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vinodyadav1587
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Vinodvidrohi

poet, writer, journalist

http://vinodngp.blogspot.com

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Vinodvidrohi

हाँ मैं आस्तीन के सांप को दूध पिलाता हूँ,
मिरे देश में दुश्मन को भी भूखा नहीं रखते।
विनोद विद्रोही

©Vinodvidrohi #WorldAsteroidDay
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Vinodvidrohi

कलम की स्वायत्तता पे कलमकार मौन है।
सत्ता बल के सम्मुख हर अधिकार मौन है।।
अभिव्यक्ति के पुरोधा सारे बगले झांक रहे,
देखो एक-एक चेहरा किस प्रकार मौन है।।
विनोद विद्रोही

©Vinodvidrohi #Freedom #poem #Poetry 

#Mic
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Vinodvidrohi

छोड़ गया वो शख़्स जिसको नज़र में रखा।
खबरों की तलाश ने हमें भी ख़बर में रखा।
चाह कर भी पांव कभी घर पर टिके नहीं।
जुनून-ए-कविताई ने ताउम्र सफ़र में रखा।
विनोद विद्रोही

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Vinodvidrohi

दलित-स्वर्ण, हिंदू-मुस्लमान करते रहना।
धर्म-निरपेक्षता का अपमान करते रहना।
ज़ख्म भरने मत देना कभी माँ भारती के।
दामन को इसके लहू-लुहान करते रहना।
विनोद विद्रोही

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Vinodvidrohi

चिंतित हो उठता हूं इस बेतुकी परिपाटी पर ,  
कब तक देश चलेगा आरक्षण की बैसाखी पर।
जितनी प्रतिभाएँ  खाक हुई हैं इस सुविधा की बाती पर,
उतने ज़ख्म दिये हैं तुमने भारत माँ की छाती पर।

आरक्षण के ये पासे फेंके जाते हैं दिल्ली के दरबारों से,
एक धोखा सा लगते हैं ये समानता के अधिकारों से।
कब तक बाँटोगे आरक्षण तुम जाति के बाज़ारों में,
अरे देना ही है तो दे दो बस इसे आर्थिक आधारों में।

भूलकर संविधान की कसमों को ऐसे तुम ऐंठे हो,
जिस डाली को कब का कट जाना था, 
उसपर झूला डाले बैठे हो।
आरक्षण के बल पे भले कोई आज अर्जुन बन जायेगा,
लेकिन याद रहे कभी एकलव्य से श्रेष्ठ न कहलाएगा।
विनोद विद्रोही
नागपुर

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Vinodvidrohi

घनाक्षरी छंद:
बांध दिया बर्फ पर जख्मों से लहू टपका।
कभी मुड़ के न देखा कि किधर लगता।
फांसी का फंदा जब चूमने को खड़े हुए।
तब भी वंदे मातरम् का ही स्वर लगता।
याद करो पन्ना धाय देशप्रेम है सिखाय।
कि जिगर कटवाने में जिगर लगता।
सोचो क्या होता और कहाँ आज होते हम।
हैं भगत जो कह देते कि डर लगता।
विनोद विद्रोही

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Vinodvidrohi

दिल में अगर तेरे, देव नहीं बसे हों तो,
तो मुख से भी मंत्रों का, जाप नहीं करते।
कुर्सी की खातिर तुम, देश तक बेच डालो,
इतने भी बड़े-बड़े, पाप नहीं करते।
वोट हैं तुमको मिले, मिली जीत भी तुमको,
तो काम एक ही काहे, आप नहीं करते।
सचमुच किसानों के, गर तुम हितैषी हो,
पार्टी फंड से कर्ज क्यूँ, माफ नहीं करते।
विनोद विद्रोही दिल में अगर तेरे, देव नहीं बसे हों तो,
तो मुख से भी मंत्रों का, जाप नहीं करते।
कुर्सी की खातिर तुम, देश तक बेच डालो,
इतने भी बड़े-बड़े, पाप नहीं करते।
वोट हैं तुमको मिले, मिली जीत भी तुमको,
तो काम एक ही काहे, आप नहीं करते।
सचमुच किसानों के, गर तुम हितैषी हो,
पार्टी फंड से कर्ज क्यूँ, माफ नहीं करते।

दिल में अगर तेरे, देव नहीं बसे हों तो, तो मुख से भी मंत्रों का, जाप नहीं करते। कुर्सी की खातिर तुम, देश तक बेच डालो, इतने भी बड़े-बड़े, पाप नहीं करते। वोट हैं तुमको मिले, मिली जीत भी तुमको, तो काम एक ही काहे, आप नहीं करते। सचमुच किसानों के, गर तुम हितैषी हो, पार्टी फंड से कर्ज क्यूँ, माफ नहीं करते।

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Vinodvidrohi

झुके नहीं कभी किसी सितम के आगे।
रहे अडिग सदा बारूदों-बम के आगे।
नाक रगड़कर झुक गया पाकिस्तान।
टिक न सका सेना के पराक्रम के आगे।
विनोद विद्रोही #vijaydiwas
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Vinodvidrohi

1857 के विद्रोह में सभी रियासतें साथ देतीं तो हम करीब एक सदी पहले आज़ाद हो जाते।
विनोद विद्रोही
नोट: उपरोक्त टिप्पणी का संदर्भ तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजों से नहीं है।

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Vinodvidrohi

 सोच नेताओं की।

सोच नेताओं की।

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