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nehasingh4129
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Neha Singh

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Neha Singh

जहां से खिंच लाई थी
मैं खुद को
इतनी आजमाइशों के बाद
तुमने फिर से मुझे
वहीं ला कर खड़ा कर दिया है।

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Neha Singh

एक वक्त था,जब
वक्त हमारे बीच से दौड़ लगा कर निकल जाना चाह रहा था
और,हम उसे कैद कर के रख लेना चाह रहे थे कहीं
वो हमारे बीच से इतनी तेजी से फिसलता जा रहा था
कि,हम उसे चाह कर भी रोक नहीं पा रहे थे
आज, वक्त भी वही है,हम भी वही है
और ऐसा लग रहा है जैसे
ये वक्त बीत ही नहीं रहा हो
रूक गया हो कहीं जाकर
और,हम चाह रहे हैं
बस, ये वक्त गुजर जाए जल्दी और बहुत जल्दी
एक वक्त वो भी आएगा
जब हम दोनों ग़र मिल जाए किसी रास्ते में
तो, मुस्कुराए नहीं,गले भी ना मिले
और शायद आंखों में आंसू भर कर
एक दूसरे को देख कर अनदेखा करते हुए
अपने-अपने रास्ते बदल लें
ऐसा लग रहा है जैसे
वक्त हमें चिढ़ा रहा हो और बता रहा हो
झूठ की बुनियाद पर बने रिश्ते यूं ही बिखर जाते हैं।

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Neha Singh

कुछ लोग और कुछ लम्हे
बेहद खुबसूरत होते हैं
और उनसे भी खुबसूरत होता है
उन लम्हों को बिताए जाने का एहसास
पर जब उन्हीं लम्हों पर अफसोस और शर्मिंदगी दर्ज होने लगती है
तो यूं लगता है , जैसे
मैंने ख़ुद को किसी कठघरे में ला खड़ा किया हो
और सारी दुनियां मुझसे सवाल पूछ रही हो
और मैं 
 मैं अपने आप से, अपनी किस्मत से
अपनी बदनसीबी, अपनी बदकिस्मती
से सवाल पूछ रही होती हूं।।

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Neha Singh

अपनी मोहब्बत पे नाज़ करूँ या शर्म करूँ!२!
उस रात
हाँ उस रात तुम्हारी गैरहाजिरी में
तुम्हारा कुछ सामान छुआ था मैंने
कमरे की दिवारों पर 
कुछ नाम पढ़ा था मैंने,
इस उम्मीद में कि शायद
शायद हमारी मोहब्बत और हिज्र का
जिक्र कहीं तो किया होगा तुमने
किसी पन्नें या दिवार के किसी कोने में
पर,इस खोज में मुझे कुछ और मिला,
 तुम्हारी नयी मोहब्बत
मेरी दिलों के टूटने का एक और जरिया
जिससे मैं वाकिफ़ नही थी,
तब तक दरवाजे पर दस्तक हुई
और तुम आ गए
 तुम उस मोहब्बत से मिले
जो असल मोहब्बत तुमने की थी
पर,आज तुम्हारी बाँहों में
मेरा दम घुट रहा था
तुम्हारी छुअन मुझे खरोचने का एहसास दिला रही थी
और मैं हैरान 
सिर्फ इतना सोच पा रही थी
इस मोहब्बत पे नाज़ करूँ या शर्म करूँ....

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Neha Singh

अजीब सी 
कश्मकश में आ गयी हैं 
ज़िंदगी,

तुम्हें भूलने के लिए
लिखने की कोशिशों में 
सब कुछ अपनी 
नज़रों के सामने रखना पड़ता है
और फिर,

तुम्हें भूलने का सिलसिला
खत्म होने के बजाय
मेरे अंदर 
अपनी जड़ें फैलाता जा रहा हैं. ।

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Neha Singh

तुम्हारे सवाल!२!
इतने मायने तो नही रखते
जिनका जवाब दिया जाए,
पर तुम्हारे सवाल 
मेरी कविताओं तक आ कर रूक जाते है,
 तुम्हारे सवाल कुछ ऐसे है
कि,तुम लिखना छोड़ दो,
मेरे जवाब
मेरे जवाब कुछ ऐसे हैं की,
मैं लिखुँगी!२!
मेरे एहसासों के खत्म हो जाने तक
मैं लिखुँगी
दिलों के हर टुकड़े  बिखर जाने तक
मैं लिखुँगी
  तुम्हारी यादों के दफ़्न हो जाने तक
मैं लिखुँगी 
मेरे आँसूओं के सूख जाने तक
मैं लिखुँगी 
मेरी साँसों के रूक जाने तक
बस तुम ,
इसे पढ़ना और समझना छोड़ दो
बिल्कुल हमारे रिश्तों की तरह...!

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Neha Singh

मैं मान लेना चाहती हूँ
या,फिर मनवा लेना चाहती हूँ
अपने दिल और दिमाग से
बेवजह की कुछ बातों को,
मैं मान लेना.....
 वो झूठ-सच ,स्थिती-परिस्थिती
और शब्दों के उन जाल को
जो तुमने बुना था,
 मैं मान लेना चाहती हूँ!२!
कि,मेरी ज़िंदगी में तुम्हारा आना एक झूठ 
और जाना एक सच्चाई थी
बीच में  सबकुछ
कोई वहम या कुछ ख्वाब सा रह गया था
मैं मान लेना.....!२!
कि,मेरी जिंदगी में तुम्हारा आना 
कोई भयानक हादसा था
और हादसे हमेशा तबाही लाते है
ज़िंदगी को तितर-बितर कर जाते हैं,
मैं मान लेना चाहती हूँ बेवजह की कुछ बातों को!२!

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Neha Singh

कुछ मुलाकातें खुशियाँ देती है 
कुछ मुलाकातें ग़म 
तुम्हारी मुलाकाते झकझोर देती है 
मेरे अंतर्मन को,
हर मुलाकात पर बोल जाते हो तुम कुछ ऐसा
जो दिलों को चीरने के लिए काफी होती हैं,
यूँ तो मेरे दिल 
मेरी एहसासो के साथ खेलने में 
तुमने कोई तरक़ीब अधूरी नही छोड़ी होगी,
फिर भी तुम मानते हो 
तुम मासूम थे,
चलो मान लेती हूँ
और ये भी ,कि
अगली मुलाकात में 
तुम ,ये ना बोल बैठो की 
ये रिश्ता तुमने किसी दवाब में बना लिया था
या फंसा लिया गया था तुम्हें,
खैर,उम्मीद कर सकती हूँ 
मैं तुमसे इन अल्फ़ाजो की भी
पर,तुम्हारी ये मासूमीयत जैसे लफ्ज़
कुछ जमी नही है तुम्हारी  शख्सियत पर
ग़र,साजिशे और बेवफाइयों की
तरकीब बनाने वाले भी मासूम हैं
तो मैं खुश हूँ कि
मैंने अपनी मासूमीयत खत्म कर दी है
तुम्हारे जाने के बाद!

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Neha Singh

मेरे घर की बालकनी से दिखता
पार्क का एक खाली बेंच 
मुसलसल मुझे तुम्हारी याद दिलाता रहता है,
ऐसा लगता है,जैसे 
वो मुझे अपनी तरफ बुला रहा हो
 जैसे बरसों से 
मेरे,तुम्हारे,हमारे 
इंतजार में खाली बैठा हो,
मैं हर रोज सुबह,शाम उसे देख
ऐसे नजरें फिरा लेती हूँ
जैसे मैने उसके अकेलेपन को देखा ही ना हो,
पर,मैं देखती हूँ
हर सुबह उसमे वही अकेलापन
वही दर्द,वही ग़म
पर इन सब के सिवाय उसमे इंतजार भी देखती हूँ
जो मुझे उसके पास जाने से रोकता है
ये सोचकर की 
उसके पास इंतजार तो है,
मेरे,तुम्हारे 
या फिर किसी पत्ते के गिर जाने का
या किसी चिड़िया के बैठ जाने का,
मेरे पास तो इंतजार भी नही है,
और,मैं उसे अपनी तरह का अकेलापन 
और खालीपन देकर नही आना चाहती,
शायद इसलिए,
हर रोज उसे देख 
अपनी नजरें फिरा लेती हूँ . .!




 #NojotoQuote

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Neha Singh

ये जो मेरे अंदर 
दर्द का बवंडर है
ये तुम्हारे अंदर भी हो कभी,
ये जो फिर कभी न 
जुड़ने वाले सपने टूटे है मेरे
ये तुम्हारे सपनों के साथ भी हो कभी,
ये जो मेरी
एहसासों की धज्जियाँ ऊड़ी है
ये तुम्हारी एहसासों के साथ भी हो कभी,
ये जो मेरी आत्मा टूटी है
टुकड़ों मे 
ये तुम्हारी आत्मा के साथ भी हो कभी,
ये जो मैं 
बिखड़ी हूँ
फिर कभी न संभलने वालो की तरह
ऐसा बिखरना 
तुम्हारे साथ भी हो कभी...! #NojotoQuote

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