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anuragchoursiya5698
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Anurag Choursiya

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Anurag Choursiya

।।वैसे तो ......वो मान जाया करती है।। ।।वैसे तो....वो मान जाया करती हैं।। *।।वैसे तो ... वो मान जाया करती है।।* 

("वैसे तो" सिर्फ एक ऐहसास हैं जिसे *कवि अनुराग चौरसिया "रतलामी"* ने शब्दो मे बांधने की कोशिश की है।ये सिर्फ वही महसूस कर सकता जिसने कभी किसी से मोहब्बत की हो....)


वैसे तो मैं चाँद तारो को तोड़कर लाऊ ये चाहत नहीं है उसकी,
वो तो मेरे साथ बस पानीपुरी खाकर भी मान जाया करती हैं,

।।वैसे तो....वो मान जाया करती हैं।। *।।वैसे तो ... वो मान जाया करती है।।* ("वैसे तो" सिर्फ एक ऐहसास हैं जिसे *कवि अनुराग चौरसिया "रतलामी"* ने शब्दो मे बांधने की कोशिश की है।ये सिर्फ वही महसूस कर सकता जिसने कभी किसी से मोहब्बत की हो....) वैसे तो मैं चाँद तारो को तोड़कर लाऊ ये चाहत नहीं है उसकी, वो तो मेरे साथ बस पानीपुरी खाकर भी मान जाया करती हैं,

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Anurag Choursiya

।।बलात्कार पर मंथन::अनुराग चौरसिया।। *।।बलात्कार पर मंथन::अनुराग चौरसिया।।*  *।।बलात्कार पर मंथन::अनुराग चौरसिया।।* 
03-जुलाई-2018(10:16 PM)

(यह लेख आज सुबह सतना में एक बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना पढ़कर लिखा हैं। *मैं अनुराग चौरसिया* यही मंथन कर रहा हूँ कि ऐसी घटनाएं इतनी ज्यादा क्यों बढ़ गई हैं, जिसे आपके साथ साझा कर रहा हूँ।यह लेख पूर्णतः मेरी विचारधारा पर आधारित हैं)

विगत दिनों में सामूहिक बलात्कार की घटनाओं को देख कर मेरा मन बहुत दुखी हैं।सोच रहा हूँ कि ऐसा क्या होने लगा कि सामूहिक बलात्कार की घटनाएं इतनी बढ़ने लगी हैं

*।।बलात्कार पर मंथन::अनुराग चौरसिया।।* *।।बलात्कार पर मंथन::अनुराग चौरसिया।।* 03-जुलाई-2018(10:16 PM) (यह लेख आज सुबह सतना में एक बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना पढ़कर लिखा हैं। *मैं अनुराग चौरसिया* यही मंथन कर रहा हूँ कि ऐसी घटनाएं इतनी ज्यादा क्यों बढ़ गई हैं, जिसे आपके साथ साझा कर रहा हूँ।यह लेख पूर्णतः मेरी विचारधारा पर आधारित हैं) विगत दिनों में सामूहिक बलात्कार की घटनाओं को देख कर मेरा मन बहुत दुखी हैं।सोच रहा हूँ कि ऐसा क्या होने लगा कि सामूहिक बलात्कार की घटनाएं इतनी बढ़ने लगी हैं

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Anurag Choursiya

।।तुम बिन श्यामल साँझ।।     
तुम जो साथ होती हो तो जीना भी ख्वाहिश लगता है,
इस जीवन का सार बस अब तुममे ही दिखने लगता है,
तुमको पाना भी इस जन्म में एक रूहानी ख्वाब लगता हैं,
तुम जो रूठ जाती हो तो जीना  भी मरने सा लगता है,

तुम्हारे कंगन की खनक सन्नाटो में भी सुनाई देने लगती है,
तुम बिन तो अब ये सर्दियों की रातें भी रुसवाई लगती है,
हर लम्हों को याद कर अब मेरी सांसे रुकने लगती है
औस की हर बूंदों में परछाई तुम्हारी  दिखने लगती है,

तुम्हारी हिरणी सी आँखों में डूबा लिया खुदको हमने,
तुम्हारी यादों के झरने में अब तो गिरा लिया खुदको हमने,
अविरल बहने वाली उन लहरों से तोड़ लिए सब नाते हमने,
जिन्हें कभी साथ मिलकर नदियां किनारे छूआ था हमने,

आलम कैसा बदनसीबी का मैं जुदा जुदा खुदसे रहता हूँ,
ख्वाबो की बंदिशों में इन रातों में साथ तुम्हारे होता हूँ,
वृन्दावन की श्यामल साँझ में मैं तुम बिन अधूरा लगता हूँ,
प्रेम की इन गलियों में तुम राधा, मैं माधव सा लगता हूँ,
"स्वर्णिम"अनुराग चौरसिया








 तुम बिन श्यामल सांझ...

तुम बिन श्यामल सांझ...

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Anurag Choursiya

।।योग::प्रकृति का अनमोल उपहार।।
जीवन में एक संकल्प करें,हम सब मिलकर योग करे,
तन और मन को स्वस्थ करे,जीवन को अपने दीर्घायु करे,

गहरी सांसों को हम ग्रहण करे,नियमित अनुलोम विलोम करे,
कपाल भाति से तन निरोग करे,भस्त्रिका कर मस्तिष्क प्रबल करे,

सभी शक्तियों का आगाज करे,बेचैन मन को हम प्रफुल्लित करे,
तन में हम अपने पैदा स्फूर्ति करे,खिलते योवन का एक श्रृंगार करे,

ईश्वर के खजाने का उपयोग करे,हम अपने दिल दिमाग सक्रिय करे,
अपने जोड़ो को हम शतायु करे,आँखों की रौशनी को हम दिव्य करे,

सूर्योदय में उठ सूर्य प्रणाम करें,ताज़ी हवा को अपने नाम करे,
ठंडे जल से सुबह जल्द स्नान करें,वेद शास्त्रो का नियमित पाठ करे,

व्यर्थ बढ़े वजन को सब कम करे,तांत्रिका तंत्र को हम मजबूत करे,
तंदुरुस्ती से जीवन खुशहाल करे,चुस्ती फुर्ती से खुशियों का मान करे,

कवि अनुराग कहे सब योग करे,स्वस्थ जीवन को अपने नाम करे,
जीवन में हम  एक संकल्प करें,आओ हम सब मिलकर योग करे,
"स्वर्णिम"अनुराग चौरसिया
रतलाम मप्र
9039509403


 योग दिवस पर मेरी कविता....

योग दिवस पर मेरी कविता....

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Anurag Choursiya

❤दो गज से ज़रा ज़्यादा जगह देना कब्र में मुझे कि किसी की याद में करवट बदले बिना मुझे नींद नहीं आतीं.❤

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Anurag Choursiya

उलझनों में उलझे जीवन की हर सुलझन हैं मेरे पिता,
जीवन की महाभारत में मैं अर्जुन और कृष्ण हैं मेरे पिता, मेरे पिता...

मेरे पिता...

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Anurag Choursiya

  ।।पिता::संघर्षो की किताब।।
(पिता दिवस पर पिता के एहसासों को बताती कवि अनुराग चौरसिया की एक कविता....)

सूरज की तपिश में भी छाँव का एहसास हैं मेरे पिता,
मेरे सारे अनसुलझे सवालों का जवाब हैं मेरे पिता,

अंधियारे रास्तों में रौशनी की एक आस हैं मेरे पिता,
ना भूल पाने वाले अनकहे संघर्षों की कहानी हैं मेरे पिता,

।।पिता::संघर्षो की किताब।। (पिता दिवस पर पिता के एहसासों को बताती कवि अनुराग चौरसिया की एक कविता....) सूरज की तपिश में भी छाँव का एहसास हैं मेरे पिता, मेरे सारे अनसुलझे सवालों का जवाब हैं मेरे पिता, अंधियारे रास्तों में रौशनी की एक आस हैं मेरे पिता, ना भूल पाने वाले अनकहे संघर्षों की कहानी हैं मेरे पिता, #Papa


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