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nikitarawat4875
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Nikita Rawat

Nikita Rawat जो दर्द छिपाना चाहते हैं, वो दर्द पे पहरा रखते हैं... पढ़ ले ना कोई गम चेहरे पे, चेहरे पे चेहरा रखते हैं।।

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Nikita Rawat

क्यूं बेवजह बदनाम है अंधेरी रात...
मुझे दिन की रोशनी ज्यादा मनहूस लगती है,
रात का अंधेरा नींद मुकम्मल करता है...
दिन की रोशनी कसकर आंखों में चुभती है।।

रोशनी में मुझसे लिखा भी नहीं जाता...
हर्फ दिखते हैं, लफ्ज़ दिखाई पड़ते हैं,
कागज,कलम सब अपने से लगते हैं...
मगर जाने क्यूं कोई जज़्बात नज़र ही नहीं आता।।

अश्क बेझिझक बहते नहीं रोशनी में...
यहां तो होंठ भी फर्जी मुस्कुराते हैं,
पढ़ ना ले कोई ग़म चेहरे पे...
रोशनी में हम एक और चेहरा लगाते हैं।।

मगर जाते नहीं किसी की नजरों तक...
ये दर्द, ये ज़ख्म अंधेरे में, 
है रहता बेखौफ बेपर्दा आजाद...
मेरा हर एक मर्ज अंधेरें में।।

हर पल एक तन्हाई काटती है मुझको...
कमबख़्त हजारों हिस्सों में बांटती है मुझको,
एक शोर सुनाई देता है जो सुन्न है...
गौर से सुनो!शायद,
ये अंधेरा भी किसी गीत की अधूरी धुन है।।

अंधेरा क्या है भला...
ये अंधेरा...सच है मेरा,
मेरे कमरे और तकिये का हालात हैं...
अंधेरा गुमशुदा जज़्बात है,
बीत गया उस कल के जैसा...
और अंधेरा आज है,
हां,अंधेरा हर सांझ है।।
                                     - निकिता रावत।
             लफ़्ज़ों की ज़ुबां✍️

©Nikita Rawat
  #ChaltiHawaa
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Nikita Rawat

international women's day

international women's day

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Nikita Rawat

आओ ना!🐾लौट कर(बचपन)

जाते-जाते दूर वो फासले इतने कर गया...
अदमुंदी आंखों में मेरी यादें वो भर गया,
अब कहां कोई हंसता-गुदगुदाता दिखता है...
कहां दिल अब मेरा भी बेवजह मुस्कुराता दिखता है।।

अब नहीं मिलते बेहद करीबी यार भी...
आओ ना! लौट कर(बचपन),
तुम देख लो इक बार ही...
बनाये महल जो मिट्टी के थे,
हां,कागज की वो नांव थी...
आसमां में इंतहाई शौक से,
कभी पतंग भी उड़ाई थी।।

अब ना वो जहाज कहीं...
और ना कहीं वो नांव है,
कागजों से खेलने का...
आज भी एक ख़ाब है।।

आरजू यही मेरी हवाओं में झूम लूं ...
बारिशों में बिन छत्तरी गली-गली में घूम लूं ,
बादलों की खिड़कीयां खोलकर मैं झांक लूं...
आईने में आसमां के खुद को मैं तांक लूं।।

अरमां हैं पुराने यार हो...
स्कूल की वो चारदीवार हो,
हम खड़े हो संग में...
मस्तियों का खुमार हो।।

बेवजह मैं नांच लूं...
बेससब मैं रो पड़ूं,
आजाद इतना दिल नहीं...
बचे अब वो दिन नहीं।।

ले चली यादें अब भी...
मुश्किलों से आसानी तक,
हाथ पकड़  पहुंचाती मेरा...
किरदार को मेरे कहानी तक।।

है दिल छोटी-सी कश्ती...
जो खोयी बड़ी लहर में है,
ना गांव में है,ना नगर में है...
बचपन मेरा जाने किस सफर में है।।

अब कभी-भी साथ में...
आंख-मिचौली चलती नहीं,
मैदान में अब कहीं...
यूं शाम ढलती नहीं,
आओ ना! लौट कर...
तुम देख लो इक बार ही।।
                                    -निकिता रावत।
   लफ़्ज़ों की ज़ुबां✍️

©Nikita Rawat zindagikerang
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Nikita Rawat

बड़ी मुश्किल डगर है...
अब सहारा दे खुदा,
हैं जो उलझन सीने में...
कोई तो इशारा दे खुदा।।

दर्द था मेरे हिस्से का...
लेकिन दर्द से वो गुजरी,
एक लड़की मेरे खातिर...
गहरे दलदल में उतरी।।

बेनाम थी जो धड़कनें...
अब जाके उन्हें नाम मिला,
दिल ने कबका भेजा था...
अब जाके पैगाम मिला।।

खत तो है वफ़ा का...
और यहीं है पैगाम भी, 
धीमी-सी आवाज़ थी दिल की...
अबसे इश्क है तेरा काम ही।।

हैं रिश्ता बेनाम,बेदाग-सा...
नाम दिया तो दुनिया को खबर लग जाएगी,
मुझे डर है कि...
उसे किसी की नजर लग जाएगी।।

नजरों से बचा के सबकी...
चलूंगा ताउम्र भर साथ तेरे,
साया तेरा बन जाऊंगा...
हर ज़ख्म तेरा तुझसे पहले मेरा बने।।
                                      -निकिता रावत
               लफ्जों की जुबां ✍️

©Nikita Rawat इशारा

इशारा

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Nikita Rawat

माना कि वक्त मुश्किल था...
मुश्किल थी, इंत्तेहां की घड़ी,
पर ये दोस्ती तोड़ दें...
हम दोनों को ये हक नहीं।।

जब ख्वाब तुम्हारा टूट रहा था...
रेत की तरह सब छूट रहा था,
तब पीछे रहा मैं... 
इक कदम बढ़ ना पाया,
हां तन्हा लड़ीं तुम...
मैं लड़ ना पाया।।

शिकायतें, शिकवें सब तेरे...
सुनना चाहता हूं,
आंखों से गिरे जो मोती तेरे...
चुनना चाहता हूं,
आज दोस्ती निभा नहीं पाऊंगा...
जो निभाना चाहता हूं।।

माफ़ मुझे कर देना तुम...
माफ़ अगर कर पाओ तो,
आज आने की उम्मीद जरा-सी मध्धम है...
दौड़ा आऊंगा कल अगर बुलाओ तो।।

खिजां में महका चमन हो जैसे...
बाहारों को महका दें,
दोस्ती है एक हवा...
है कसम इसी दोस्ती की,
भूल जा उसे जो हुआ।।
                                    - निकिता रावत।
          लफ़्ज़ों की जुबां ✍️

©Nikita Rawat कसम दोस्ती की

कसम दोस्ती की

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Nikita Rawat

कुछ तो हूं "मैं" विशेष,
हूं मैं मानवता का गौरव...
इंसानियत का राग हूं,
काली-काली इस दुनिया पर... 
इक श्वेत रंग का दाग हूं।।

वात्सल्य का मापदंड मैं,
शक्ति की आधार हूं...
घुंघट में छिपा साहस मैं,
सहिष्णुता की पराकाष्ठा का उद्गार हूं।।

सागर के तट का रेत हूं मैं,
क्षितिज पर ढलते सूरज की लाली हूं...
आफरीन...चांद की चांदनी मैं,
मैं ही धरती माता, मैं जग को पालने वाली हूं।।

फर्ज है जितने दुनिया में सब औरत के नाम है क्यों,
अबला होना इस दुनिया में औरत पर इल्जाम है क्यों...
कितनी बातें दुनिया में हर रोज अधूरी रहती हैं,
चला नहीं कोई साथ तो क्या, टूट गई एक आस तो क्या।।

माना कि टूट कर गिरी हूं,
पर फिर भी फूल हूं,कोई आवारा पत्ती नहीं...
जो ठोकर मार दी हर कहीं,
हो अगर कद्र मेरी तो ही जमीं से उठाना...
वरना बिन देखे अपने रस्ते चलते जाना।।

दुर्बल नहीं हूं ,मैं "नारी" हूं,
मैं ही एक-एक पर भारी हूं...
पग पंजों से चोटी तक,
काबिल सारी की सारी हूं।।

नई पीढ़ी का मार्गदर्शन, परित्याग की उपासना हूं,
धर्म में बाकी बची आस्था मैं,
प्राचीन सभ्यता का अवशेष हूं...
वेदना,अवहेलना का शब्दकोश,
अंतिम मंजिल(धरती मां)का शुन्य शेष...
हां,कुछ तो हूं "मैं" विशेष।। 
                                  -निकिता रावत।
            लफ़्ज़ों की ज़ुबां ✍️

©Nikita Rawat #Internationalwomensday❤️

Internationalwomensday❤️

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Nikita Rawat

इंतजार था मुझे...
हर शाम की तरह उसी पैगाम का,
पर जानती हूं मैं,हाल बेहाल है..
तेरे भी दिल के आयाम का।।

ढूंढा करते हैं बहाने अक्सर बात करने के..
जाने क्यों नज़रें चुराता है वक्त,
एक पल बिताता है साथ में...
तो दूसरे ही पल हो जाता है सख्त ।।

लेके फिर एक बार खुशबू संग बहती हवा...
आएगा सलाम दिल को दिल के पास तो ला,
तब हर धड़कन से बात होगी...
होगा फिर वहीं,जो हुआ उस दफा।।

एक धड़कन कहती पास रहो...
दूसरी कहती दूरी रख,
तीसरी कहती इश्क है ये...
सबसे चीज जरूरी रख।।

तेरी उम्मीद,दर्द,धड़कन...
तेरी उलझन को पहचानती हूं मैं,
संग रहे तो जीत जाएंगे...
सच है ये भी अब जानती हूं मैं।।

इंतजार था आज,कल भी होगा..
हर धड़कन से बात होगी,
दिल जब दिल के पास होगा।।

              -निकिता रावत।
 "लफ्जों की जुबां"✍️ ✍️

✍️

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Nikita Rawat

मुकद्दर में किसका चेहरा है.?

ढलते सूरज के साथ, 
चांद का चमकता नूर है!!
वो कौन है.,अनजाना-सा...
या फिर तराशा हुआ हूर है।।

मिलेगा वो कब, कहां कोई जाने ना!!
आगाज़ होगा  क्या तब कोई तराना.?
या  फिर शुरू होगा नया अफसाना।।

बरसेगी शायद धीमी-सी बरसात..
कहीं बरसेगा पानी भी तो,
मिलेगा उसके हाथों से जब मेरा हाथ..
बनेगी कोई दिलचस्प कहानी भी तो।।

दिल के पिंजरे में कैद था..
किसी कोने में अनछुआ-सा एहसास!!
संग चलेंगे हर कदम..
हमसफर पुराना,पर नई कहानी की आवाज़।।

देखें तो कोई लगे ये रिश्ता गहरा है..
मुकद्दर में किसका चेहरा है.?
                                  -निकिता रावत।
             लफ़्ज़ों की जुबां ✍️ #अनदेखाअनजाना
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Nikita Rawat

हम 💕🦋

ना मैं तुझसे ज्यादा,
ना तू मुझसे कम है...
आज से तू और मैं नहीं,
आज से सिर्फ हम हैं।।

जब साथ हो उन लम्हों की,
खुद हमने क्यारियां सीचीं है...
हाथों में अपने खुद हमने,
खुशियों की लकीरें खींची हैं।।

ना आकर जब हमें,
रंग इंद्रधनुष के तरसाते हैं...
डोर खुद  हाथों में लेकर
हम उन रंगों को सुखाते हैं।।

तारों के झुरमुट का,
आसमां से कहना है...
रंगों की डोरी का,
एक सिरा मेरा तो,दूसरा तेरा है।।

चल बांधे बंधन ऐसा,
कि कभी कोई गिला ना आए...
हमकदम रहेंगे हमेशा,
राहों में चाहे शिला ही क्यों ना आए।। 
                               - निकिता रावत।
                                  
            लफ़्ज़ों की जुबां ✍️ #hum🤝💕

hum🤝💕

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Nikita Rawat

कौन हूं मैं..??
इस समाज में उलझी हुई एक पहेली,
ना कोई अस्तित्व,ना कोई वजूद...
ना कोई मान-सम्मान और नाही कोई पहचान।।

बस हूं तो किसी राह चलते हवस के द्रंरिद्रो का शिकार,
काश!! कि दिल ना होता इंसानों के पास...
तो आज भी चौड़ा कर पाते हम अपना सीना,
और सीख लेते द्रंरिदगी के साथ जीना।।

भेड़ियों की तरह रातों में दबोचकर,
हुं-आ हुं-आ कर पाते हम जिस्मों को नोचकर...
तब जाके किसी मायने में, 
मिला पाते नजरें हम किसी आईने से।।

हम कैसे अलग हैं..?? यूं तो जानवर भी सहते हैं दुखों को,
पर शर्म आती है इंसान कहते हो खुद को..
कुछ तो गलत है..?? कई बार सोचती हूं स्तब्ध,
कलम लेकर बैठी हूं निशब्द..!!

छोटे कपड़े, गंदे इशारे, ना जाने और क्या-क्या बहाने,
तुम्हें जन्म देने वाली दुर्गा याद नहीं आई, जब लगी थी वो करहाने..
जिस्म को झुलसाकर, अस्मत को उसकी तार-तार किया तुमने,

जख्मों से अपने वो तुम्हारे जमीरों को तोलती होगी,
अगले जन्म मुझे बेटी ना बनाना वो ईश्वर से बोलती होगी..
इंसानियत की हदों को लांघकर हैवान बन बैठा है इंसान,
फर्क सिर्फ इतना-सा है, वो जी ना सकी मिला था जो उसे जहान...
और तुम जी गए जिसके तुम  काबिल भी ना थे तुम ऐसे बेईमान।।

मानवता की दीवारों को कौन सकता है तोड़..??
उस बच्ची के जख्मी शरीर को फेंककर, कौन मुख सकता है मोड़,
कुछ दिन तक तो बोलती है देश की सियासत भी उस पर...
फिर गुनहगार को छोड़ देती है नाबालिक है कह कर।।

मैं तुमसे पूछती हूं..?? क्या दफन हुआ इज्जत या फिर इंसानियत।।
यूं तो जगतजननी भी है वो, देवी के रूप में पूजते हो तुम...
लक्ष्मी के रुप में कमाते हो, सरस्वती के रूप में ज्ञान पाते हो...तुम।
फिर आखिर क्यों..?? महाकाली का रूप भूल जाते हो... तुम।।

                                                                        - निकिता रावत। #Stoprape
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