दोहा :-
तीखे-तीखे नैन से , क्यों करती हो वार ।
हम तो तेरे हो चुके , पहनाओ अब हार ।।
इस जीवन में आप पर , बैठा ये दिल हार ।
लगकर सीने से कहो , हुआ हमें भी प्यार ।।
करता हूँ मैं आज कल , छोटा सा व्यापार । #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :-
मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।
जीवन मेरा धन्य है , स्वप्न सभी साकार ।
जीने का मुझको मिला , एक नया आधार ।।
अब तो आठों याम मैं, करता हूँ गुणगान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विषय हिन्दी
विधा दोहा
हिन्दी हिन्दस्तान की , सुन लो होती शान ।
इसके देश विदेश में , है लाखो विद्वान ।।१
हिन्दी से नित मिल रहा , भारत को सम्मान ।
हिन्दी ही पहचान है , करो सदा गुणगान ।।२ #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- विषय हिंदी
हिंदी भाषा का हमें , दोगे कब अधिकार ।
हम भी तो हैं चाहतें , हो इसका विस्तार ।।
जो कहते थे मंच पर , हम हिंदी परिवार ।
अब कहते बच्चे पढ़े , अंग्रेजी अख़बार ।।
गुरुकुल के उस ज्ञान से , विस्तृत थे संस्कार ।
हिंदी का भी मान था , संस्कृति थी आधार ।।
वन टू थ्री अब याद है, भूले दो दो चार । #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल
मौत थीं सामने ज़िन्दगी चुप रही
दर्द के दौर मैं हर खुशी चुप रही
जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को
बंद आँखें वही मुखबिरी चुप रही
#शायरी
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :-
बता दें किसे आज क्या मिल रहा है ।
मुहब्बत में सबको दगा मिल रहा है ।।
न रश्में न बंधन न कसमें न वादे ।
ऐसी इक डगर का पता मिल रहा है ।।
न देखा न सोचा न समझा न जाना । #शायरी
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
#Ganesh_chaturthi
हे गौरा के लाल , पधारो आँगन में ।
भक्त खडे हैं आज , सब देखो आव्हान में ।।
लिए पान ओ फूल , सजाए बैठे थाली ।
करके हैं जयकार , बजाकर हम सब ताली ।।
प्रथम पूज्य हो देव , हमारे तुम ही देवा ।
करते रहते नित्य , तुम्हारी हम सब सेवा ।। #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विधा कुण्डलिया :-
सच्चा करते प्रेम तो , गिरधर होते साथ ।
हाथ न देते हाथ में , रहते तो रघुनाथ ।।
रहते तो रघुनाथ , हृदय शीतल कर देते ।
व्याधि न आती एक , कष्ट सारे हर लेते ।।
भवसागर की राह , दिखाते कहकर बच्चा ।
कर लेते तुम काश , प्रेम इस जग से सच्चा ।।
#कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :-
आती होंगी राधिका , सुनकर वंशी तान ।
मुरलीधर अब छोड़ दो , अधरो की मुस्कान ।।
अधरो की मुस्कान , बढ़ाये शोभा न्यारी । #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया छन्द :-
गौ माता के लाल से , खेल रहे गोपाल ।
चलो दिखाएँ आपको , वहाँ नन्द के लाल ।।
वहाँ नन्द के लाल , कहे मुझसे क्यों डरते ।
बनो सखा तुम आज , प्रेम हम तुमसे करते ।।
आओ खेलो संग , हमारा निर्मल नाता ।
समझा दूँगा साँझ , चलो घर मैं गौ माता ।।
#कविता