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anuragsaxena4426
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anurag saxena

नौसिखिया लेख़क और जागरूक पाठक

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anurag saxena

हम दोनों तट पर चलते हुए
रेत पर निशाँ बनाते हैं
दो मेरे निशाँ, दो उसके निशाँ
पीछे मुड़कर देखते है तो
लहरों ने मिटा दिए हैं
मेरे निशाँऔर उसके निशाँ
मंज़िल की  हमें कोई ख़्वाहिश नही हैं
बस सफ़र में हाथों को थामे
हम दोनों बना रहे हैं
मैं अपने निशाँ ,वो अपने निशाँ
उम्र के आख़िरी पड़ाव पर
हम दोनों एक हो गए हैं
अब रेत पर केवल नज़र आते हैं
हम दोनों के कदमों के केवल एक निशाँ

                          -------------------अनुराग h

h

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anurag saxena

तुम घूँघट में हम से 

मिलने आया न करो

आधा अधूरा चांद 

हमे अच्छा नही लगता।


            ---------अनुराग घूँघट

घूँघट

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anurag saxena

तुम अपनी आंखों में,काजल लगाकर मिला करो

जब निगाहें हमारी टकरायें,तो लक्ष्मण रेखा दिख जाएं।


                                             ----------अनुराग काजल

काजल

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anurag saxena

तुम अपनी आंखों में

काजल लगाकर मिला करो

जब निगाहें हमारी टकरायें

तो लक्ष्मण रेखा दिख जाएं।


          ----------अनुराग काजल

काजल

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anurag saxena

कभी नज़र का चश्मा लगाया उसने

कभी नज़र का चश्मा हटाया उसने

इस तरह वो पूरे सफ़र में

हम से नज़र चुराती रही।


           -----अनुराग चश्मा

चश्मा

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anurag saxena

उसे पसंद नही है 

कि कोई उसे पसंद करे

वो किसी की पसंद बनकर

रहना नही चाहती

वो चाहती है रहना 

तो बस अपनी पसंद से

हमे भी उसकी यही बात पसंद है।


             ------------अनुराग उसे पसंद

उसे पसंद

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anurag saxena

वो अकेले घर में 

गुज़र बशर करती है

वो अपने दर्द का

आईने से ज़िक्र करती है।


           -----------अनुराग वो अकेली

वो अकेली

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anurag saxena

वो आकर गले ऐसे लगती है

जैसे सर्द मौसम में शॉल ओढ़ा दी किसी ने।


                 --------अनुराग शॉल

शॉल

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anurag saxena

आँसुओ को तकिये के सिरहाने

रख कर सोना

हम जो आएंगे ख्वाबों में

बटोरकर ले जाएँगे 


         -------------अनुराग आँसुओ को-----!!!!

आँसुओ को-----!!!!

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anurag saxena

मैं दरख़्त की पत्ती सा

तुम पँछी के पंखों सी

जो एक बार फड़फड़ा जाओ

तो डाली से मैं झड़ जाऊँ।

मैं प्यासा चातक पक्षी सा

तुम बारिश की फुआर सी

जो एक बार बरस जाओ

तो मैं आजीवन तर जाऊँ।

मैं घास के तिनकों सा

तुम ठंड के कोहरे सी

जो एक बार गिर जाओ

तो मैं पाला सा जम जाऊँ।


               --------------अनुराग मैं दरख़्त की पत्ती सा----!

मैं दरख़्त की पत्ती सा----!

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