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rohitvashishat2923
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Musafir ke ehsaas

My name is Rohit vashishat my instra I'd is #@its_rohit_1997 #@alfaaz__e__musaafir

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Musafir ke ehsaas

White अपनी खुशबू से ही हवाओ को वो महका देती हैं और पतझड़ के मौसम सावन  बरसा देती है,
यूं तो सब लिबाज़ो में उसे सुन्दर कोई नही है 
पर जब बदन पर हो काली साड़ी यौवन को आग लगा देती है।
यू तो वो है सयानी लड़की हर गम को सहकर ख़ुद को ही ढाल बना देती हैं,
एक तो उसके दिल में बैठी एक प्यारी मासूम बच्ची है 
जो छोटी बातों पर आंखों से अश्रु बहा देती हैं।
 मोटी गहरी आंखें उसकी साधारण सी एक अलग सी करामात कर देती हैं,
यूं तो पार किए तैर कर कई समंदर न जाने कैसे उसकी आंखे खुद में हमको डूबा देती हैं।
वाणी भी उसकी मानो आनंद शरद पूर्णिमा के चांद का देती हैं,
कानों से उतर कर हृदय पथगामिनी होकर रूह में प्रेम रास के दर्शन करवा देती हैं।
खोल कर जुल्फो को अपनी करवा कर हवाओ संग बालों को क्रीड़ा बिखरे  हुए मन मेरे को आत्मीक शांति में समेट देती हैं,
दो नागिन सी मुख पर जुल्फे लटकाकर अपने बंधे केशो से सम्मोहन की अनंत विद्याएं हम पर उड़ा देती है।
हंसकर वो बसंत ऋतुओं सम उजड़े उपवन से हृदय को जीने का तरीका बता देती हैं,
"मुसाफिर"माथे पर बिंदी और आंखों में कोटि खंजरों सम काजल से अनन्त अप्सराओं को भी इसी साधारण से श्रृंगार से घायल कर देती हैं।

©Musafir ke ehsaas
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Musafir ke ehsaas

Kese likhu main use bewafa apni shayario main.
Ja to yeh ho ki muje ilm na ho uski majboorio ka 
E ajnbee ja tum ne b wafa puri zidadt se nibhayi ho

©Musafir ke ehsaas #sadak #nojota #nojotahindi #nojotaquotes #Prem #hindopoetry #musafir #sawalaishq
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Musafir ke ehsaas

 Jab meri  ashtiya b bahe gi ganga  ki    dhara main
 E musaafir tab b Ganga ki god main tere hotho ke til par sab kurban hoga

©Musafir ke ehsaas
  #Kaarya #Prem #hindi_poetry #nojota #nojotahindi #nojotaquotes #musafir #nojotaap #Till #sawalaishq
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Musafir ke ehsaas

 इश्क मैंने किया है तुमसे एक तरफा ही सही अब तुम्हे ही  ना हुआ इश्क हमसे तो क्या हुआ।
 तुम्हें खुश देख कर मैं खिल जाता हूं गुलाब सा अब मुझे खुश देख कर तुम नहीं खिलती तो क्या हुआ।
तुम्हें देख उदास मैं भी उदास हो जाऊं और मेरे उदास होने से तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता तो क्या हुआ।
मुझे तेरे होने से मिलता है सुकून और तेरे लिए मेरा अस्तित्व ही नही तो क्या हुआ।
तेरी आंखों के नशे का खुमार चढ़ा है मुझे और तुझे इसकी खबर ही नहीं तो क्या हुआ।
तेरे रूठने से मानो मेरा खुदा रूठा हो और मेरे रूठने से तुझे कुछ हो ही ना तो क्या हुआ।
मेरी जिंदगी में प्यार के बसंत से तुम और तेरी जिंदगी में अनचाही गर्मी की ऋतु सा मैं तो क्या हुआ।
बढ़ जाती है मेरे दिल की धड़कने तेरी आवाज सुन कर और मेरी आवाज से तुम्हें कुछ एहसास ही नहीं होता  तो क्या हुआ। 
मेरी जिंदगी में होली के रंगों से तुम और तेरी जिंदगी में बेरंग सा मैं तो क्या हुआ।
मेरी जिंदगी की सुंदर कविता हो तुम और तेरी जिंदगी में अनचाही शायरी सा  हूं  मैं तो क्या हुआ।
तुम्हारी हर खता मेरे लिए इजहार ए मोहब्बत है और मेरी  इश्क की सब बातें तुम्हारे लिए खता है तो क्या हुआ।
मेरे लिए तुम्हारी खामोशी मौत से भी ज्यादा खौफनाक और तेरे लिए मेरी खामोशी कुछ नहीं तो क्या हुआ।
मेरे लिए तू प्यार का दीप हैं और तेरे लिए एक मुसाफ़िर सा इंसान हूं मैं तो क्या हुआ।

©Musafir ke ehsaas
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Musafir ke ehsaas

 बैठकर सामने शीशे के जब तुम सोलह सिंगार करती हो 
आंखों में भर्ती हो जब तुम कजरे की धार तुम मेरे दिल पर वार करती हो
जब खोल लेती हो तुम अपनी बंधी हुई जुल्फों को
तो खुली जुल्फों के आगोश में हमें तुम कैद करती हो।
जब भर्ती हो तुम अपने अधरों को लोहित अंगार से,
इंसानों की बात ही क्या तुम तो देवों का भी मन हरती हो।
लगा के माथे पर बिंदी जब तुम देखती हो आईना,
तब लगती हो ऐसे जैसे अपनी बिंदी से  कामदेव को भी अपने वश में करती हो।
फिर जब पहनती हो तुम साड़ी अलग-अलग रंग की,
तो ऐसा लगता है मानो  जैसे स्वर्ग की सब अप्सराएं  भी तुम्हारे सांवले से रंग  के आगे पानी भर्ती हो।

जब चलती हो तुम सब सोलह श्रृंगार करके पहन पैरों में पायल,
तब पायल की आवाज़ से लगता हैं जैसे किसी मुसाफिर से शायर की सब शायरियां बस तुमसे ही प्रेम करती हों।

©Musafir ke ehsaas
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Musafir ke ehsaas

 उसके खुले बाल और आंखों के काजल के हम कायल,
उसका सांवला सा रंग और मनमोहक अदाओं का सैलाब। 
उसके बिजलिया गिराते नयन  होठों के नीचे तिल और पाओ में पायल,
पहन कर साड़ी और करके एक तरफ को  केश  मचाती है मेरे दिल में बवाल।
ए मुसाफ़िर इंसानों की तो बात ही क्या करू वो तो अधरों के बाण से देवताओं को भी करती हैं घायल।

©Musafir ke ehsaas
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Musafir ke ehsaas

 जब पहली दफा उसके प्यार के नशे का खुमार हुआ।
तो हर जगह बस उसका ही दीदार हुआ।
जब देखा पहली बार उसे तो वही सबसे हसीन दिखी।
और जब देखा था पहली दफा उसकी आंखों में  तब आंखें उसकी मुझे शमशीर दिखी।
पहली दफा जब देखा उसे खेलते अपनी जुल्फों के संग।
मन को मिल गया विश्राम फिर छा गया हम पर उसके इश्क का रंग।
फिर उसके इश्क में अपना अस्तित्व उस पर कुर्बान कर बैठे।
दुनिया को किया नजरअंदाज बस एक उसे ही अपना खुदा मान बैठे।
 उसके होठों के नीचे जो तिल था उस पर हम अपना दिल हार आए।
जब पहने  देखा उस सावले से रंग की लडकी को साड़ी तब अपना अजनबी सा इश्क उस पर वार आए।

©Musafir ke ehsaas
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Musafir ke ehsaas

 बरसात का यह मौसम जब आ जाता है मुझे तेरे पास ले जाता है।

 रिमझिम बरसती काली घटाएं लगती है ऐसे मानो खोल ली हो  तुमने  भीगी हुई अपनी जुल्फें जैसे ,
फिर तेरी जुल्फों से खेलने की खातिर यह मौसम मुझे  तेरे ख्यालों में ले जाता है।
 कोसो दूर होकर भी   मुझे तेरे पास होने का एहसास दिलाता है।
कमबख्त यह बरसात का मौसम जब आता है मुझे तेरे पास ले जाता है।
जब गरजती है बिजलियां तो लगता है ऐसे खेल रहे हों तेरे गालों के संग कानों में पहने झुमके जैसे,
फिर जब बरसात का मौसम पानी की बूंदों के संग खेल कर अपना रंग दिखाता है।
 फिर खुशबू बनकर बरसात का पानी मुझे तेरे  प्यार का  एहसास करवाता है।
यह वैरी मेरा बरसात का मौसम जब आता है मुझे तेरे पास ले जाता है।
जब छनक छनक कर गिरती है बूंदे धरती पर ऐसे,
तब लगता है चल रही हो तुम पाओं में पहन पायल जैसे,
फिर बैठ अकेला कमरे में जब मैं रात को मौसम आत्मिक शांति का अहसास करवाता है।
रुक जाती है बरसात तब आसमान में चांद अपना दीदार करवाता है।
फिर चांद के ऊपर बना दाग है जो वह मुझे तेरे हसीन से सावले मुख पर होठों के पास वाले तिल की याद करवाता है।

सच मानो तब यह बरसात का मौसम इस मुसाफ़िर से शायर को बड़ा पसंद आता है।

©Musafir ke ehsaas
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Musafir ke ehsaas

करके दीदार तेरी तस्वीर के मन में आज यह विचार आया है
तेरी सुंदरता को अपने शब्दों से हसीन अलंकारों संग सुशोभित करके उसे वर्णन करने का सौभाग्य मेरी कलम ने पाया है।
यूं ही नहीं लिखा तेरी आंखों को सबसे नशीला,
तेरे नैनों में डूब कर मैंने खुद को किसी सुकून से भरे हुए नशे में मदहोश पाया हैं।
तेरी खुली जुल्फे लगती है मुझे कोई वशीकरण करने वाली विद्याएं,
जब बांधती हो तुम जुल्फें अपनी तो मैं खुद को तेरी उस बंधी हुई जुल्फों में मोहित हो बंधा हुआ पाया है ।
तेरे अधरों को लिखा है मैंने प्रेम रस से भरा समंदर कोई,
 तुमने दीदार करवाके अपने अधरों का मेरे मन में एक प्रेमायुक्त इस्मात भरी शांति  अनुभव करवाया हैं।
तेरे माथे पर सजी हुई बिंदी को यूं ही नहीं बवाल लिखा मैंने ,
अपनी सादगी से तुमने सौंदर्य की पराकाष्ठा को छूकर स्वर्ग की अप्सराओं को भी अपने आगे झुकाया है।
तेरे कानों के झुमको की तारीफ में यूं ही नहीं मैंने उसे काम मनहर्ता लिखा,
देखा है मैंने कैसे तुमने मंद मंद मुस्कुरा कर अनंत कोटि बसंत ऋतुओं को बहकाया है।
करने आया था दीदार तेरे चेहरे के पर यूं ही हुआ बेपर्दा चेहरा तेरा यह मुसाफिर सा शायर अपने होश गवा आया है।

©Musafir ke ehsaas
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Musafir ke ehsaas

रुक जाती है कलम मेरी करके दीदार तेरे चेहरे के
मुसाफिर मन कहता है  रुक कर देखूं तुझे थोड़ा और थोड़ा और।

©Musafir ke ehsaas
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