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Kantilal Bhabor

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Kantilal Bhabor

हंसिका, आज फिर तुमने अपनी कॉपी का पन्ना इतनी बुरी तरह फाड़ा हुआ कि देखने वाले को भी तरस आ जाए। आखिर तुम यह कॉपी किताबों का अपमान करना कब छोड़ोगी?’ प्रिया बोली। ‘क्या मम्मा, आपने स्कूल से आते ही शुरू हो गर्इं। पन्ना ही तो फाड़ा है। किसी की जान तो नहीं ली।’  ‘हंसिका, बहुत बोलने लगी हो आजकल। कॉपी-किताबें साक्षात सरस्वती का रूप हैं और अगर तुम कॉपी-किताबों की दुर्गति कर सरस्वती का अपमान करोगी तो उनकी तुम पर कभी कृपा नहीं होगी।’

हंसिका और प्रिया का विवाद छिड़ गया। प्रिया ने हंसिका को प्यार से समझाया। प्रिया ने उसे एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया। वह नियमानुसार ही खेलती, पढ़ती और दूसरे काम करती थी। आरंभ से ही वह कक्षा की होनहार छात्रा थी । इस समय वह आठवीं में थी ।
हंसिका ने खाना खाने के बाद होमवर्क करने के लिए अपनी कॉपी निकाली तो उसकी नजर गणित की कॉपी पर पड़ी, जिसके आज उसने पन्ने फाड़े थे और वह मुचड़ी हुई सी नजर आ रही थी। होमवर्क करके बैग बंद कर वह अपने बिस्तर पर आ गई ।
कुछ ही देर बाद उसने खुसर-फुसर की आवाजें सुनी तो वह चौंक कर इधर-उधर ताकने लगी। सब ओर देखने के बाद उसकी नजर जमीन पर पड़ी तो वह यह देख कर हैरान रह गई कि उसकी कॉपी और किताबें बैग से बाहर निकलकर जमीन पर आ गई थीं।
उसने देखा कि गणित की कॉपी में से कराहने की आवाज आ रही थी और सारी कॉपी और किताबें उसे सहलाकर सांत्वना दे रही थीं। गणित की कॉपी रोते हुए बोली, ‘मैं अब हंसिका के पास नहीं आऊंगी। जैसे ही वह मुझे हाथ में लेगी तुरंत उसकी पकड़ से छूट जाऊंगी। उसने मेरा पन्ना इतनी बुरी तरह फाड़ा है कि मेरा अंग-अंग दुख रहा है।’ उसकी बात सुनकर साइंस की कॉपी बोली, ‘माना कि हंसिका को पढ़ाई से बहुत लगाव है और वह हम पर बड़े प्यार से अक्षरों को सजाती है, लेकिन उनका बदला वह हमें बेदर्दी से फाड़कर, मसोसकर लेती है।’ तभी हिंदी की कॉपी बोली, ‘वह होशियार भी तो हमारी ही बदौलत है। वह लिख-लिख कर हम पर अभ्यास करती है तभी तो प्रश्न और जवाब उसके दिमाग में बैठते हैं।’
सभी पुस्तकें और कॉपियां अब इस वार्तालाप में शामिल हो गई थीं। आखिर प्रश्न तो सभी के अस्तित्व का था। वे सभी कॉपी-किताबें जो हंसिका के पास थीं, उसके लापरवाह और बेदर्द से सुलूक करने के कारण बेहद परेशान थीं और हंसिका से मुक्ति के उपाय सोच रही थीं।
अंगरेजी की पुस्तक बोली, ‘हां, तुम सब का कहना सही है। हर बार पढ़ने के बाद वह हमारे साथ ऐसा बर्ताव करती है जैसे दोबारा उसे हमारी जरूरत ही नहीं होगी। लेकिन, बार-बार उसे जरूरत तो पड़ती ही है।’
यह सुनकर सामाजिक विज्ञान की पुस्तक बोली, ‘हम अभी से कठोर रूप बना लेते हैं । अब अगर हंसिका हमें हाथ भी लगाएगी तो हम उसकी पहुंच से दूर भागने की कोशिश करेंगे और अगर हमारे सारे प्रयास निष्फल भी हो जाते हैं तो भी हम उसे सही से पढ़ने नहीं देंगे।’
सभी कॉपी-किताबें इस बात पर सहमत हो गए और हंसिका के स्कूल बैग के अंदर जाकर आराम करने लगे।
कुछ देर बाद हंसिका के साथ ऐसा ही हुआ। उसने स्कूल बैग में से गणित की कॉपी निकाली तो वह उसके हाथ लगाते ही छिटक कर दूर जा गिरी। यह देखकर हंसिका अवाक रह गई। इसके बाद उसने साइंस की पुस्तक को हाथ लगाया तो वह तो उसके हाथ ही न आई। वह जब भी उसे पकड़ने की कोशिश करती तो वह उससे दो कदम दूर हो जाती। इसके बाद उसने हिंदी की कॉपी निकाली तो वह तो बोल ही पड़ी,‘हंसिका, हमें भी तुम्हारी तरह दर्द होता है। अगर कोई तुम्हारा हाथ मरोड़े तो।’ फिर पास ही पड़ी अंगरेजी की पुस्तक बोली, ‘और अगर कोई तुम्हें बेवजह थप्पड़ मारे तो।’ इसके बाद सामाजिक विज्ञान की कॉपी बोली, ‘या कोई तुम्हारा कान ऐंठे…।’
इन सबकी बातें सुनकर हिंदी की पुस्तक बोली, ‘तो क्या तुम्हें दर्द नहीं होगा या चोट नहीं लगेगी।’
उन सब कॉपी-किताबों की बातें सुनकर हंसिका हैरानी से बारी-बारी से सभी कॉपी-किताबों की तरफ देखने लगी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे? कुछ देर बाद वह बोली, ‘पर तुम्हें कैसे दर्द होगा? न तो तुम सुन सकती हो, न देख सकती हो और न ही चल-फिर सकती हो।’
‘क्यों क्या हम तुम्हें अंधी-गूंगी बहरी नजर आ रही हैं?’ साइंस की पुस्तक कड़क कर बोली।
उसके करारे जवाब से हंसिका एक पल को सहम गई। फिर धीमे स्वर में बोली, ‘यह देखकर तो मैं भी हैरान हूं कि तुम सभी चल-फिर, देख और बोल कैसे रही हो।’
पास ही रखी गणित की कॉपी बोली, ‘आज, तुमने मेरा बहुत बुरा हाल किया है । इसलिए अब से कोई भी कॉपी-किताब तुम्हारे हाथ में नहीं आएगी और न ही तुम पढ़ पाओगी। जब हम तुम्हारे हाथ ही नहीं आएंगे तो तुम हमारी दुर्गति नहीं कर पाओगी।’
हिंदी की कॉपी बोली, ‘इस तरह तुम अशिक्षित रह जाओगी। ये बातें सुनकर हंसिका चीख उठी, ‘नहीं नहीं, मैं पढ़ना चाहती हूं और पढ़-लिखकर कामयाब बनना चाहती हूं।’
सबसे पहले अपने स्कूल बैग में से गणित की फटी हुई कॉपी निकाली और उसे माथे से छूकर माफी मांगी।
इसके बाद वह अपनी कॉपी-किताबों को संवारने में लग गई।

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©Kantilal Bhabor हंसिका, आज फिर तुमने अपनी कॉपी का पन्ना इतनी बुरी तरह फाड़ा हुआ कि देखने वाले को भी तरस आ जाए। आखिर तुम यह कॉपी किताबों का अपमान करना कब छोड़ोगी?’ प्रिया बोली। ‘क्या मम्मा, आपने स्कूल से आते ही शुरू हो गर्इं। पन्ना ही तो फाड़ा है। किसी की जान तो नहीं ली।’  ‘हंसिका, बहुत बोलने लगी हो आजकल। कॉपी-किताबें साक्षात सरस्वती का रूप हैं और अगर तुम कॉपी-किताबों की दुर्गति कर सरस्वती का अपमान करोगी तो उनकी तुम पर कभी कृपा नहीं होगी।’

हंसिका और प्रिया का विवाद छिड़ गया। प्रिया ने हंसिका को प्यार से समझाया। प्रिया ने उसे एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया। वह नियमानुसार ही खेलती, पढ़ती और दूसरे काम करती थी। आरंभ से ही वह कक्षा की होनहार छात्रा थी । इस समय वह आठवीं में थी ।
हंसिका ने खाना खाने के बाद होमवर्क करने के लिए अपनी कॉपी निकाली तो उसकी नजर गणित की कॉपी पर पड़ी, जिसके आज उसने पन्ने फाड़े थे और वह मुचड़ी हुई सी नजर आ रही थी। होमवर्क करके बैग बंद कर वह अपने बिस्तर पर आ गई ।
कुछ ही देर बाद उसने खुसर-फुसर की आवाजें सुनी तो वह चौंक कर इधर-उधर ताकने लगी। सब ओर देखने के बाद उसकी नजर जमीन पर पड़ी तो वह यह देख कर हैरान रह गई कि उसकी कॉपी और किताबें बैग से बाहर निकलकर जमीन पर आ गई थीं।
उसने देखा कि गणित की कॉपी में से कराहने की आवाज आ रही थी और सारी कॉपी और किताबें उसे सहलाकर सांत्वना दे रही थीं। गणित की कॉपी रोते हुए बोली, ‘मैं अब हंसिका के पास नहीं आऊंगी। जैसे ही वह मुझे हाथ में लेगी तुरंत उसकी पकड़ से छूट जाऊंगी। उसने मेरा पन्ना इतनी बुरी तरह फाड़ा है कि मेरा अंग-अंग दुख रहा है।’ उसकी बात सुनकर साइंस की कॉपी बोली, ‘माना कि हंसिका को पढ़ाई से बहुत लगाव है और वह हम पर बड़े प्यार से अक्षरों को सजाती है, लेकिन उनका बदला वह हमें बेदर्दी से फाड़कर, मसोसकर लेती है।’ तभी हिंदी की कॉपी बोली, ‘वह होशियार भी तो हमारी ही बदौलत है। वह लिख-लिख कर हम पर अभ्यास करती है तभी तो प्रश्न और जवाब उसके दिमाग में बैठते हैं।’
सभी पुस्तकें और कॉपियां अब इस वार्तालाप में शामिल हो गई थीं। आखिर प्रश्न तो सभी के अस्तित्व का था। वे सभी कॉपी-किताबें जो हंसिका के पास थीं, उसके लापरवाह और बेदर्द से सुलूक करने के कारण बेहद परेशान थीं और हंसिका से मुक्ति के उपाय सोच रही थीं।
अंगरेजी की पुस्तक बोली, ‘हां, तुम सब का कहना सही है। हर बार पढ़ने के बाद वह हमारे साथ ऐसा बर्ताव करती है जैसे दोबारा उसे हमारी जरूरत ही नहीं होगी। लेकिन, बार-बार उसे जरूरत तो पड़ती ही है।’

हंसिका, आज फिर तुमने अपनी कॉपी का पन्ना इतनी बुरी तरह फाड़ा हुआ कि देखने वाले को भी तरस आ जाए। आखिर तुम यह कॉपी किताबों का अपमान करना कब छोड़ोगी?’ प्रिया बोली। ‘क्या मम्मा, आपने स्कूल से आते ही शुरू हो गर्इं। पन्ना ही तो फाड़ा है। किसी की जान तो नहीं ली।’ ‘हंसिका, बहुत बोलने लगी हो आजकल। कॉपी-किताबें साक्षात सरस्वती का रूप हैं और अगर तुम कॉपी-किताबों की दुर्गति कर सरस्वती का अपमान करोगी तो उनकी तुम पर कभी कृपा नहीं होगी।’ हंसिका और प्रिया का विवाद छिड़ गया। प्रिया ने हंसिका को प्यार से समझाया। प्रिया ने उसे एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया। वह नियमानुसार ही खेलती, पढ़ती और दूसरे काम करती थी। आरंभ से ही वह कक्षा की होनहार छात्रा थी । इस समय वह आठवीं में थी । हंसिका ने खाना खाने के बाद होमवर्क करने के लिए अपनी कॉपी निकाली तो उसकी नजर गणित की कॉपी पर पड़ी, जिसके आज उसने पन्ने फाड़े थे और वह मुचड़ी हुई सी नजर आ रही थी। होमवर्क करके बैग बंद कर वह अपने बिस्तर पर आ गई । कुछ ही देर बाद उसने खुसर-फुसर की आवाजें सुनी तो वह चौंक कर इधर-उधर ताकने लगी। सब ओर देखने के बाद उसकी नजर जमीन पर पड़ी तो वह यह देख कर हैरान रह गई कि उसकी कॉपी और किताबें बैग से बाहर निकलकर जमीन पर आ गई थीं। उसने देखा कि गणित की कॉपी में से कराहने की आवाज आ रही थी और सारी कॉपी और किताबें उसे सहलाकर सांत्वना दे रही थीं। गणित की कॉपी रोते हुए बोली, ‘मैं अब हंसिका के पास नहीं आऊंगी। जैसे ही वह मुझे हाथ में लेगी तुरंत उसकी पकड़ से छूट जाऊंगी। उसने मेरा पन्ना इतनी बुरी तरह फाड़ा है कि मेरा अंग-अंग दुख रहा है।’ उसकी बात सुनकर साइंस की कॉपी बोली, ‘माना कि हंसिका को पढ़ाई से बहुत लगाव है और वह हम पर बड़े प्यार से अक्षरों को सजाती है, लेकिन उनका बदला वह हमें बेदर्दी से फाड़कर, मसोसकर लेती है।’ तभी हिंदी की कॉपी बोली, ‘वह होशियार भी तो हमारी ही बदौलत है। वह लिख-लिख कर हम पर अभ्यास करती है तभी तो प्रश्न और जवाब उसके दिमाग में बैठते हैं।’ सभी पुस्तकें और कॉपियां अब इस वार्तालाप में शामिल हो गई थीं। आखिर प्रश्न तो सभी के अस्तित्व का था। वे सभी कॉपी-किताबें जो हंसिका के पास थीं, उसके लापरवाह और बेदर्द से सुलूक करने के कारण बेहद परेशान थीं और हंसिका से मुक्ति के उपाय सोच रही थीं। अंगरेजी की पुस्तक बोली, ‘हां, तुम सब का कहना सही है। हर बार पढ़ने के बाद वह हमारे साथ ऐसा बर्ताव करती है जैसे दोबारा उसे हमारी जरूरत ही नहीं होगी। लेकिन, बार-बार उसे जरूरत तो पड़ती ही है।’ #President #प्रेरक


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