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brahamanandsujal7143
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BN GARG

WRITER POET

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BN GARG

White घनघोर तिमिर का नाश करे 
जले एक दीप ऐसा भी।
हर ओर खुशियों का प्रकाश करे
जले एक दीप ऐसा भी।
सुख समृद्धि और करूणा से
अलंकृत हो जीवन पथ,
चहुँ ओर लक्ष्मी का वास करे
जले एक दीप ऐसा भी।

ज्ञानज्योति का विस्तार करे
जले एक दीप ऐसा भी।
जन जन के स्वप्न साकार करे
जले एक दीप ऐसा भी।
जीवन पथ की मुश्किलें हो
आशाओं की अग्नि में स्वाहा,
सर्वजन का सदा कल्याण करे
जले एक दीप ऐसा भी।

दीपोत्सव के पवित्र पर्व की आप सभी को हृदय तल की असीम गहराइयों से हार्दिक शुभकामनाएँ।

माँ लक्ष्मी नमो नमः

ब्रह्मानन्द गर्ग भाडली
जैसलमेर (शिक्षक व कवि)

©BN GARG #happy_diwali 
#BNGARG 
 भक्ति सागर

#happy_diwali #BNGARG भक्ति सागर

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BN GARG

#MejorShaitansingh
#poetry
#BNGARG
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BN GARG

#MejarShaitansingh
#
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BN GARG

White सार छंद

मधुर मिठी ये भाषा अपनी, शान अपने वतन की।
सभी लोग अपनाएं हिन्दी, गौरव जन जीवन की।
समय चक्र के फेर में पड़ी,अभिलाषा निज मन की, 
हम सबका है पुनित दायित्व, रानी हो उपवन की।

ब्रह्मानन्द गर्ग सुजल©
अध्यापक जैसलमेर।

©BN GARG #love_shayari 
 शायरी हिंदी में शेरो शायरी

#love_shayari शायरी हिंदी में शेरो शायरी

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BN GARG

White जहाँ झूठ ना बिक सके ऐसा कोई बाजार नहीं।
सत्य का फिलहाल दोस्तों कोई खरीददार नहीं।

झूठ ने खड़ी कर ली मजबूत सल्तनत हर ओर,
सत्य दर दर भटक रहा किसी को ऐतबार नहीं।

क्रमशः

सुजल©

©BN GARG #love_shayari 
 शेरो शायरी

#love_shayari शेरो शायरी

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BN GARG

#हिन्दी हिंदी कविता कविता कविता कोश हिंदी दिवस पर कविता कविताएं

#हिन्दी हिंदी कविता कविता कविता कोश हिंदी दिवस पर कविता कविताएं

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BN GARG

#SadStorytelling #TrBNGARG
#गजल
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BN GARG

ठीक ना लगे जब हालात,बोलना जरूरी है।
सुनी  ना जाए जब  बात, बोलना जरूरी है।

क्या खामोशी ओढ़ कर बने रहोगे बुत हमेशा,
भविष्य पर हो जब आघात, बोलना जरूरी है।

ये वो वे नहीं बोल रहे तो मुझे क्या पड़ी है फिर,
ठीक नहीं है ये सोच जनाब,  बोलना जरूरी है।

जुर्म देख कर चुप रहोगे  तो पीढियां  सजा पाएगी,
इतिहास में बन जाओगे गुनहगार,बोलना जरूरी है।

गुलामी की बेड़ियों से निकले हो सदियों बाद सुजल,
अगर नहीं चाहते फिर  वही हाल,  बोलना जरूरी है।

#TrBNGARG

©BN GARG
  बोलना जरूरी है
#TrBNGARG

बोलना जरूरी है #TrBNGARG #शायरी

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BN GARG

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BN GARG

#रेत_के_समंदर_में_प्रेम_की_सुगंध।

दूर दूर तक फैला हुआ हुआ बियाबान रेत का समंदर और तपती हुई धूप का आँचल। 
रेगिस्तान की इस खामोश फिजाओं में कलकल बहती काक नदी और उसके किनारे बनी खूबसूरत झरोखेदार मेड़ी। 
मेड़ी के चारों तरफ सुगंधित फूलों का बाग ऐसा कि आस पास का माहौल भी मदमस्त हुआ जाए। 
और मेड़ी में रहती थी जैसलमेर की राजकुमारी मूमल। 
जिसके बारे में कहा जाता था कि न तो मंदिर में ऐसी मूरत है न किसी राजा के महल में ऐसा रूप। रूप की अनुपम कृति जो शायद बनाने वाले से भी एक ही बनी। 

अमरकोट का राजकुमार महिंद्रा अपने बहनोई के साथ आखेट करते हुए आ पहुंचा काक नदी के इस पार। और जब उसने मूमल को देखा तो बस देखता रहा। 
"फूल कहूं गुलाब, चंपा कहूं कि चमेली।"

मूमल और महेंद्रा का प्रेम जब परवान चढ़ा तो ऐसा कि रोज सौ कोस रेगिस्तान का सफ़र ऊँट पर करके महेंद्रा मूमल से मिलने आए और दिन निकलने से पहले ही वापिस अमरकोट। 

एक दिन महेंद्रा को जरा देर हो गई तो मूमल और उसकी बहन स्वांग खेलते खेलते सो गई, उस समय मूमल की बहन ने पुरुष का स्वांग धरा हुआ था। 

देर रात महेंद्रा जब आया उसने स्वांग धरे मूमल की बहन को देखा तो पुरुष समझ कर तुरंत मेड़ी से उतर गया और फिर न लौटा। 

जब मूमल को इस बात की खबर हुई तो उसने संदेश भिजवा कर गलतफ़हमी दूर करनी चाही। और वो अमरकोट पहुंच गई। महेंद्रा ने मूमल को परखने के लिए कहला भेजा कि उसे काले नाग ने डस लिया और वो नहीं रहा।सेवक के द्वारा ये संदेश सुनकर मूमल वहीं गिर पड़ी और उसकी मौत हो गई। 

विरह की पीड़ा में पागल महेंद्रा हाय मूमल हाय मूमल करता रेगिस्तान में ही भटकता रहा। 

आज भी रेगिस्तान के उस हिस्से में उन दोनों के प्रेम की खुशबू फैली हुई है। और पूरे जैसलमेर में गूंज रही है मूमल महेंद्रा के प्रेम की दास्तान।

विश्व प्रसिद्ध मरु महोत्सव पर दोनों अमर प्रेमियों की याद में आयोजित होती है मूमल और महिंद्रा प्रतियोगिता। जिसे देखने दुनिया भर से सैलानी आते हैं। 

ब्रह्मानंद गर्ग सुजल©

©BN GARG
  #Aurora मुमल और महेंद्रा #TrBNGARG
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