछ अधूरे ख्वाब थे 
प्रेम की नगरी मे दो 
सबसे बड़े अभिशाप थे 
अभिशाप ही तो श्रॉप था 
ये उन्हें आभास था 
उनकी निकटता द्वन्द थी 
हार का प्रतिविम्ब थी 
प्रतिविम्ब उनको छल रहा था 
जहर अन्दर पल रहा था 
मर रहे थे ख्वाब उनके 
मर रही संवेदना 
चित्त कबका मर चुका था 
मर चुकी थी वेदना........ 
...... परशुराम नौमेश पाण्डेय

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Naumesh Pandey

मरे हुए क्या मारते हो साहब.... 
मारना ही है तो आरक्षण रूपी रावण को जला कर मार दो..... इसने भी तो हमारी भारतीय संस्कृति (सीता माँ )का हरण किया है..... 
....... परशुराम नौमेश पाण्डेय

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Naumesh Pandey

हमें कोई बताएगा ये आरक्षण रूपी असफल योजना कब तक चलेगी. ... नेताओं से नहीं लोगो से पूँछ रहा हूँ तुम कब सबल बनोगे.... या दलित ही रहने मे मजा आ रहा

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