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gurudeenverma5507
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Gurudeen Verma

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Gurudeen Verma

White शीर्षक- क्या तुम्हें लगता है कि ----------------
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क्या तुम्हें लगता है कि,
ईश्वर विद्यमान है,
हाँ, मुझको तो विश्वास नहीं है,
और मैं मानता भी नहीं हूँ ,
कि ईश्वर सर्वहितैषी है,
और मुझको तो आज तक जमीं पर,
नजर नहीं आया ईश्वर।

मैंने तो देखा है हर कहीं,
और तुमने भी देखा होगा,
इंसान ही लूट रहा है इंसान को,
धर्म के नाम पर ठग बनकर,
क्या मौजूद है इंसान में ईमान,
क्या मौजूद है इंसान में इंसानियत।
अगर है तो दिखाई क्यों नहीं देती है।

दिखाई दे रही है हर कहीं,
लूटखसोट और ऐय्याशी,
दगाबाजी और चालाकी,
किसको शर्म है ईश्वर की,
जबकि वह तो पूजता है ईश्वर को,
और डराता है ईश्वर से दूसरे को।

कौन करता है सच्चे दिल से प्रार्थना,
वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वजन हिताय की,
जबकि चाहता है हर कोई अपना भला ही,
अपने लिए ही धन- सम्पत्ति जोड़ना,
अपने लिए ही आशियाना बनाना,
कानून तोड़कर और खरीदकर,
ऐसे में कौन सोचता है औरों के लिए,
जीना और मरना इस धरती पर,
क्या तुम्हें लगता है कि------------------।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #Poetry
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- मुराद अपनी कोई अगर नहीं हो पूरी
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मुराद अपनी कोई अगर नहीं हो पूरी।
निराश होकर तू खुद से उदास होना नहीं।।
अगर नहीं मिले तुमको अपनी तक़दीर हसीं।
तू अपनी जिंदगी से तो हताश होना नहीं।।
मुराद अपनी कोई -------------------------।।

देखा था मैंने भी जिंदगी में एक ख्वाब हसीं।
किये जतन हजारों मगर, मिली नहीं वह खुशी।।
अगर तुमको भी कोई खुशी कभी नहीं मिले।
तू अपनी जिंदगी से तो बेसाज होना नहीं।।
मुराद अपनी कोई-------------------------।।

तुमसे खफा हो अगर तेरे, अजीज दिल यहाँ कभी।
बने हो तेरे दुश्मन, जिनको चाहा था तुमने कभी।।
नहीं साथ दे कोई अगर मुसीबत में तेरा।
तू अपनी जिंदगी से तो नाराज होना नहीं।।
मुराद अपनी कोई ------------------------।।

औरों को देखकर आबाद, तू ऐसे हाय नहीं भर।
महकेगी तेरी फिजा भी, गलत दुहायें तू नहीं कर।।
तुमको मिले नहीं तव्वजो, अगर महफ़िल में।
तू खोकर होश, अपनी जिंदगी को खोना नहीं।।
मुराद अपनी कोई---------------------------।।

किसी से हद से ज्यादा, तू उम्मीद नहीं कर।
मिला है जो तुमको, तू उसी पे तस्कीन कर।।
नसीब नहीं हो तुमको, अगर बहार जीवन में।
नाउम्मीद, कमजोर तू , जिंदगी में होना नहीं।।
मुराद अपनी कोई--------------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #Poetry
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- सवाल यह है--------
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सवाल यह नहीं है कि,
इस देश में कितने अनपढ़ है,
सवाल यह है कि,
इस देश में कितने सुगड़ है।

शैक्षिक उन्नयन में यह तो खास है,
इस देश में ज्ञान- विज्ञान की प्रगति हुई है, 
विदेशों में भारत की ख्याति फैली है,
लेकिन आत्मज्ञान की कमी भी उतनी ही हुई है।

इस कलयुग में इंसान कलपुर्जा हुआ है,
हाथों का स्थान कल- कारखानों ने लिया है, 
स्थिति यह हुई कि बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ गया,
और मशीनों ने आदमी को पेंशन दे दी।

अणु- परमाणु शस्त्रों ने तो,
इंसान के दिलो-दिमाग को,
इस रफ्तार से बदल दिया है कि,
उसकी दौड़ की कोई सीमा नहीं,
कोई विराम नहीं, कोई मंजिल नहीं।

इंसान अब अंतरिक्ष में बसना चाहता है,
ऐसे में इस धरती पर,
रहने की बात कौन सोचता है,
सवाल यह है।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #Poetry
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- कोई शिकायत आपको हमसे अब होगी नहीं
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कोई शिकायत आपको हमसे अब होगी नहीं।
हो चुके हैं दूर अब हम, आपके करीब नहीं।।
कोई शिकायत आपको-----------------------।।

आप है अम्बर की आभा, हम जमीं की धूल है।
हम बसे हैं पंक में, आप महल का फूल है।।
यही वजह है आपका हम, ख्वाब देखते नहीं।
कोई शिकायत आपको----------------------।।

प्यार के सिवा हमारे पास, और कुछ भी नहीं।
आपकी महफ़िल की रौनक, हम बढ़ा सकते नहीं।।
आपकी हमसे हो शाम, ऐसा हम चाहते नहीं।
कोई शिकायत आपको------------------------।।

आपकी नजरों के काबिल, वो सितारे नहीं है हम।
आपके ख्वाबों की चाही, वो बहारें नहीं है हम।।
आपकी चाहत हो हम, वो खूबी हम में है नहीं।
कोई शिकायत आपको------------------------।।

देखा है हमने आपको, मतलब नहीं है हमसे कुछ।
गैर है हम आपके, सदगा नहीं है हमसे कुछ।।
आपको हो शर्मसार हमसे, बेखबर हम इतने नहीं।
कोई शिकायत आपको---------------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #Poetry
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- आज़ाद हिंदुस्तान में
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क्या मिल गया है इंसाफ गरीब को, आजाद हिंदुस्तान में।
क्या मिट गई है नफरत दलित से, आजाद हिंदुस्तान में।।
क्या मिल गया है इंसाफ ---------------------------।।

क्या हो गया है बन्द सितम,औरत और मासूमों पर।
क्या रुक गया है अब अधर्म, मजबूर और यतीमों पर।।
क्या बस गई है बस्ती मजदूरों की, आजाद हिंदुस्तान में।
क्या मिल गया है इंसाफ--------------------।।

क्या खत्म हो गया है भ्र्ष्टाचार, व्यभिचार अब यहाँ।
क्या रुक गई है कालाबाजारी, राहजनी अब यहाँ।।
कई नहीं होते हैं अब बलवें, आजाद हिंदुस्तान में।
क्या मिल गया है इंसाफ-------------------।।

कर रहे हैं कुछ मौज यहाँ, औरों की मेहनत पर।
बन गए हैं अमीर कुछ यहाँ, ईमान अपना बेचकर।।
कब मिटेगी यह गरीबी, आजाद हिंदुस्तान में।
क्या मिल गया है इंसाफ़------------------।।

क्या हो चुका है कायम अमन, क्या हो गई है खत्म मुसीबतें।
क्या मिल गई है यहाँ सबको रोटी, क्या होती नहीं अब बगावतें।।
क्या हो रही है अब सबकी कद्र, आज़ाद हिंदुस्तान में।
क्या मिल गया है इंसाफ------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा ऊर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #Poetry
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- मनाओ जश्न तुम मेरे दोस्तों
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मैं कैसा हूँ यह नहीं सोचो तुम, मनाओ जश्न तुम मेरे दोस्तों।
तुम्हें जो मिली हैं खुशियां उनका, लो तुम मजा मेरे दोस्तों।।
मैं कैसा हूँ यह नहीं सोचो------------------।।

खुदा न करें ऐसे दिन हो तुम्हारे, जीना पड़े तुम्हें मुफलिसी में।
माँगता हूँ रब से हमेशा दुहा मैं, हमेशा रखें तुमको नसीबी में।।
दिन हैं तुम्हारे बहारों के, महकाओ मन तुम मेरे दोस्तों।
तुम्हें जो मिली हैं खुशियां उनका, लो तुम मजा मेरे दोस्तों।।
मैं कैसा हूँ यह नहीं सोचो-------------------।।

रुसवां है मुझसे मेरा नसीब, तोहमत तुमपे लगाता नहीं मैं।
गर्दिश में क्यों मेरा है जीवन, गल्फ इसकी सुनाता नहीं मैं।।
नसीबवर हो तुम मकबूल बनो, जलावो शमां तुम मेरे दोस्तों।
तुम्हें जो मिली हैं खुशियां उनका, लो तुम मजा मेरे दोस्तों।।
मैं कैसा हूँ यह नहीं सोचो---------------------।।

गर शिकवा है तुमको मेरे सँग से, सच मुझसे तुम छुपाओ नहीं।
चला जाऊँगा मैं बहुत दूर तुमसे, नजर तुम्हें कभी आऊंगा नहीं।।
बेकश हूँ मैं, तुम महफ़िल सजाओ, मनाओ नहीं शोक मेरे दोस्तों।
तुम्हें जो मिली हैं खुशियां उनका,  लो तुम मजा मेरे दोस्तों।।
मैं कैसा हूँ यह नहीं सोचो--------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा ऊर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #Poetry
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- यही है मेरा संसार, मेरा परिवार
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मुझको वास्ता नहीं तुम्हारी फौज से,
ना ही मैं डरता हूँ अपनी फौत से,
मेरा कुरुक्षेत्र अलग ही है,
जहाँ चलते हैं गीता के उपदेश।

ना मेरा रिश्ता है तुम्हारी चौपाल से,
मेरी महफ़िल तो तुमसे अलग है,
जिसमें होती है राम और सीता की बातें।

यह तुम्हारी वादी शबाब की,
यह तुम्हारी सोहबत शराब की, 
मेरे जीवन का गुलिस्तां नहीं है।

मेरी दुनिया तो अलग ही है,
जहाँ है शान्ति और अहिंसा।

यह तुम्हारी बस्ती स्वर्ग नहीं है मेरा,
मेरा स्वर्ग तो सिर्फ वहाँ है,
जहाँ है बच्चों की मुस्कान।

क्योंकि बच्चें कभी झूठ नहीं बोलते हैं,
चाहे ये उम्र में कच्चे हैं,
 लेकिन मन के सच्चे हैं ये बच्चें।

यही तो भारत का भविष्य,
यही है मेरा संसार, मेरा परिवार,
और इन्हीं के बीच मैं रहता हूँ मस्त।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #Poetry
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- अरे ओ हसीना तू सोचती है क्या
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अरे ओ हसीना तू सोचती है क्या।
यही कि मैं तुमको प्यार करता हूँ।।
लेकिन तुम्हारा यह सोचना गलत है।
कि तुमपे दिल अपना वार करता हूँ।।
अरे ओ हसीना तू ---------------------।।

मैं वो अली नहीं जो, डोलता है कलियों पे।
मैं वो दीवाना नहीं जो, घूमता है गलियों में।।
अरे ओ हसीना तू , समझती है क्या।
यही कि मैं तुमपे एतबार करता हूँ।।
अरे ओ हसीना तू ---------------------।।

मालूम नहीं है तुमको, आदमी हूँ कैसा मैं।
तुम सी हसीनाओं पे , होश नहीं खोता मैं।।
अरे ओ हसीना तू , मानती है क्या।
यही कि मैं तेरा दीदार करता हूँ।।
अरे ओ हसीना तू ---------------------।।

मेरी सलाह है इतना श्रृंगार करो नहीं।
तुम बेहूदी में दामन, बेजार करो नहीं।।
अरे ओ हसीना तू , जानती है क्या।
यही कि मैं तेरा इंतजार करता हूँ।।
अरे ओ हसीना तू ---------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #poetry
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- सच्ची मोहब्बत नहीं अब जमीं पर
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सच्ची मोहब्बत नहीं अब जमीं पर, अब मतलब का प्यार है।
मत दिल लगा तू इतना किसी से, देख वह कैसा यार है।।
सच्ची मोहब्बत नहीं अब -----------------------।।

माना कि वह खूबसूरत है, और वह करता है प्यार तुमसे।
की है वफ़ा उसने मोहब्बत में, होगा नहीं कभी दूर तुमसे।।
होगी उसकी मजबूरी ही, उसने किया यह इजहार है।
सच्ची मोहब्बत नहीं अब--------------------।।

पागल न बन देख झूठी मोहब्बत, कहता हूँ सच तुमसे अपना समझकर।
लगते हैं तुमको जो फूल महके महके, देखें नहीं तुमने उनके नश्तर।।
करते हैं खून वो मासूम दिलों का, झूठी है शान इनकी झूठी बहार है।
सच्ची मोहब्बत नहीं अब ------------------------।।

देख ख्वाब किसी का तू मत हो बेताब,नहीं होते सपनें कभी भी अपने।
तोड़ देते हैं शीशे की तरहां दिल, बन जाते हैं दुश्मन जो कभी थे अपने।।
क्या निभायेगा तुमसे वह वादा, जिसकी नजर में तू एक इश्तहार है।
सच्ची मोहब्बत नहीं अब--------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #poetry
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Gurudeen Verma

White शीर्षक- जो कि आज मैं लिख रहा हूँ
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विचार करके आज के हालात पर,
कल्पना करके भविष्य की,
सोचकर मैं जो लिख रहा हूँ ,
क्या कल यह किसी महत्त्व का होगा ?
क्या यह लोगों के लिए प्रेरणा बनेगा ?
क्या कदर होगी मेरी इस कलम की ?
शायद ही।

क्योंकि मेरी तरह और भी तो है,
जो लिखते हैं अपने अपने विचार,
देश के हालात पर करके विचार,
शायद लेखकों की एक प्रतियोगिता भी हो,
 हो सकता है उस प्रतियोगिता में मैं हार जाऊँ,
तब क्या रहेगा अस्तित्व मेरी लेखनी का ?
शायद ही।

हो सकता है अपशिष्टों की तरहां,
फैंक दिया जाये मुझको भी उस ढेर में,
जहाँ एकत्रित होता है मृत कचरा,
तब क्या होगा मेरी आवाज़ का ?
और इस लेखन का,
जो कि आज मैं लिख रहा हूँ ,
देश और समाज के हालात पर।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

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