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adityasingh2366
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Aditya Singh

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Aditya Singh

#OpenPoetry प्यारे अटल जी

मौत ने भी मुँह के बल गिर कर इनसे मात खाई,
उनके आगे वह जीत कर भी  जीत न पाई।
काल ने जिनको रखा 10 वर्ष से घेर कर,
जीवित रहे वो देश के लिए यमराज को ढेर कर।
लड़ाई आज़ादी की जो उन्होंने भी लड़ी,
दम भरा जब तोड़ दी माँ भारत के हाथों की कड़ी।
देश के लिए न जाने उन्होंने ने क्या क्या किया,
दिल्ली मेट्रो और सड़क के साथ स्वर्ण चतुष्कोष दिया।
उनकी ही वजह से भारत छठा ताकतवर देश है,
चीख चीख कर कह रहे पोखरण के अवशेष है।
सबसे सटीक था राजनीति में जिनका निशाना,
शायद ही उस पुण्यात्मा को भूलेगा ज़माना।
        
                                         आदित्य सिंह #OpenPoetry  #poem Priyanka Mohammad Kamaluddin Rakesh Kumar Himanshu Ashutosh Mishra

OpenPoetry poem Priyanka Mohammad Kamaluddin Rakesh Kumar Himanshu Ashutosh Mishra

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Aditya Singh

#OpenPoetry               प्रकृति का दूत              
नीला आकाश लगे अति सुंदर 
सुनहरी धरती महकता अंबर ।
वृक्ष की छांव और शीतलता 
फल झूल रहे है पुष्प महकता ।
पक्षि की चहचहाहट , प्रातः काल उठाने वाली 
माटि की खुशबू नींद से नींद चुराने वाली।
नदियों का संगम मन मोहने वाला
फिर कुछ दूर दिखा इक नाला।
नाले में था कचरा-कूड़ा 
उसमे नहा रहा था आदमी बूढा।
उस गंदे नाले में कुछ लोग कपड़े धो रहे थे
चहचहाहते पक्षी न जाने क्यों जोर जोर से रो रहे थे।
मैंने पूछा - क्या हुआ रुदन क्यों करते हो ....
किसने तुमको रुलाया है।
पक्षी बोली- किसी और ने नही तुम दुष्ट इंसानो ने प्रकृति को ठुकराया है।
पेड़ काटकर किताबों के पृष्ठ बनाते हो 
आज भी चूल्हा लकड़ी से जलाते हो।
पेड़ो को हटाकर पत्थरों का वन बना दिया है
हमारे घर उजाड़ कर हमें ही बाहरी करार दिया है।
धरती तोह धरती, जल और वायु को भी न बक्शा
कुछ ही सालो में बदल दिया इस धरा का नक्शा।
धुंआ इतना पैदा करते हो
की अब आहे भी धुंए की भरते हो।
वसुंधरा अब और न सह पाएगी 
अगर जरूरत महसूस हुई तोह प्रलय भी लाएगी।
सुना इस पक्षी ने मुझे क्या बतलाया है ....
प्रकृति का सम्मान करो , आखिर उसके आगे कौन टिक पाया है।
                                          आदित्य सिंह #OpenPoetry #hindipoetry Priyanka Mohammad Kamaluddin Rakesh Kumar Himanshu

#OpenPoetry #hindipoetry Priyanka Mohammad Kamaluddin Rakesh Kumar Himanshu #poem

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Aditya Singh

#OpenPoetry समय से टकरा जाऊँ?

सब कुछ उलट पलट कर देता , समय बड़ा बलवान है
यह बात शत प्रतिशत सही है।
बनी बातों को बिगाड़ दे , कोई दो राय नही है ।
किंतु सांप का काटा सांप निकलता है,
इसलिए मरहम भी वही है।
बड़े बुजुर्गों ने कहा , सब समय पर छोड़ दो 
वह हर मर्ज़ की दवा है।
किन्तु मेरी समझ मे यह वह वेगशील हवा है जो रिश्तो पर पड़ी धूल की परत बढ़ाती है ।
यह वह दीमक है  जो संबंधों को अंदर से सड़ाती है ।
इस गतिशील आंधी में कई गुना विशाल पेड़ भी उखड़ जाता है।
ताश के महलों की तरह सब बिखर जाता है।
समय से युद्धाभिमुख कभी न होना,
उसकी  धारा में बह जाओ , तीखा हो या मीठा
जो फल मीले उसे सह जाओ ।
समय ही सर्वोच्च है, साधने से न सधे
अजेय है , अमर है समय के आगे कौन टिके।
किन्तु शमशीर तोह जल की धारा को बाधित कर देती है, 
हिरण भी शेर से नन्हे शिशुओ की रक्षा कर लेती है।
फिर मैं क्यों समर्पण कर दु समय से डरकर, 
घात के डर से क्यों डरु, लड़ूंगा दमभरकर
              
                         आदित्य सिंह #OpenPoetry  #hindipoetry


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