#जब मिलूँगी.....
तुमसे मिलने पर
संभवतः न बता पाऊँ
दिवस और तिथियों के
व्यतीत होने की असमान गति!
पर फिर भी यह तय है
कि लंबे दिनों का #yqbaba#yqdidi#yqpowrimo
Sunita D Prasad
#यदि दुःख कहने भर के होते.....
कुछ समय से
प्रकृति के थोड़ा और करीब आई हूँ
अब दक्षिणायन होते सूर्य को
अपनी काया पर महसूस कर पाती हूँ
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Sunita D Prasad
#कुछ देर और......
अच्छा होता
यदि समय कुछ देर के लिए अगत हुआ होता!
तो मैं कुछ और देर तुम्हारे पास ठहर पाती
कुछ श्वेत पुष्प और झर पाए होते #yqbaba#yqdidi#yqpowrimo
Sunita D Prasad
#चाहते हुए भी.......
चाहते हुए भी मैं नहीं समझा पाई तुम्हें
मोह और प्रेम के मध्य का अंतर
या फिर तुम मानना ही नहीं चाहते
कि लालसाओं की ललक उनके अप्राप्य तक ही रही उत्कट
#yqbaba#yqdidi#yqpowrimo
Sunita D Prasad
हे देव!
यह तय है
कि इस बार प्रकाशपर्व पर
तुम्हारे स्वागत में नहीं लाऊँगी
चढ़ाने के लिए जल
न ही पुष्पों से सुसज्जित होगी कोई थाल #yqbaba#yqdidi#yqpowrimo
Sunita D Prasad
#सामर्थ्य.....
मैं उतना नहीं लिख पाई हूँ
जितना मेरे भीतर अनकहा छूट गया है
तो क्या जितना लिख पाई हूँ
वह मेरा सामर्थ्य नहीं असामर्थ्य है
बहुत कुछ न कह पाने का? #yqbaba#yqdidi#yqpowrimo
Sunita D Prasad
#काँधे से अधरों तक.....
समग्र की अभिलाषा में
बहुत कुछ मध्य में ही छूट गया
जबकि न प्रारब्ध वश में है और न ही अंत!
अचंभित होती हूँ
इच्छाओं की हठधर्मिता पर #yqbaba#yqdidi#yqpowrimo
Sunita D Prasad
#एक ऋतु का शोक.....
मैंने 'अंतिम' शब्द की व्यथा का
स्वाद चखा है!
मेरी पीठ पर जहाँ
तुम्हारे अंतिम संदेश का असाध्य गुरुत्व है #yqbaba#yqdidi#yqpowrimo
Sunita D Prasad
#भाषा के दुःख.....
ऐसा नहीं था
कि हम एक-दूसरे के दुःख
समझ पाने में अक्षम थे
पर संवादहीनता के चलते
समझ की भाँति ही #yqbaba#yqdidi#yqpowrimo
Sunita D Prasad
उसके होठों का ध्वनित उल्लास
श्रृंगारहीन है !
क्या किसी हँसते हुए चेहरे पर बेतरतीबी देखी है ?
जैसे कई रातों की अनभिज्ञता और अंधकार में जन्में
निर्विराम प्रश्नों की परिरेखाएँ उभर आती हैं
सतह पर!