Nojoto: Largest Storytelling Platform
anuragkumar6929
  • 18Stories
  • 48Followers
  • 123Love
    180Views

Anurag Mankhand

सिर्फ खुद की भावनाओं को ही लिखता हूँ । दर्द से बहुत गहरी बात करता हूँ फिर जाकर लफ़्ज मिलते है । बेमिसाल सा व्यक्तित्व है कविताओं का । उतरती है तो रुकती नहीं । पर जब बिमार होती है तो लंबा इंतजार करवाती है प्रेसी की तरह

  • Popular
  • Latest
  • Video
a1e0471b88d91ae7005f7c5b8286df3a

Anurag Mankhand

White 
मोमीता देबनाथ : एक ओर बेटी 
            
                    


सिसकती रहीं और बेबस रहीं 
वो हैवानियत से भी ज्यादा कुछ 
और ज़िस्म से भी ज्यादा कुछ 
अपनी रूह पर सहती रहीं 
माँ दुर्गा के इस शहर में 
बेटी आज मारी गयी और 
ज़िस्म से नौची गयी 

वो आसूँओ की गूंज कहीं 
दीवारो से टकराती रहीं
बहती सिसकियां और लहू आँखो से 
ज़मीन भी मातम मनाती रहीं 
माँ दुर्गा के इस शहर में 
बेटी आज तड़पती रही और 
ज़िस्म से नौची गयी 

दर्द की पराकाष्ठा से भी कुछ परे है तो  (चरमसीमा)
उस बेटी ने सही होगी 
उन दरिन्दों की क्रूरता की पराकाष्ठा से 
हवा भी सहमी होगी 
कितनी डरी और लाचार होगी वो तब 
जब वहशीपन की इन्तिहा हुई होगी 

क्या गुनाह था उसका , इन से पूछो तो सही 
परवाज़ के लिए तैयार थी वो  (उड़ान) 
एक ख़्वाब था उसका 
और वो गरूर था माँ- बाप का 
कितनी बिजली गिराई होगी 
कितनी पीड़ा से वो निकली होगी 

इन दरिन्दों को सिर्फ हवस दिखी ,
न उसमें बहन दिखी,  न उसमें माँ दिखी 
न गर्वित करने वाली समाज की वो औरत दिखी 
न दिखी उसमें एक उम्मीद 
न दिखी उसमें एक ज़िन्दगी 
न दिखी घर से निकलते वक्त चोखट पर खड़ी वो औरत 
न दिखी जन्म देने वाली और दुवा पढ़ने वाली वो औरत 
न दिखी खुद की वो छोटी नन्ही सी परी बिटिया 
दिख जाती तो शायद 
आज 'मोमीता' जी पाती , जिन्दा होती

©Anurag Mankhand 
  #nightthoughts #RapefreeIndiA
a1e0471b88d91ae7005f7c5b8286df3a

Anurag Mankhand

मोमीता देबनाथ : एक ओर बेटी 
            August 23, 2024 To September 10,2024 
                       09:24 A.M. To 12: 53 A.M. 


सिसकती रहीं और बेबस रहीं 
वो हैवानियत से भी ज्यादा कुछ 
और ज़िस्म से भी ज्यादा कुछ 
अपनी रूह पर सहती रहीं 
माँ दुर्गा के इस शहर में 
बेटी आज मारी गयी और 
ज़िस्म से नौची गयी 

वो आसूँओ की गूंज कहीं 
दीवारो से टकराती रहीं
बहती सिसकियां और लहू आँखो से 
ज़मीन भी मातम मनाती रहीं 
माँ दुर्गा के इस शहर में 
बेटी आज तड़पती रही और 
ज़िस्म से नौची गयी 

दर्द की पराकाष्ठा से भी कुछ परे है तो  (चरमसीमा)
उस बेटी ने सही होगी 
उन दरिन्दों की क्रूरता की पराकाष्ठा से 
हवा भी सहमी होगी 
कितनी डरी और लाचार होगी वो तब 
जब वहशीपन की इन्तिहा हुई होगी 

क्या गुनाह था उसका , इन से पूछो तो सही 
परवाज़ के लिए तैयार थी वो  (उड़ान) 
एक ख़्वाब था उसका 
और वो गरूर था माँ- बाप का 
कितनी बिजली गिराई होगी 
कितनी पीड़ा से वो निकली होगी 

इन दरिन्दों को सिर्फ हवस दिखी ,
न उसमें बहन दिखी,  न उसमें माँ दिखी 
न गर्वित करने वाली समाज की वो औरत दिखी 
न दिखी उसमें एक उम्मीद 
न दिखी उसमें एक ज़िन्दगी 
न दिखी घर से निकलते वक्त चोखट पर खड़ी वो औरत 
न दिखी जन्म देने वाली और दुवा पढ़ने वाली वो औरत 
न दिखी खुद की वो छोटी नन्ही सी परी बिटिया 
दिख जाती तो शायद 
आज 'मोमीता' जी पाती , जिन्दा होती

©Anurag Mankhand 
  #Stoprape Tribute To 
Momita Debnath

#Stoprape Tribute To Momita Debnath #Poetry

a1e0471b88d91ae7005f7c5b8286df3a

Anurag Mankhand

वो यादों में ही सही पर ज़िन्दा है अभी 
बंद आँखो के दरीचे पर खड़े मिलते है कभी 
खुली आँखो को बहुत देर तक एहसास रहता है ये 
कि तुम आये थे अभी ।

जैसे पहाड़ो की सतह पर कितने पेड़ खड़े मिलते है 
हज़ारो साल पहाड़ो को बिखरने से बचाते है 
तुम्हारी यादें भी मुझे संभालती है 
और मेरी उम्र तक तुम्हारा एहसास करवाती है 

मैं तुम्हे अब भी महसूस करता हूँ 
बहुत तीव्र भाव से आलिंगन करता हूँ 
आँसू भी बहुत अंदर तक उतरते है 
भीतर मन को तर्पण करते है 

उस घाट पर नाविक इतज़ार में रहता है 
कितना मुश्किल हो जाता है 
जब लहरें डुबोती भी नहीं और 
नाँव पर कोई आता भी नहीं 
मेरा भी कुछ ऐसा ही है ...
तुम बिन मैं कुछ भी नहीं 
तुम बिन मैं कुछ भी नहीं 

एहसास , दर्द और जीवन 
यही मैं हूँ  ओर कुछ नहीं 
एक बूंद हूँ बारिश की 
जो गिरकर भी ज़मी से मिली नहीं

मैं अधूरा हूँ  उस साज की तरह
जो अभी तक हाथों के स्पर्श से मिला नहीं 
मैं वो रात हूँ जो चाँद से अभी मिली नहीं 
मैं वो आँख हूँ जो कभी खुली नहीं 

इन सब में तुम हो और कुछ भी नहीं
यही मैं हूँ तेरे नाम से 
इसके सिवा कुछ भी  नहीं ।।

©Anurag Mankhand सिर्फ मुझमें तुम 

#youandme

सिर्फ मुझमें तुम #youandme #Love

a1e0471b88d91ae7005f7c5b8286df3a

Anurag Mankhand

आदमी की औकात बताता आदमी 
बंधा हुआ सा 
खुद को आज़ाद बताता आदमी 

आब पर चलता हुवा     
आबरू बचाता आदमी 
देखा है मैंने 
औक़ात से आगे जाता हुवा आदमी 

ख़ाक होता आदमी 
मालूम नही किस ख़ुमार में है आदमी 
काग़ज के ख्याल और ठिकाना बनाता आदमी 
गर्द होते जिस्म को सजाता आदमी 

सब कुछ जानता है आदमी 
फिर भी खुद को खाता है आदमी 
नज़दीक है क़यामत के दिन 
फिर भी 
अपनी कब्र पर नाचता आदमी 

ये भगवान का बनाया है दोस्तो       
नाज़ से भरा हुवा है आदमी     
पागल हुवा घुमता है आदमी 
आदमी की औकात बताता आदमी ।।

©Anurag ELahi #Aadmi 

#Winter
a1e0471b88d91ae7005f7c5b8286df3a

Anurag Mankhand

वो रात भूलती नहीं 
जब पहली दफा देखा था तुम्हें 
ज़ोरो से धड़का था दिल
और नज़रो ने पहली मर्तबा बोला था कुछ 

सर्द रात में जलती आग के पास बैठी थी तुम 
और मुझे तुम रौशनी सी नज़र आ रही थी 
दोस्तों की थी महफिल जो तुम्हारी 
पर तुम सब में चाँद नज़र आ रही थी 

कोई वक्त नहीं होता बिमार हो जायें कोई 
बिना जानें खास हो जायें कोई 
ये मिज़ाज़- ए-इश्क में तहजीब कहाँ होती है 
होठों की बात नज़रों से बयां होती है 

फिर एक दौर था जब मुसाफ़िर बनें थे 
मुलाकातें थी कम हमारी , फिर भी साथ चलें थे 

पहरेदार थी तुम पर रस्में और रवायतें 
इश्क फिर हारा था 
तुम्हारी दी हुई कसमों के आगे 

उम्र के उस दौर में मिली हो जाकर 
जब दिल को दवा और दुवा दोनों की जरूरत है 
मैं आज भी उस रात में ठहरा हूँ इतज़ार में तेरे 
अब तो आ जाओ मुझे बर्बाद करने 
अब तो आ ही जाओ आबाद करने ।।

©Anurag ELahi #EkMohabhatAsiBhi

#Couple
a1e0471b88d91ae7005f7c5b8286df3a

Anurag Mankhand

ज़माने से गुफ़्तगु का असर तुझ पर ये है 
वस्ल की रात में बदल जाती हो तुम 

मुकम्मल इश्क से मसला रहा है ज़माने को 
कितने बयाबान गवाह है इसके 

आसमां पर कहीं दूर एक शहर है ख़ूब-रू सा 
कबूल होते वहां सभी रूह वाले 

मैं तुझमें मिलना चाहता हूँ इस कदर 
के ख़ाक होकर भी रहना चाहता हूँ तुझ में 
और हिज्र में मरना कौन चाहता है 
फ़क़त गोद में हो सर मेरा और 
बुझ जाऊँ तेरे आँसू से वहीं 

दूर ही रहा करों इस शहर से इल्तिजा है मेरी 
ख़ालिक-ए-कुल ने हमें 
बारिश और बादल सा जुफ़्त बनाया है 

उन किनारों पर फिसलन है बहुत 
मेरे हाथों को थाम लो तसल्ली रहेंगी 
मुझमें होसला है डूबने का 
मैं मर भी जाऊँ तेरे काम से 
ऐसी मौत पर दिल को तसल्ली रहेंगी

©Anurag ELahi #वस्लकीरात 

#Darknight
a1e0471b88d91ae7005f7c5b8286df3a

Anurag Mankhand

वो कागज़ पर उतर आते है लफ्ज़ बनकर 
मैं लिख जाता हूँ उनको मजनूँ बनकर

साथ चलने को राज़ी थे घर मेरे 
किस बात ने रोका है अब उन्हें 
कदमों की धड़कन सुन लू ज़रा 
क्यों रुके है वहीं, पूछें ज़रा 

क्या करना है रख कर ये दुनिया वालो 
फूल ये बाग के कब तक खिलेंगे 
मोहब्बत के वायदे, टूटते है अक्सर 
खूं के रिश्तों के आगे बिखरते है अक्सर 

इन गलियों से निकलता रहता हूँ मैं 
नज्मों की फेरी लगता हूँ मैं 
तुझे देखा था इक दिन चोखट पर खड़ी थी 
एक चिट्ठी तेरे हाथों में पड़ी थी 

ऐसा हुवा है हम में कभी 
मनाया हुवा हो मुझको कभी 
इस रिश्ते में सिर्फ मैं तो नहीं 
फिर मौसम क्यों लगते है जानशीं (वारिस) 

ये लिखना मेरा कोई पढ़ता नहीं 
दर्द है इसमें कोई समझता नहीं 
मैं इतज़ार में रहता हूँ अक्सर तेरे 
और मिरे दिल से भी तो तू उतरती नहीं 

लफ्ज़, रातें और ये सुबह 
सब तेरी तो है 
मेरी दिल की दिवार पर तस्वीर 
तेरी तो है 
ये मेरी ज़मी और मैं उसकी तलाश में 
निकला हूँ कड़ी धूप में 
उस सेहरा पर नंगे पाँव हूँ 
वो वसीयत में मिली है मुझे उदास बारिश 
सब तेरी तो है ...

©Anurag ILahi #Udasi
a1e0471b88d91ae7005f7c5b8286df3a

Anurag Mankhand

ख़्वाहिशे 

बैठे थे आज ख्वाबों में कहीं 
कुछ ख़्वाहिशों का जिक्र हुवा था 
रात में उतरी थी आसमां से चाँदनी 
और जिन्दगी का आगाज़ हुवा था 

कुछ मग़रूर ख़्वाहिशे (घमण्डी)
आरिज़े-गुल चाहती है (गुलाब के रंग जैसे गाल)
पर जिन्दगी कहाँ कुछ ऐसा देती है 
दरिया से ज्यादा क़यामत लाती है (प्रलय)
'इलाही ' से पूछकर तो देख 
ये ज़मी कितना खाती है 

कितना लंबा है ख़्वाहिशों का सफर 
हाल-ए-ज़बूँ होने को है (बुरी हालात)
बारिश की बूँदें सुख चुके शज़र पर गिरने दो ज़रा 
जिंदा रहेगा तो दुवा देगा 

ये सब मिट जायेगा एक दिन 
ढलेगी रात जब शबनम में कभी (ओस)
और एहसास जिन्दा रह जायें तो जिन्दगी है 
मुर्दे जिस्म पर मौसम कहाँ ठहरते है 

बादलों को सोना है पहाड़ों में कहीं 
खुली जम़ी पर तो भेदे जाते है 
बिस्तर से उठती है कितनी ख़्वाहिशे रोज़ 
और बेमतलब हो जाती है हिक्कत में कहीं ।।

मैं ख्वाबों में घुल मिल जाता हूँ कुछ इस कदर 
के बेहिसाब सा हो जाता हूँ 
और नींद से उठकर आँखे फिर सोने की दुवा करती है 
ख्व़ाहिशों का समुद्र बहुत गहरा है 
डूब जाता हूँ अक्सर ।।

©Anurag Kumar #ख़्वाहिशे 
#Wishes 
#creativeminds
a1e0471b88d91ae7005f7c5b8286df3a

Anurag Mankhand

इनकी रफ्तार से मैं चल नहीं सकता 
इतनी तबीयत से खुद को बदल नहीं सकता 
नदिया भी सूखने में वक्त लेती है 
ये किन लोगों का हुजूम है 'इलाही'
जो मुकरने में वक्त भी नहीं लेता ।

इनसे उम्मीदों का समुद्र पाले बैठे है लोग 
ओर ये एक बूँद भी नहीं दे सकता 
मतलबी सा आसमां है इनका 
जो किसी को धूप दे नहीं सकता 
इनकी रफ्तार से मैं चल नहीं सकता 
इतनी तबीयत से खुद को बदल नहीं सकता 

क्या बताऊँ मय्यत पर लेटा हूँ अभी तक (अर्थी)
मैं खुद को ही उठाकर ले जाता हूँ रोज़ शमशान तक
किस शै की तमन्ना पाले बैठे है ये लोग (चीज़)
असली शै को भूल बैठे है ये लोग 

अब हमारे सलीक़े में इन की तहज़ीब न आ जायें (व्यवहार) (संस्कृति)
चलो अपनी जम़ी अलग करते है 
खुद के नशेमन में रहकर ही (घोंसला)
कोई कार-ए-सवाब करते है ।। (पुण्य का काम)

©Anurag Kumar #LifeOfPolitics 

#simplicity
a1e0471b88d91ae7005f7c5b8286df3a

Anurag Mankhand

उस हिसाब से मैं था भी गलत 
के हिसाब लगा न सका के उसके जेहन में क्या था ।

मुझ पर असर जो था , नजरों पर तू जो छाया था 
ये समझ न सका के उसकी नजरों में कोई ओर था ।।

मैं छत के नीचे भी भीग जाता हूँ अक्सर 
हर बात बयां करने में लेट हो जाता हूँ अक्सर 
जब रूह से मेरी तेरा जिक्र हुवा था 
तब भी कुछ ऐसा ही हुवा था ।।

हर मौसम का वक्त तय होता है 
इजहार-ए-इश्क कहाँ आसां होता है 
मेरा वक्त अभी मेरे हिसाब से नहीं है 
वर्ना तेरा आना मेरी बाँहो में तय होता ।।

उस हिसाब से मैं था भी गलत 
के बेहिसाब प्यार आया था तुझ पर 
के पढ़ न सका तेरी मासूमियत को 
और तबाह होता चला गया 
तेरी मुस्कराहट पर 
तेरी मुस्कराहट पर ।।

©Anurag Kumar #अकेले 
#alone
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile