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rajeshkumar9001
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Rajesh Kumar

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Rajesh Kumar

White तुम्हीं से है 
•••••••••••••••••••
जीवन का सार तुम्हीं से है।
सांसों का प्यार तुम्हीं से है।
तूझमें  है  मेरी प्राण  छिपी,
और सब श्रृंगार तुम्हीं से है।

जीवन का  लक्ष्य तुम्हीं से है।
और अंतिम सत्य तुम्हीं से है।
तूझमें  सांसों  की डोर प्रिये!
और ये व्यक्तिगत तुम्हीं से है।

गज़लें और गीत तुम्हीं से है।
मन का  संगीत  तुम्हीं से है।
तूझमें हृदय की आस जगी,
व हृदय की प्रीत तुम्हीं से है।

ये हार और जीत तुम्हीं से है।
वर्तमान, अतीत  तुम्हीं से है।
तूझमें है मेरी आराध्य छिपी,
ये सारा अस्तित्व तुम्हीं से है।
••••••••••••••••••••
---राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-23/12/2024

©Rajesh Kumar #love_shayari
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Rajesh Kumar

मेरे इश्क़ की  सज़ा ही कुछ और था।
दिल टूटने का मज़ा ही कुछ और था।

 पहली बार इश्क़ का नतीजा आखिरी,
मुझे रुलाने की रज़ा ही कुछ और था।

रात जुगुनूओं के साये में गुजरता रहा,
 रातें हसीन थीं फ़जा ही कुछ और था।

---राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-22/12/2024

©Rajesh Kumar #leafbook
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Rajesh Kumar

... ... ... ...चुप हैं 
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गली मोहल्ले,चौबारें चुप हैं।
मौसम,फिज़ां, बहारें चुप हैं।

किस-किस की बात करूं मैं,
संसद  की ये  दीवारें चुप हैं।

शोर  बहुत  भीतर उमड़ा है,
मंदिर चुप हैं, मजारें चुप हैं।

जनसैलाबों की जुनूं ये देखो,
मरे हुए सभी  विचारें चुप हैं।

"जय भीम" के शंखनाद पर,
शोलों के सब अंगारें चुप हैं।

नीले अम्बर पर नीला झंडा,
उस पर  ये मझधारें चुप हैं।

क़लम दहाड़ेगी जब भी वो,
अब पुस्तैनी तलवारें चुप हैं।

टूटी लहरें अब क्या बोलेंगी?
सागर चुप हैं,किनारें चुप हैं।

बारूदों की गूंज सुने कौन?
सरहद की  हथियारें चुप हैं।
××××××××××××××××××
-----राजेश कुमार 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-22/12/2024

©Rajesh Kumar #leafbook
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Rajesh Kumar

Unsplash ....वो सुलगते अंगार देखता हूं 
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जहाॅं तक ये सरजमीं वहां तक आसार देखता हूं।
दिल में अदब ओ लिहाज़ और गुबार देखता हूं।

चंद लफ़्ज़ों में तुम्हारी शुक्रिया अदा कैसे करें?
बदलेगी तस्वीर भारत की वो क़लम की धार देखता हूं।

तू मजलूमों की आवाज़ और तू गरीबों का मसीहा है,
तूझमें अपनी दुनिया और ये सारा संसार देखता हूं।

मजाल किसकी है जो तूफानों से लड़ने की ज़हमत ले,
तेरे नायाब हर्फ़ों में वो सुलगते अंगार देखता हूं।

वो कुर्बानियां औलादों की उसे भूलेंगे तो कैसे हम,
फर्श से अर्श पर ला दे तूझमें वो रफ्तार देखता हूं।

बड़ा बेग़ैरत है वो तेरी अहमियत को वो क्या जाने?
बिलखतीं आंखों में तेरे आने का इंतजार देखता हूं।

वक्त बदला तो मिजाज़ और अंदाज़ भी बदलेगा,
कारवां लेके चले जो वो तूझमें आधार देखता हूं।

तेरे तजर्बे से ये महकमा, ये सारा जहां बदलेगा,
बस इसी उम्मीद पे कायम हूं तूझे बार बार देखता हूं।

वो सलीके से झूठ बोलता है और ये सच से कोसों दूर,
अफसानों का ही उसमें ये सारा बाजार देखता हूं।

बिके हुए मीडिया,अख़बार उसे बेनकाब कैसे करें?
लूटा है जो भारत को वो झूठा पहरेदार देखता हूं।
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---राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-21/12/2024

©Rajesh Kumar #camping
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Rajesh Kumar

White ... ऐसे न थे कभी 
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किरदार तेरे शहर के ऐसे न थे कभी।
फूल भी गुलज़ार  के ऐसे न थे कभी।

मसली हुईं कलियों में कांटे भी बो दिए,
अंदाज़ इस  जनाब के ऐसे न थे कभी।

माना कि तेरा  दामन दाग़दार बहुत है,
छींटें तुम्हारे आंचल पे ऐसे न थे कभी।

खो गई इंसानियत सियासत के भीड़ में,
बोली किसी  खुद्दार के ऐसे न थे कभी।

महंगी हुआ बाजार,पैसों का मोल क्या?
भाव किसी  बाजार के ऐसे न थे कभी।

मुद्दों से हट कर बातें बनाए गये हैं रोज़,
मुद्दे किसी अखबार के ऐसे न थे कभी।

मांगे हैं हक़ उसने तो लाठियां बरस गईं,
तेवर किसी सरकार के ऐसे न थे कभी।

दबदबा हुक्मरान की गरीबों को कौन सुने?
कानून  लचकदार कोई ऐसे न थे कभी।

उजाड़ीं गईं बस्तियां कई मंदिर के नाम पे,
मुंसिफ किसी सरकार के ऐसे न थे कभी।
×××××××××××××××××××××××××××
---राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-20/12/2024

©Rajesh Kumar #love_shayari
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Rajesh Kumar

Unsplash तुम्हें क्या पता है ओहदा मेरे मसीहा का
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तुम्हें क्या पता है ओहदा मेरे मसीहा का?
ये वो शख़्स है जो तेरे नस्लों पे भारी पड़ेगा।

वही सजदा,वही इबादत वही मेरा सब कुछ है,
ये मेरा मज़हब भी है जो सब पे भारी पड़ेगा।

कुरेदेगो राख़ तो चिंगारियां हाथ आएंगी तुम्हें,
ये वो शोला है जो हर आग पर भारी पड़ेगा।

तू जमीं पे होकर आसमां को इस क़दर ना आंक,
उसके हर अल्फाज़ तेरे शोहदों पे भारी पड़ेगा।

तू कहता है सियासत में उनका नाम लिया जाता है,
ये वो नाम है जो तेरे फरिश्तों पे भारी पड़ेगा।

बुझी है राख़ पर उन चिरागों को हवा ना दो,
ये वो जज्बा है जो हर मुल्कों पे भारी पड़ेगा।
""""""""""""''''''""""'''"'"""""""'''""""''""""
-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-20/12/2024

©Rajesh Kumar #library
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Rajesh Kumar

जिंदगी यूं ही गुज़रती रही 
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गमज़दा जिंदगी में कोई खंजर भी रख गया होगा।
लहरों को ढोते ढोते समंदर भी थक गया होगा।

हजारों ख्वाब समेटी होगी नींद अपनी परछाईं में,
सुबह होते होते कलंदर भी बहक गया होगा।

आसमां हथेली पे रख के सितारों से गुफ्तगू की है,
मगर सूरज को ढोते ढोते हथेली भी जल गया होगा।

चांद अपने गुरूर में क्यों बिखरता रहा उजालों में?
तूफानों से लड़ते-लड़ते बवंडर भी थक गया होगा।

जिंदगी यूं ही गुज़रती रही मौत के आशियाने में,
सांसों को ढोते ढोते ये जिस्म भी थक गया होगा।
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-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-20/12/2024

©Rajesh Kumar #leafbook
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Rajesh Kumar

हुई क़लम आज़ यह भारी 
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कैसे लिख दूं व्यथा तुम्हारी?
  हुई क़लम  आज़ यह भारी।
    कैसे लिख दूं ये बहते आंसू?
      स्याही सूखी है पड़ी बेचारी।

सजल- नयन भारी लगती है।
  जाने कैसी ये यारी लगती है?
    सिसक सिसक ममता ये रोए,
      संकट में है अब राज दुलारी।
         कैसे लिख दूं....

बहुत निराले खेल मज़हब के।
  धर्म,आस्था बड़े ही गज़ब के।
    रक्त रंजित है ये मैला आंचल,
       धर्म  चले अब  लिए  कटारी।
‌         कैसे लिख दूं....

छोड़ बाबुल घर चली बेटियां।
  अक्सर दहेज में जलीं बेटियां।
    पीर हृदय की ये समझे कौन?
      जिंदा ही नोची जाती है नारी।
        कैसे लिख दूं....

सोच सोच के यह मन रोता है।
  बिन आंसू यह जीवन रोता है।
‌    कैसे ये पूजी  जातीं हैं देवियां,
      कोठे पर बिकती है अब नारी।
        कैसे लिख दूं....

देश, दिल्ली, हाथरस ना भूला।
  असम,मेरठ व बंगाल ना भूला।
     करूण,वेदना कैसे लिख दूं मैं?
‌       कैसे लिख दूं मैं महिमा न्यारी?
          कैसे लिख दूं....
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-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-19/12/2024

©Rajesh Kumar #leafbook
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Rajesh Kumar

मैंने जिंदगी तबाह की है 
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नाम जब भी याद आता है पैमाना बदल जाता है।
कभी हम बदलते हैं कभी जमाना बदल जाता है।

अधूरे लफ़्ज़ों में मोहब्बत को बयां कैसे करें हम?
कभी वो बदलती है कभी दीवाना बदल जाता है।

ज़हर को पीके हमनें जीने का हुनर सीखा तुमसे,
शराब बदले ना बदले पर मैखाना बदल जाता है।

वक्त बदला,हालात बदले और सलीके भी बदले,
सरगम कभी न बदला पर तराना बदल जाता है।

जिंदगी दो दिन की है, चाहे तेरी हो चाहे मेरी हो,
सांसें जब भी बदले तो  ठीकाना बदल जाता है।

तेरी गली में फ़क़ीरों का हुजरा हो न हो फिर भी,
मिलोगे जब भी तुम आना जाना बदल जाता है। 

मुकद्दर तेरी गुज़ारिश में मैंने जिंदगी तबाह की है,
जिंदगी ग़र बदले तो आशियाना  बदल जाता है।
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---राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-18/12/2024

©Rajesh Kumar #leafbook
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Rajesh Kumar

White समझ में कुछ ना आए मुझको 
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समझ में कुछ ना आए मुझको 
 कि कैसा यह जीवन लगता है?
  बोझिल  हृदय यह वेदना ढोता,
   और विचलित ये मन लगता है।

   घुटती सांसें,धड़कन यह आतुर,
    और पोर-पोर में मौत समायी।
     उपवन निर्जन और बंजर घाटी,
       देख मंज़र ये आंखें भर आयीं।

बैठा हूं अकेला,मौन एकांत में,
  यह गंध हीन उपवन लगता है।
    समझ में कुछ ना आए मुझको,
  ‌‌    कि कैसा यह जीवन लगता है।

    पल पल लहरें हो गई आनंदित,
      लगता सागर पी गया मधुशाला।
       जल-थल की यह राज तरंगिणी,
    ‌     हुआ विभोर ये पवन  मतवाला।

पूछे यक्ष प्रश्न अंतर्मन ये कैसा?
  सूना घर और आंगन लगता है।
 ‌‌   समझ में कुछ ना आए मुझको,
      कि कैसा यह जीवन लगता है?

     व्यथित विचारें नित्य राह निहारें,
       भाग दौड़ में क्यों थका आदमी?
         कहां ठौर है इस चंचल चित्त का?
‌          धन दौलत पे क्यों बिका आदमी?

कहां दिखे निज सूरत अपनी ये?
  टूटा फूटा सा हर दर्पण लगता है।
   समझ में  कुछ ना  आए मुझको,
     कि कैसा यह  जीवन  लगता है?

    चंचल मन  की प्यास बुझी कब?
     और कब हृदय में बजी शहनाई?
      कहां प्रेयसी यह सजी दुल्हन सी?
        कहां रोम-रोम मांगती प्रेम दुहाई?

मखमली बिस्तर चुभते कांटों सा,
 व्याकुल सारा तन मन लगता है।
   समझ में  कुछ ना आए मुझको,
     कि कैसा  यह जीवन लगता है?

    गयी नींद  और सब सपने टूटे,
      रात चांदनी बनी गई है काली।
       क्रोधित हुए निष्ठुर यह पतझड़,
        सूखी सूखी हर फूल की डाली।

अंग अंग में  प्राण गदराए अब,
  हर डाली अब चन्दन लगता है।
‌   समझ में कुछ ना आए मुझको,
      कि कैसा यह जीवन लगता है।
*****************************
-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-18/12/2024

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