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vinaykumarsingh3180
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VINAY KUMAR SINGH

कवि

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VINAY KUMAR SINGH

खुद की मेहनत से रुतबा खड़ा किजिये।
कद बड़ा हो न हो.... दिल बड़ा किजिये।

जिद्द हवाओं से करना......अलग बात है,
आंधियों के भी आगे.......अड़ा किजिये।

जंग में जीत होगी..............जरूरी नहीं,
हारने के लिए भी...........लड़ा किजिये।

अब कफ़न भी मुनाफे का....सौदा हुआ,
हाय- तौबा खुदा से..........डरा किजिये।

आज-कल पत्थरों का.....चलन बढ़ गया,
कांच पर मत नगीने.........जड़ा किजिये।

मौत के बाद सब कुछ......सिमट जायेगा,
सांस है जब तलक कुछ.....बड़ा किजिये।

विनय सिंह "बाली" #दुनियादारी  Priyanka Yadav Akram Raja Khan Sunita Sharma Şนfi คkhtคr ໐ffi¢iคl✍ Esha mahi

#दुनियादारी Priyanka Yadav Akram Raja Khan Sunita Sharma Şนfi คkhtคr ໐ffi¢iคl✍ Esha mahi #शायरी

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VINAY KUMAR SINGH

साज छेड़ेगा, नया धुन गुनगुनयेगा।
फिर जमाना मुस्कुराएगा।
(१)
फिर चलेगी रेल गाड़ी, फिर सड़क गुलजार होंगे।
खेल के मैदान में, फिर से इक्कठे यार होंगे।
फिर शहर आबाद होकर, दौड़े जाएगा।
फिर जमाना मुस्कुराएगा।
(२)
फिर लगेगी भीड़ भारी, आरती, अज़ान में ।
फिर मनेगी रामनवमी, ईद, हिंदुस्तान में।
फिर सजा बाज़ार मन, सबका लुभायेगा।
फिर जमाना मुस्कुराएगा।
(३)
फिर नई पिक्चर लगेगी,पास वाली मॉल में।
आईपीएल होगा शुरू,फिर से नए इकबाल में।
माही फिर हर गेंद पर,छक्का उड़ाएगा।
फिर जमाना मुस्कुराएगा।
(४)
हाथ धोएं, मास्क पहने,दूरियों पर ध्यान दे।
जो लड़ाई लड़ रहे,उनको चलो सम्मान दें।
साथ हो सबका, कोरोना हार जाएगा।
फिर जमाना मुस्कुराएगा। #Corona😷

Corona😷

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VINAY KUMAR SINGH

अमृत से भरपूर सरोवर है 'माई'।
                 कुदरत की अनमोल धरोहर है 'माई'।
रिश्तों को रसदार बनाकर रखती है।
'माँ' ही घर में प्यार बनाकर रखती है।
                 घाव लगे तो चुटकी में भर देती है।
                  'माँ' की ममता हर पीड़ा हर लेती है।
बच्चों की खामोशी पढ़ना आता है।
'माँ' को हर मुश्किल से लड़ना आता है।
               कण-कण व्यापित प्राण धरा पर है 'माता'।
                  ईश्वर की वरदान धरा पर है 'माता'।
जीवन क्या है सार समझ मे आता है।
'माँ' से ही संसार समझ मे आता है।
                   सृष्टि का आधार अधूरा रह जाता।
                   बिन 'माँ' के संसार अधूरा रह जाता।
इसीलिए तो माँ की महिमा गाता हूँ ।
माँ चरणों मे अपना शीश झुकता हूँ ।🙏🙏 Mother's day

Mother's day #poem

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VINAY KUMAR SINGH

"माँ"
शब्द नहीं सृष्टि है।

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VINAY KUMAR SINGH

तुम बोलो, कुछ बोलूँ क्या ?
राज हृदय का खोलूं  क्या ?
                     मन तुझको रब मान चुका है,
                     मैं  भी  तेरा  हो - लूँ  क्या  ?
है, संदेह अगर तो कह दो,
प्रीत  तुला  में  तोलूँ  क्या ?
                     वर्षों बाद मिला है मौका,
                     लिपट-लिपट कर रो-लूँ क्या ?
स्वयं , सरोवर मीठा हो तुम,
मैं  नीरस, रस  घोलूँ  क्या ?
                    जो जीवन तुझपर हारा हूँ,
                     उस जीवन से मोलूँ क्या ?

      विनय 'बाली' सिंह बोलूँ क्या?

बोलूँ क्या? #poem

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VINAY KUMAR SINGH

जिंदगी, तुझसे कुछ तो समेटा जाये।
राख ही सही तन पर लपेटा जाये।

वापसी नामुमकिन हो जिस मोड़ से,
दर्द, उतनी दूर तक चहेटा जाये।

जंग चाहते है मगर ये नहीं चाहते।
की जंग में हमारा भी बेटा जाये।

हो असर दिल की धमनियों तक "विनय",
पुराने जख्म को ऐसे न उकेटा जाये। जिंदगी

जिंदगी #शायरी

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VINAY KUMAR SINGH

मारे दहशत सब बैठे है, पकड़ पकड़ के घर का कोना।
हाय कोरोना, बाय करो..ना,  इतनी खुरापात करो ना।

गलती की चीनी ने हर्जाना सबको क्यों बांट रहे।
सर्दी, खाँसी, ज्वर, दमा से सारे जग को पाट रहे।
किन बातों की ख़ूनस है जो अपनी मर्जी दाग रहे।
जिसका दोष नहीं उसको भी सूली पर तुम टांग रहे।
क्या पीड़ा है मन के अन्दर, क्या करने की इच्छा है।
क्यों गुस्से में लाल पड़े हो,बैठो खुलकर बात कहो ना।
हाय कोरोना, बाय करो..ना,  इतनी खुरापात करो ना।

सबकुछ चौपट कर डाले हो, धंधा भी अब मन्दा है।
तुम्हरे कारण घर के अंदर दुबके बंदी-बन्दा है।
पहले से पीड़ित मानव है मजहब वाले दंगो से।
लूट-खसौती और घोटाला राजनीति के धंधो से।
पहले से सहमी बैठी है धरा आतंकी सायो से।
तुम भी इन सबके जैसे हो जाकर इनके साथ मरो..ना।
हाय कोरोना, बाय करो..ना,  इतनी खुरापात करो ना।

हम भारत के वासी हमको गले लगाना भाता है।
लेकिन कोई घात करे तो गाला दबाना आता है।
तुमने भी आघात किया है तुम भी कुचले जाओगे।
तम्बाकू के साथ हथेली पर ही मसले जाओगे।
और नहीं माने तो बीड़ी चीलम संग जलोगे तुम ,
'विनय' न माने तो पछताना पड़ सकता है राम कहो ना।
हाय कोरोना, बाय करो..ना,  इतनी खुरापात करो ना।

                           विनय 'बाली' सिंह। KORONA
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VINAY KUMAR SINGH

कुछ करो ऐसा की ऐहतराम से गुजरे।
जिंदगी चार कदम तो आराम से गुजरे।

लब्ज़ जब भी करें सफर कानों तक का,
है दुआ, हर लब्ज़ तुम्हारे नाम से गुजरे।

हल नहीं होंगे मसले ऐलान करने से,
ठान बैठे हो, तो चलो अंजाम से गुजरे।

मांग रक्खी जा सकती है तरतीब से 'विनय',
क्या जरूरी है? मजलिसें कत्लेआम से गुजरे। sadiya ryne Suman Zaniyan

sadiya ryne Suman Zaniyan #शायरी

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VINAY KUMAR SINGH

मन्द मन्द मुस्कान लबो पर, चंदा सर पर साजे है।
जटा बीच गंगा को धारे, सूर्य ललाट विराजे है।
संग सती कैलाश बिराजे, देख नयन रस माजे है।
भाव भक्ति का डमरू डम-डम, भक्त हृदय में बाजे है।

विनय बाली सिंह
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VINAY KUMAR SINGH

जीवन का ये सार समझना मुश्किल है।
सांसारिक व्यवहार समझना मुश्किल है।
कब तक साथ रहे, कब पीछे छोड़ चले,
सांसो की रफ्तार  समझना मुश्किल है।

               विनय बाली सिंह।
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