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manojkumarmeena8331
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Mann

"फ़िर मिला वक़्त तो सुलझाऊंगा तेरी उलझी लटों को, अभी तो खुद उलझा हूं "मन" वक़्त को सुलझाने में"

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Mann

मैं  धरती  पुत्र  किसान  हूँ, मै  धरती  पुत्र  किसान हूँ।
मै  भारत  का अभिमान  हूँ, मै धरती  पुत्र  किसान  हूँ।

#देखा है मैंने बादल को, तपती गर्मी निः शब्द खड़ा,
देखा है मैंने सावन को, निष्ठुर  निर्दयीसा मृत  पड़ा,
देखा है मैंने बच्चों की आँखों मै अभिलाषा अन्न की,
ये कैसी घोर विडम्बना है, नरपति ना सुन पाए मन की,

जो टूट ना पायी युगों युगों मै उस भारत की आन हूँ
मै धरती पुत्र  किसान हूँ, मै धरती पुत्र किसान हूँ ।

# उगता सूरज ही मेट सका, इस धरती के अंधियारे को,
कंगन की खनक  का क्या पूछें, हर बात पता मनिहारे को,
 धरती का सीना चीर के मैंने, अन्न को धन बनाया है,
तब जाकर ऊँचे महलों में सुख शंखनाद बज पाया है,

जो बोल ना स्वर मै ढल पाए, मै वो अनबोला गान हूँ,
मै धरती पुत्र किसान हूँ, मै धरती पुत्र किसान हूँ ।

#अब ऐसा भी क्या मांग लिया,सत्ता की चौकीदारों से,
क्यों अपने घर मै कैद रहे, कहदो उन हाकमदारों से,
गर देना हो तो मोल नियत दो, हलदर की फुलवारी का,
तब जाकर खिरमन चख लेगी, रस अपनी हिस्सेदारी का,

ये देश मुझ ही से चलता है, मत समझो की निष्प्राण हूँ,
मै धरती पुत्र किसान हूँ, मै धरती पुत्र किसान हूँ ।

#मैंने ही भोर के माथे पर, हल-फ़ाल से तिलक लगाया था,
मैंने ही ठंडी रातों में, फसलों को नीर पिलाया था,
जब चीर ना था मेरे तन पर,मुझे तब भी कुछ ना खलता था,
तन आज भी मेरा जलता है, तन कल भी मेरा जलता था,
मैंने भी सोचा था साहिब, के अच्छे दिन भी आएंगे,
भारत के भूमिपुत्रों को वो, शीश तलक बैठायेंगे,
पर ये कैसी बू फैली है, अब सत्ता के गलियारों मै,
वो चौपड़ पासे खेल रहे, पूँजी पतियों के बाज़ारों में,

हर रण में अबतक हारा जो, वो दीन धरम ईमान हूँ,
मै धरती पुत्र किसान हूँ, मै भारत का अभिमान हूँ,

मै धरती पुत्र किसान हूँ, मै धरतीपुत्र किसान हूँ।

  "  जय जवान - जय किसान
    जय भारत - जय संविधान "

                                                 " मन "
                                    (Manoj Kumar Meena)

©Mann मैं भी किसान हूँ, और किसानों का दर्द समझ सकता हूँ। मेरा सरकार से विरोध मेरी कविता के माध्यम से है।

मैं भी किसान हूँ, और किसानों का दर्द समझ सकता हूँ। मेरा सरकार से विरोध मेरी कविता के माध्यम से है। #मैंने #अब #देखा

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Mann

छू लेता हूं तेरे चरणों को, जब विपदा कोई आ जाती है,
तेरे आंचल की छांव में हर विपदा छट सी जाती है।

 मुद्दतें हो गई अब नींद लिए, आंचल से लिपटे सागर में,
घर में पड़ा बीमार पलंग, रेशम मखमल की चादर में, 
भूल गया मां ठंडा पानी, जो मिलता था गागर में,
नहीं मिला वो सकूं शहर में, जो मिला गांव के कांकर में,
अ काश कभी मिल जाए वो दिन -2
ऐसी अास जग जाती है।
तेरे आंचल की छांव में.......

 जब घिर आती थी काली घटा, घनघोर छटा बन बादल में,
फिर निष्छल बूंदे पानी की, अविरल गिरती थी आंगन में,
वो कच्चे घर ओर छप्पर घास की, मार नहीं सह पाती थी,
बन कर संगीत की नई राग, बूंदे टप टप गिर जाती थी,
देखा है तुझको फिर हमने, उस नई राग के विपक्ष खड़ा,
कहीं बाल्टी कहीं पतिला, रख दिया तूने कहीं घड़ा,
बन कर अबोध ऐसे में हम, जब कहते अम्मा भूख लगी,
देकर गुड धानी कहती तू, ठहरो थोड़ा है झडी लगी,
क्या खूब सुहाने दिन थे वो, जब प्यार में प्यार झलकता था,
मां की ममता के साये में, इक संस्कार जो पनपता था,
लोटा दो मुझे वो दिन मेरे, वो बचपन की यादें सारी,
बाबा के हाथों की अंगुली मां के आंगन की फुलवारी,
ये सोच के उस दृश्यम का दृश्य 'मन ' विरह की आग लग जाती है।

तेरे आंचल की छांव में, हर विपदा छट सी जाती है।

         
          त्याग की परिभाषा है 'मां' मां

मां

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Mann

सांस का शत्रु ### korona

सांस का शत्रु ### korona

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Mann

बाद मुद्दत के चला हूं मयखाने से मंदिर की तरफ
ना देख की तेरी निगाहों से डर लगता है,

फ़िर से खो ना जाए ये "मन" तेरी इन निगाहों में,
नशीले झील के इस पानी से डर लगता है।

                     "मन' डर लगता है

डर लगता है #शायरी

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Mann

तेरा ममनून हूं , तेरी आफियत की दुआ करता हूं
इस इश्के मुफ्लसी में तुझे फिर से याद करता हूं
मेरा एतमाद कर तेरी शफ़्क़त इस तरह से बसी है दिल में

कि ख़्वाब में भी तेरा नूरे बदन छुआ करता हूं।

                              " मन" तेरा मुरीद

तेरा मुरीद #शायरी

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Mann

ना देखो आइने में यूं खुद को संवार कर,
कहीं टूट ना जाए तुम्हारा नाम पुकार कर।

                                       "मन" दर्द

दर्द #शायरी

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Mann

चंद किस्सों के लम्हों को लेकर सनम , 
अपने हिस्से की तोड़ी है हमने कसम,
कुछ किए थे जो हमने गुनाहे अजीज ,
 वो तुम्हे भी पसंद थे हमें भी पसंद।

                                      "मन" एहसास### मेरा

एहसास### मेरा #शायरी

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Mann

आईना खुद पे इतराता कब है,
 अश्क पानी पे ठहरता कब है,
हमसे कायम है भ्रम वरना ,
चांद धरती पर उतरता कब है।

ना पड़े इश्क़ की नजर जब तक
हुस्न का रंग निखरता कब है।

हो ना मर्जी अगर हवाओं कि
तो रेत पर नाम उभरता कब है।

जिसकी आहट से डर गई निंदे
वक़्त वो आकर गुजरता कब है।

तुम हकीकत में गमों का सागर हो दिल
एक कतरा भी गम का छलकता कब है।

तुम भी समझो या ना समझो "मन"
वैसे भी हमें कोई समझता कब है।

                               "मन" आईना ओर हकीकत

आईना ओर हकीकत

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Mann

यूं पाकीजा मोहब्बत को गुनहगार ना कर तू
दिल में धधकती आग पे कोई वार ना कर तू
रहने दे बाकी कुछ तो मोहब्बत के मायने
सरेराह दिले आशियां को तार तार ना कर तू

                     "मन" गुज़ारिश

गुज़ारिश

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Mann

मै ओर मेरा महबूब

मै ओर मेरा महबूब #शायरी

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