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vikashsharma9825
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Vikash Sharma

poetry and shayari

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Vikash Sharma

White मयार महंगी तलवार सस्ती थी,
कुछ ऐसी उस शहंशाह की हस्ती थी,
जहां राज करता था वहा 2-4 दोस्त थे उसके,
बाकी सारी की सारी खाली बस्ती थी,
खुद ही राजा, खुद ही सेनापति, खुद ही द्वारपाल था,
कुछ ऐसा तो उस शहंशाह का हाल था,
दोस्ती करने में माहिर, दिल जीतने में उस्ताद था,
युद्ध से जितना बच सको बचो,
ऐसा उसका ख्याल था,
अपनी बस्ती में फिर भी उसका भौकाल था,
एक बार टमाटर महंगा हुआ,
उसने टमाटर को आजीवन बैन कर दिया,
उसके इसी अंदाज ने लोगों को उसका फैन कर दिया,
उसके बाद महंगाई की सिर उठाने की हिम्मत ना रही,
अब बस लोगों का जमीर महंगा रहा,
उसके राज में और किसी चीज की ज्यादा कीमत ना रही,
अब उसकी बस्ती भर चुकी थी,
वो सब रियासतें खाली होती गई,
जिनमें इंसानियत मर चुकी थी,

©Vikash Sharma
  #international_Justice_day
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Vikash Sharma

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Vikash Sharma

White महंगाई की मार बढ़गी,

माणस की करड़ाई चढ़गी,

व्हीकल तै आगे तेल निकल ज्या है,

सब्जी मंडी के गेट पै ए नींबू घेटी पकड़ ज्या है,

कुल्फी भी इब आपणे रेट बढ़ागी,

मिर्ची भी बेसरम हो घणे भाव खागी,

घीया भी भाव पूछते मुंह चढ़ावै है,

खीरे काकड़ी भी कोए कोए खावै है,

भिंडी तौरी भी नहीं आती आसानी तै काबू,

टमाटर तो हो लिया सबका बाबू,

धनिया भी अलग तै रेट चाहण लाग्या,

न्यू कह है भाई मैं फ्री मैं क्यूं जाण लागया,

आलू बैंगण कै गले लाग कै आशु टपकाण लाग्या,

बोल्या भाई के हाल होगे रै,

इब तो आपा नै पूछणे कोए कोए आण लाग्या,

इब तो आपा नै पूछणे कोए कोए आण लाग्या,

Vikash Sharma

©Vikash Sharma
  #wallpaper
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Vikash Sharma

White महंगाई की मार बढ़गी,
बॉस की फटकार बढ़गी,
घर आला की डिमांड बढ़गी,
माणस की करड़ाई चढ़गी,
व्हीकल तै आगे तेल निकल ज्या है,
सब्जी मंडी के गेट पै ए नींबू घेटी पकड़ ज्या है,
कुल्फी भी इब आपने रेट बढ़ागी,
मिर्ची भी बेसरम हो घणे भाव खागी,
घीया भी भाव पूछते मुंह चढ़ावै है,
खीरे काकड़ी भी कोए कोए खावै है,
भिंडी तौरी भी नहीं आती आसानी तै काबू,
टमाटर भी हो लिया सबका बाबू,
धनिया भी अलग तै रेट चाहण लाग्या,
न्यू कह है भाई मैं फ्री मैं क्यूं जाण लागया,
आलू बैंगन कै गले लाग कै आशु टपकाण लाग्या,
बोल्या भाई के हाल होगे रै,
इब तो आपा नै पूछणे  कोए कोए आण लाग्या,
इब तो आपा नै पूछणे कोए कोए आण लाग्या,

©Vikash Sharma
  मंहगाई

मंहगाई #कविता

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Vikash Sharma

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Vikash Sharma

White काश ऐसा हो,
मेरी मुस्कराहट उसके होठों पे आ जाए,
उसके हिस्से का दुख दर्द मेरे दिल में समा जाए,
उसके आसूं टपकें मेरी आंखों से,
मेरे हिस्से की खुशी से उसका चेहरा खिलखिलाए,
उसे वो सब मिले जो उसकी ख्वाइश,
जो उसे नापसंद हो मेरे हिस्से आ जाए,
वो जिंदगी भर मेरी आंखों का नूर बनके रहे,
सुन्दर फूल सा महकता रहे रिश्ता हमारा,
वो मेरा गुरुर बनके रहे,

©Vikash Sharma
  #love_shayari
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Vikash Sharma

White उम्र की मार से कौन बचा है,
कल का भैया ही तो,
आज का चच्चा है,
झुरियां चेहरे की चमक को,
सूर्यग्रहण लगा देती हैं,
उम्र बढ़ रही है,
बिन बोले बता देती हैं,
मेकअप से झुरियां छिपाने वाले,
अक्सर पेट कहां छिपा पाते हैं,
ना अपनी चाल में,
पहले वाली फुर्ती दिखा पाते हैं,
भाग दौड़ से भी बचते नजर आते हैं,
झड़ते बालों के लिए,
पानी को जिम्मेदार ठहराते हैं,
घुटनों के दर्द के लिए,
खान पान पे दोष लगाते हैं,
मगर ऐज को जस्ट ऐ नंबर,
जस्ट ऐ नंबर बताते हैं,


Vikash Sharma

©Vikash Sharma #sad_shayari
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Vikash Sharma

White वो नदी भी कितनी नादान थी,
जो समुंदर से पूछ बैठी,
बता तुझमें कितनी प्यास है,
उसे कौन समझाए,
जाने कितनी नदियां पी गया,
ये समुंदर बड़ा बदमाश है,

©Vikash Sharma
  #olympic_day
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Vikash Sharma

White बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने की जिद्द में,
आज वो गांव छोड़ शहर की तरफ चल पड़ा था,
इसके लिए वो घर वालों से भी लड़ा था,
यूं तो उसे पता था उसकी कमाई कम,
और शहर का खर्चा बड़ा था,
मगर वो तो एक बाप था,
तभी तो उसे विश्वास था,
वो कोई भी जुगाड़ लगा लेगा,
बच्चों की फीस, घर का खर्चा चल जाए,
इतना तो कमा लेगा,
कभी बेफिक्री से जीने वाला,
बड़े चाव से चाय पीने वाला,
वो लड़का आज थका हारा,
10 रुपए की चाय पीने से भी कतराने लगा,
सुबह घर से खाना खाके निकलता,
शाम को घर आके ही खाने लगा,
खाने पीने का शौकीन वो,
अब खाली पेट भी मुस्कुराता था,
पुराने कपड़ों में भी अब उसे मजा आता था,
लोग उसे कंजूस कहने लगे थे,
मगर हां,
बच्चों के जन्मदिन पर केक जरूर लाता था,
वो दिन रात काम करके,
अपना शरीर तोड़ लेता था,
घर का खर्च, बच्चों की फीस भर ले,
इतना महीने के आखिर तक जोड़ लेता था,
क्योंकि वो एक बाप था

Vikash Sharma

©Vikash Sharma
  #fathers_day
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Vikash Sharma

White बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने की जिद्द में,
आज वो गांव छोड़ शहर की तरफ चल पड़ा था,
इसके लिए वो घर वालों से भी लड़ा था,
यूं तो उसे पता था उसकी कमाई कम,
और शहर का खर्चा बड़ा था,
मगर वो तो एक बाप था,
तभी तो उसे विश्वास था,
वो कोई भी जुगाड़ लगा लेगा,
बच्चों की फीस, घर का खर्चा चल जाए,
इतना तो कमा लेगा,
कभी बेफिक्री से जीने वाला,
बड़े चाव से चाय पीने वाला,
वो लड़का आज थका हारा,
10 रुपए की चाय पीने से भी कतराने लगा,
सुबह घर से खाना खाके निकलता,
शाम को घर आके ही खाने लगा,
खाने पीने का शौकीन वो,
अब खाली पेट भी मुस्कुराता था,
पुराने कपड़ों में भी अब उसे मजा आता था,
मगर हां,
बच्चों के जन्मदिन पर केक जरूर लाता था,
वो दिन रात काम करके,
अपना शरीर तोड़ लेता था,
घर का खर्च, बच्चों की फीस भर ले,
इतना तो महीने के आखिर तक जोड़ लेता था,
क्योंकि वो एक बाप था

©Vikash Sharma
  #love_shayari बाप
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