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devarshi

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devarshi

एक मजदूर शाहजहांपुर के एक गाँव मे अपनी पत्नी के साथ रहता था, घर में उसका एक 2 साल का बेटा और 5 साल की बेटी भी हैं, वो रोजगार की तलाश में वह रोज अपने गाँव से शहर की ओर आता था ,वह दिन भर मेहनत-मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट पालता था, इस बीच अचानक कोरोना के बढ़ते  ख़तरे को देखते हुए सरकार लॉक डाउन लगाने का फैसला करती हैं और उस मजदूर का काम बंद हो जाता हैं, कुछ दिनों तक  उसके पास जो भी  जमापूंजी होती हैं उससे ख़र्चा चल गया लेकिन अब दो दिन से वो और उसकी पत्नी एक बार ही खाना खाते हैं क्योंकि बच्चे तो छोटे हैं और उन्हें कुछ मालूम ही नहीं हैं कि क्या हो रहा है, वो मजदूर आज सुबह घर से फ़िर निकला कि शायद कुछ काम मिल जाये लेकिन कुछ न मिला, अगले दिन फिर निकला लेकिन आज भी कोई काम नही मिला , तीसरे दिन फिर निकला लेकिन आज उसे पुलिस वाले ने रोक लिया और उसकी बहुत बुरी तरह से पिटाई भी कर दी और दोवारा घर से न निकलने की हिदायत देकर जाने दिया। जब वो अपने घर पहुंचा तो उसका ये हाल पत्नी बहुत घबरा गई ,शाम को पत्नी ने गर्म पानी से उसके जख्मों की सिकाई कर दी और उसदिन वो दोनों बिना कुछ खाये ही सो गए । 
अगले दिन अचानक उसकी पत्नी के मायके से खबर आती हैं कि पत्नी की माँ की तवियत बहुत ही ख़राब हैं, ये सुनकर वो अपनी पत्नी से कहता है कि वो दोनों बच्चों को लेकर माँ के घर चली जाए, मैं कुछ पैसे उधार ले लूँगा, पर गाँव मे लगभग सबकी हालत उसकी तरह ही थीं लेकिन उसने 1000 रुपये का बंदोबस्त किसी तरह कर लिया, लॉक डाउन था तो  उसे कोई भी सवारी नहीं मिली जिससेवो अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ पाता, अगली सुबह वो किसी तरह से साइकिल से अपने परिवार को बस स्टैंड छोड़ने गया कि शायद कोई बस मिल जाये लेकिन कोई भी बस न मिली वो घर लौट आया लेकिन फ़िर अचानक खबर मिली कि पत्नी की माँ की तबीयत बहुत बिगड़ रही हैं और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है, मरने से पहले वो अपनी बेटी और नाती को देखना चाहती हैं, यह सुनकर उसकी पत्नी बहुत रोने लगती हैं ,पत्नी का इस तरह से रोना देखकर वो मजदूर साइकिल से शाहजहांपुर से 50 km दूर अपनी ससुराल बीसलपुर जाने का फैसला करता है , वो अपनी पत्नी से कहता हैं कि चलो तैयार हो जाओ हम साइकिल से चलेंगे , अभी 2 बजा हैं अगर अभी निकल लिए तो रात तक बीसलपुर पहुंच जाएंगे ।
पत्नी जल्दी से कुछ खाना और पानी रख लेती हैं और वो मजदूर अपने परिवार के साथ साइकिल से निकल पड़ता हैं, एक-दो घंटे बाद वो थककर सड़क किनारे पेड़ों की छाव में सुस्ताने के लिए बैठ जाता हैं , वो आराम कर ही रहें होते हैं कि अचानक कुछ लोग हथियार लेकर उन्हें घेर लेते हैं और उससे पैसे माँगने लगतें हैं  पति के पास मात्र 635 रुपये निकलते है उन लुटेरो में से एक उस मजदूर को पीटने का प्रयास करता है तो पत्नी उसके पैरों पर गिर जाती हैं और रहम की भीख मांगते हुए कहती हैं कि जो उधार मांग के लाये थे वो सब इतना ही हैं अब कुछ भी नहीं है मेरी माँ मर रही हैं प्लीज हमें जाने दो , इतना सुनते ही उन लुटेरों में से एक व्यक्ति उस मजदूर के पास आता हैं और पूरी बात पता करने का प्रयास करता हैं, उस मजदूर की पत्नी रोते बिलखते पूरी बात उसको बताती हैं तो वो व्यक्ति शर्म से अपनी आँखें नीचे झुका लेता हैं और उस मजदूर से माफ़ी मांगते हुए उसके पूरे रुपये वापस करते हुए कहता है कि इस लॉकडाउन की मजबूरी में उसे भी लुटेरा बना दिया,अब आज के बाद वो कोई भी लूट नहीं करेगा , वो मजदूर फ़िर से उठा और अपने ससुराल की तरफ़ चल देता हैं ।
रात लगभग 8 बजे तक वो अपनी ससुराल पहुंच जाता हैं, जैसे ही वो मजदूर अपनी ससुराल पहुँचा उसकी पत्नी अपने बच्चों के साथ तुरंत ही अपने माँ के पास दौड़ी दौड़ी पहुँची, अपनी बेटी और नाती-नातिन को देखकर उसकी मां बहुत ख़ुश हुई और अगले ही पल उसने देह त्याग दी,ऐसा लग रहा था कि जैसे उनकी माँ केवल उसको देखने के लिए ही अभी तक जिंदा थीं, अपनी सासुमाँ की अंत्येष्टि करके वो मजदूर घर लौटा ही था कि उसकी पत्नी की तबियत अचानक से खराब होने लगीं, उसकी पत्नी को अब थोड़ा बुखार हो रहा था, वो तुरंत अपनी पत्नी को सरकारी अस्पताल लेकर गया, डॉ ने बताया कि सही से खाना न खाने की वजह से उसकी ये हालत हुई, बहुत कमजोरी हैं समय लगेगा, कुछ दवाई अस्पताल से दे दी और एक दो दवा बाहर से लेने को बोल दिया, उस मजदूर पर बिल्कुल भी पैसे नहीं थे, लॉकडाउन अभी भी चल ही रहा था, अगले दिन वो मजदूर फ़िर से तैयार था पुलिस के डंडे खाने के लिए क्योंकि आज उसे कोई काम करके रुपये चाहिए ही थे, बच्चों को खाना खिलाने के लिए और अपनी पत्नी की दवाई के लिए। 
अभी वो गाँव से बाहर निकला ही था कि आज बड़े साहब ने स्वयं रोक दिया, और कहने लगे कि तुम लोगों ने कोरोना को मज़ाक समझ लिया है जो आ जाते हों बार बार, लेकिन आज उस मजदूर ने भी कहा कि साहब, मरना तो हमें ही हैं चाहे कोरोना मार दे या भूख।

©देवार्षि अन्जान मुसाफिर #Flower
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devarshi

मेरे आदर्श राहत इंदौरी साहब को बहुत ही नम आंखों से श्रद्धांजलि

वो सितारा जो आज चला गया आसमा में, अब उसको कौन बुलायेंगा,
राहत इंदौरी तो केवल एक ही था, अब उनके अंदाज में शायरी कौन सुनायेगा,
लगता है आज ईश्वर या ख़ुदा भी धरती पर कोरोना देखकर परेशान हो गये हैं,
नहीं पता था हमें कि वो भी शायरियों का दीवाना हैं और इतनी जल्दी राहत को अपने साथ ले जाएगा। मेरे आदर्श राहत इंदौरी साहब को बहुत ही नम आंखों से श्रद्धांजलि

#RIPRahatIndori

मेरे आदर्श राहत इंदौरी साहब को बहुत ही नम आंखों से श्रद्धांजलि #RIPRahatIndori #शायरी

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devarshi

दादा को जन्मदिन पर बहुत बहुत शुभकामनाएं,
आप जियों हज़ारों साल, साल के दिन हो बेहिसाब।

बाटू दादा जो हैं मेरे भी पिता समान,
ख़ुद ही करते हैं आज भी अपना सारा काम,
उम्र तो होगी अब 70 साल की लेकिन,
लगतें हैं आज भी बिंदास और जवान,
वो अक्सर से पुराने गीत गुनगुनाते और सुनाते हैं,
स्वरलहरियां आज भी उनके गले मे विद्यमान हैं,
उनके आदर्श आज भी उनकी पहचान हैं
बाटू दादा आज भी हमारे ननिहाल की शान हैं। दादा को जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं, आपका आशीर्वाद हम पर सदैव बना रहे

दादा को जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं, आपका आशीर्वाद हम पर सदैव बना रहे

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devarshi

मैं लिखता रहता हूँ ज्यादातर दर्द की दास्तानें,
लोग उसे अक्सर मेरे अंदर का दर्द समझ लेते हैं,
कैसे बतलाऊँ सबको कि ये मेरी अपनी ही दुनियां हैं,
कवि हूँ सबकी आँखों से दर्द को महसूस कर लेते हैं। कविता

#DryTree

कविता #DryTree #अनुभव

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devarshi

निशांत हैं भतीजा मेरा पर दोस्त भी बन जाता हैं,
संस्कार दिये हैं दादा भाभी ने,आज भी निभाता हैं,
हमेशा मस्ती में रहता वो, लगता बिल्कुल मतवाला हैं,
छोटा है और प्यारा है वो सभी का राज दुलारा हैं,
पत्नी के रूप में मिली हैं श्रेहा उसे जो हमेशा ही साथ निभाये,
प्रशांत जैसा भाई और शैली जैसी भाभी उसकी ढाल कहलाये,
करता हूँ बस ये ही दुआ,वो जो चाहे उसे मिल ही जाये,
इस जन्मदिन के अवसर पर उसकी हर मुराद पूरी हो जाये। जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

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devarshi

एक विनती
आज रो रहा है पूरा विश्व,कर रहा हैं बस ये ही पुकार,
मत छीनो तुम अपना और जानवरों के जीवन का उपहार,
क्या कभी माँगा हैं कुछ तुमसे? केवल दिया ही तो है तुमको मैंने,
ये नदियां, ये झरने,ये पर्वत, ये हरियाली, छाया और आहार। 
एक चेतावनी
चलो जो किया तुमनें अब तक, बच्चा समझ कर माफ़ कर देगें,
और न समझे हो अब भी तुम, तो इंसानों तुम्हें जड़ से साफ़ कर देंगे।
मुझपर केवल इंसानों को ही हक़ नहीं हैं जानवरों का भी उतना ही हैं,
उनको जीवन को बचाने के लिए हम पूरा पूरा इंसाफ़ भी कर देगें। #WorldEnvironmentDay
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devarshi

अब सवाल पूंछ रही हैं दुनियां सारी, कि क्या होगा कुछ भी इंसाफ़,
चाहें हम कुछ भी इस पर कुछ भी सज़ा दे, पर भगवान न करेगा कभी माफ़,
कानून भी हैं सख्त हैं अपने देश में, पर कैसे सज़ा का होगा रास्ता साफ़,
जहां कीमत नहीं हो इंसान की, वहां बेजुबानों को कैसे मिलेगा इंसाफ़। इंसाफ़

इंसाफ़ #कविता

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devarshi

क्या फ़र्क पड़ता हैं कि वो फिल्मों का खलनायक हैं,
आज गरीबों के बुरे वक्त में केवल लगता वो ही नायक हैं,
अगर कुछ बड़े लोग मिलकर कर लेते ये नेक काम,
यूँ तो न होती गरीबों की मौतों सड़कों पर खुलेआम। असली नायक

असली नायक

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devarshi

साहब तुझें अमीर होने का एहसास हम ही तो दिलाते थे,
अब तुम अपना ये ठाठ बाठ किसको कैसे दिखलाओगे,
कंपनी हैं बड़ी तुम्हारी, मशीनें भी बहुत लाज़बाब हैं,
पर जब हम ही नहीं होंगे ,तो मशीनों को कैसे चलाओगे। मेरे बिन

मेरे बिन #कविता

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devarshi

शीर्षक- गाँव अभी दूर हैं

पैदल ही निकल पड़े थे हम ज़रा सी रुख़ी सूखी लेकर अपने गांव की ओर,
चलते चलते भूखे प्यासे कहाँ हैं पहुंचे, अब दिखाई ना देता कोई छोर,
कदम हैं लड़खड़ाने लगें, पड़ गए है छाले,कट पिट गये हैं अब हमारे ये पैर
ख़ुद ही भूखे पेट सिल रहे हैं पैरों को,आया कैसा ये भयंकर दौर। गांव अभी दूर हैं

गांव अभी दूर हैं #शायरी

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