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mishkatabidi3429
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Mishkat Abidi

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Mishkat Abidi

जीवन स्वयं एक कारावास है
और संसार चक्र में
अपने कर्म और भाग्य की
चक्की पीसता
हर जीव सज़ा काट रहा है।
कुछ ने इसमें जीना सीख लिया है
कुछ सज़ा और क़ैद से
मुक्ति के लिए
कर रहे हैं सत्कर्म
ढूंढ रहे मुक्ति का धर्म 
कुछ भ्रमित है
संशित हैं
कुछ विचलित कुछ आश्वस्त
और काट रहे हैं
अपने अपने हिस्से की सज़ा।

#मिश्कात_आबिदी_प्रेरणा

©Mishkat Abidi #writing
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Mishkat Abidi

#Aspiring
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Mishkat Abidi

रोज़ रोज़ मरने की
और अपनी ही मौत पर
रोने की पीङा बड़ी दुष्कर है।
भावनाओं की हत्या
प्रेम का तिरस्कार
झेलते हुए
एहसासों के नर्म कंधों पर
इच्छाओं की लाश
ढोते हुए स्त्री 
थक जाती है
नहीं चाहिए उसे 
रोज़ मरने का अभिशाप,
नहीं चाहिए 
सम्पूर्णता के भ्रम में
अधूरी एकाकी
नारी का संघर्ष, 
मृत्यु बस एक बार चाहिए
खुद पर रोना
अब अच्छा नहीं लगता। 
पुरूष स्त्री का
पूरक नहीं होता, 
पूरक होता है
एक सम्पूर्ण मनुष्य, 
जिसके भ्रम में
स्त्री जीती है। 
रोज़ मरने का अभिशाप
रोज़ रोज़ मरने की
और अपनी ही मौत पर रोने की
पीड़ा बड़ी दुष्कर है। #blackandwhite
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Mishkat Abidi

तुमने मुझ से
आसमान से
तारे ✨ तोड़ लाने का
वादा कभी नहीं किया,
ना ही क़दमों में
फूल बिछाए...
ना ही मुहब्बतों के
खुशनुमां गीत 🎼 गाए
मेरी चुनर में किरणों के गोटे
जूड़े में गजरे नहीं टांके
तुम जानते हो
मेरे लिए ये सब
प्रेम के कितने
निरर्थक आयाम हैं
तुमने जब शब्दों में
पिरोया मुझे... 
लकीरों में उकेरा
मेरे सपनों का साकार रूप
तब मौन अभिव्यक्ति के
उस क्षण उगे मुझमें पंख
और मैं निर्बाध
इच्छाओं के व्यापक
गगन में विचरने लगी,
तुम्हारा कुछ भी सायास
न करना ही
सब कुछ कर देने जैसा है।
अच्छा किया जो तुम ने
आकाश से तारे ✨
तोड़ लाने का वादा
मुझ से कभी नहीं किया। #LOVE_ART
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Mishkat Abidi

मैं न होने कर भी
हर जगह होना चाहती हूं। 
विचारों के बीज...... 
मस्तिष्क की उर्वरक
धरती पर बोना चाहती हूं।
उसमें पुष्पित पल्लवित होती
अपनी कल्पना को
देखना चाहती हूं! 
शब्द बन तुम्हारे भीतर
उगना चाहती हूं
संवेदना का मधुर संगीत बन
सासों की सरगम
बनना चाहती हूं। 
झंकृत कर मन के तारों को
धड़कना चाहती हूं!
तुम ज़िन्दा हो.... 
तुम्हारी रगों मे
लहू की हरारत है
तुम्हारी आवाज़ में, 
हवाओं का रूख़
बदलने की ताक़त है।
ये एहसास देना चाहती हूं,
मैं न हो कर भी
हर जगह होना चाहती हूं। #nojoto2020
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Mishkat Abidi

#KargilVijayDiwas आज रात कुछ अजीब सी है
आज की रात मेरी आँखों में
तैरते वो तमाम चेहरे हैं, 
जिनकी आँखों में झिलमिलाता हुआ
मुस्कुराता हसीन भारत था,
जिसमें न भूख न गरीबी थी
नफ़रतों का कोई निशान न था, 
कोई शोषण से परेशान न था!

आज की रात मेरी आँखों में
खून का बहता हुआ दरिया है, 
बेवतन होती भीड़ उमड़ी है
बेकफ़न लाशों का वो टीला है, 
नफरतें बो गए फ़िरंगी जो
आज भी वो दिलों में ज़िंदा है!

आज की रात मेरी आंखों में
शहीदों के उदास चेहरे हैं 
सब के सब पूछ रहे हों जैसे
अपनी कुर्बानियों के बदले में
क्या यही देश हमने चाहा था,
लुट रही लाज रोज़ बेटी की
भूख अब भी सुलगती आतों में 
इक भटकती तलाश रोटी की, 
खून की प्यास बढ़ गयी इतनी
बेझिझक मारते हैं लोगों को, 
धर्म की बिक रही शराब बहुत
सब नशे में उसी के झूम रहे, 
अब तो संवेदना का रंग अलग
और रिश्तों का हुआ ढंग अलग, 
झूठ को झूठ कहने वाले को
ज़िंदगी से हटाया जाएगा, 
सारे साधन उसी को हासिल है
हां मे हां जो कोई मिलाएगा...! 
आज की रात मेरी आंखों
अनगिनत कारवां सा गुज़रा है
फिर नयी आस मुझको बोनी है।
उन शहीदों के स्वप्न जैसा ही
देश को मिल के फिर बनाना है
नफरतों के स्याह बादल को
मिल के इक साथ फिर हटाना है
है नमन देश के शहीदों को
ये शपथ आओ मिल के खाएं हम
अब नहीं होने देंगे बर्बादी 
आओ मिल कर मनाए आजादी।
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Mishkat Abidi

मेरी आंखों के
आशियाने में... 
फिर कोई ख़्वाब
आ बसे नहीं कहीं,
जिसकी टूटन
अज़ाब बन जाए,
है यही ख़ौफ़
मेरे दिल में कहीं, 
नींद आंखों से मेरी
ग़ायब है.... ।
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Mishkat Abidi

विचारों की असंख्य
रश्मियों के आलोक में, 
वैचारिक विद्रूपता और
संकीर्णता के विरुद्ध
जारी है मेरा संघर्ष!

जय पराजय के खेल से अलग
स्वार्थ की अर्गला में बांधे गए
मन मस्तिष्क के लिए
स्वस्थ चिन्तन का द्वार
खोलने को निरत्तर तत्पर..!

वातावरण की विषाक्तता में, 
बार बार स्वस्थ फलदायी मेरी 
कल्पना का वृक्ष कुम्हलाता है,

पर ऊर्जा का नूतन स्वरूप ले
नवकोपल नवकिसलय से
वह भर जाता है.......... ।

स्वस्थ फलों से आच्छादित हो
मन मे नूतन विश्वास जगाता है।
विचारों की असंख्य
रश्मियों के आलोक में'
वैचारिक विद्रूपता के विरुद्ध
मेरा संघर्ष फिर से
शुरू हो जाता है।
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Mishkat Abidi

तुमने अपनी
इच्छाओं के लिए
बेचे थे कुछ सपने
मैने विश्वास के
ढेर सारे सिक्के
तुम्हें सौंप कर खरीद लिए ,
तुमने धीरे धीरे
सारे सपने रौंद दिए।
विश्वास की कमर
तोड़ कर कर दिया बेबस। 
पगलाई बेलगाम
हवा सा उड़ने लगे, 
झकझोरने लगे 
जमें पेड़ों की जडें!
तुम्हारी गति को
बाधित करते
मकानों की नींव
तुम हिलाने लगे।
कितना डर गए तुम
धरती की छाती पर
गहरी पकड़ लिए
बेहिसाब फैलती घास से, 
नोचने लगे, मिटाने लगे
देख उन्हें खिसियाने लगे,
मुझे पता है...
तुम्हें अच्छी तरह
करना आता है व्यापार,
फिर सजाओगे बाजार
मिल जाएंगे खरीदार, 
दिमाग में सड़ी गली
सोच की खाद डाल कर
कुछ सपने बो डालोगे
फिर नफरत के हसिए से
अपनी महत्वाकांक्षाओं की
फसल काटोगे। #WorldEnvironmentDay
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Mishkat Abidi

कमरे का गहरा अंधेरा
मुझे डरा रहा था,
गहन कालिमा में
भयावह आकृतियां
बना रहा था।
विचारों की श्रृंखलाएं
उलझ गयी थीं,
सच की तपन से
उभर गए थे दर्द के छाले 
आंखों की बेबसी
बढ गयी थी
सांसे बेतरतीब थी
तभी हवा का
एक शीतल झोंका
खिड़की को खोल कर आया
प्यार से मेरे चेहरे को सहलाया
उसके साथ मुस्कुराता उजाला
खिड़की से आकर
फैल गया कमरे के चारों ओर
भयावह आकृतियां
टुकड़े भर उजाले से डर कर
गुम हो गयीं
अंधेरे की ऐठन
ढीली पड़ गयी
उजाले ने आंखों के दीपक में
भर दी ढेर सारी रौशनी
भीतर का डर
मुझसे डर कर गुम हो गया,
शीतल हवा का मधुर स्पर्श
मेरे जलते रास्ते पर चले
विचारों के छालों को
चूमता जा रहा था
और उजाला
मरहम लगा रहा था।
अब उस कमरे में मुझे
सब कुछ साफ़
नजर आ रहा था। #Door
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