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siddharthadan1659
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kalam_shabd_ki

Siddharth Dan, M.tech, MIAZ, PhD Scholar, NITJ

https://instagram.com/kalam_shabd_ki?igshid=ZGUzMzM3NWJiOQ==

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kalam_shabd_ki

पहले नगर बदलते हैं, फिर लोग बदल जाते हैं,
कुछ स्थल स्थिर रहते हैं, पर वृत्तांत बदल जाते हैं।
वो अंतिम पान की चाय, वो अतीत की मधुर स्मृतियाँ,
नई भीड़ में विलीन होते हैं जन, शेष रह जाते हैं बस संवेदनाएँ।

- मेरी कलम

©kalam_shabd_ki #Yaari
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kalam_shabd_ki

White मुस्कान मेरी पहचान है, दर्द की कोई राह नहीं,  
हंसी ठिठोली हर बात में है, पर हर बात मज़ाक नहीं।  
दिल के जख्म छुपाए हैं, जो बाहर से दिखते नहीं,  
हर खुशी के पीछे छिपा है दर्द, जो लफ़्ज़ों में कभी बयां नहीं।

- मेरी कलम

©kalam_shabd_ki #GoodNight
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kalam_shabd_ki

दर्द की बूँदें, कागज पर बिखरती रहीं,
अवसाद में, रात भर लिखता रहा।

नक्षत्रों से मिले, आकाश की ऊँचाइयाँ,
मैं चाँद की छाँव में, छिपा रहता रहा।

अगर टूट जाता, कब का मैं मिट गया होता,
मैं तो नाज़ुक शाखा, सबके आगे झुकता रहा।

लोगों के रंग बदले, अपने-अपने ढंग से,
मेरे रंग में भी आई चमक, पर मैं हर बार घुलता रहा।

जो थे आगे बढ़ने में, वो मंज़िल की ओर चले,
मैं गहराइयों में समुद्र का रहस्य समझता रहा।

(सिद्धार्थ दाँ)
- मेरी कलम

©kalam_shabd_ki #river
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kalam_shabd_ki

क्योंकि तुम मिलने नहीं आए, तब तुम बीमार थे,  
अब मैं बीमार हूँ,  क्योंकि तुमसे मिलना नहीं है।  
बातें तुमने की थीं, अब खामोशी है,  
ये बीमार का बहाना है, या फिर बस अदाकारी है।

- मेरी कलम

©kalam_shabd_ki #sad_quotes
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kalam_shabd_ki

White  मुझे गंदी राजनीति का हिस्सा नहीं बनना,  
क्या तुम सच्ची राजनीति में मुझसे टकरा पाओगे?  
जिस खेल को आज तुम खेलते हो,  
वो खेल एक समय हम भी महारथी बनकर खेलते थे।  

मैंने इस खेल को छोड़ दिया है, पर खेलना नहीं भूला,  
तुम क्या जानो, इस रण में हम बाजी पलटाते थे।  
तुम अपने में खोए हो, मैं तुम्हें समझता हूँ,  
तुम लड़ाई करते हो, मैं वक्त का इंतज़ार करता हूँ।  
मैं राजनीति का एक कुशल खिलाड़ी हूँ,  
मेरे जवाब से तुम उत्तर देने के काबिल नहीं रहोगे।  

हर कदम पर चुपके से मैं जाल बुनता हूँ,  
तुम्हारी हर चाल पर मेरी नजर है, बस तैयार।  
यह जंग अपनों की है, पर अपना कोई नहीं। 
ये रिश्ते की अहमियत भी तुम क्या समझोगे।

- मेरी कलम

©kalam_shabd_ki #sad_quotes
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kalam_shabd_ki

White मैं उस सीढ़ी से फिसला,
जिसके बाद छत आने वाली थी,  
बस एक कदम था बाकी,  
पर किस्मत ने फिर से चाल चली थी।  

रिश्तों की उस मोड़ से लौटा,  
जहां रास्ते कई खुलते थे,  
पर उलझनों में खो गया मैं,  
जहां दिल के फैसले बिखरते थे।  

छत की तलाश में चला था,  
पर शायद रास्ते ही बदल गए,  
जिन्हें मैं अपना मान रहा था,  
वो पल कहीं दूर निकल गए।  

अब न छत की ख्वाहिश बाकी,  
न रिश्तों का वो सवाल,  
मैं अपनी राह पर हूँ चल पड़ा,  
नया सफर, नई मिसाल।

- मेरी कलम

©kalam_shabd_ki #Thinking
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kalam_shabd_ki

White जज़्बात नहीं, अरमान लिखूंगा,  
हर अधूरी ख्वाहिश का बयान लिखूंगा।  
खुद से खुद की ये अनकही दास्तां,  
मैं हर पन्ने पर नई पहचान लिखूंगा।

रूह को जिन्दा, लम्हों में ढालूंगा,  
हर साँस में, मैं नए सपने पालूंगा।  
जिस्म को मानो मैं मुर्दा कर दूंगा,  
पर दिल की धड़कन को अमर लिखूंगा।

शाम को मैं सांझ की चादर दूंगा,  
खून को मैं लहू की तरह बहा दूंगा।  
दर्द को मैं किस्मत का हिस्सा मानूंगा,  
और हंसी को ख्वाबों में सजा दूंगा।

लिख पाऊं तो हर अल्फाज़ में बसा दूंगा,  
मैं खुद को खुद से बार-बार लिखूंगा।  
हर लफ्ज़ में अपनी परछाईं रचूंगा,  
इस कहानी में, मैं खुद को ही लिखूंगा।

- मेरी कलम

©kalam_shabd_ki #Sad_shayri
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kalam_shabd_ki

White किसी महफ़िल में लुटे हैं हम भी,
किसी कहानी में झूठे हैं हम भी।
समझो मत कि बस हम ही बिखरे हैं,
इस सफर में तुम भी कहीं टूटे हो।
कदर भले ना हो आज तुम्हें हमारी,
मगर इस दौड़ में हम भी पीछे नहीं हैं।

- मेरी कलम

©kalam_shabd_ki #Sad_Status
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kalam_shabd_ki

कुछ शिकवे-गिले से लगते हो,  
तुम कहो तो सारे मिटा दूँ क्या। 

दिल में छुपा है दर्द गहरा,  
तुम कहो तो, तुमसे छिपाऊँ क्या ।

तुम्हें लगता है मेरी मोहब्बत कम है,  
तुम कहो तो हर दिन जताऊँ क्या। 

पर अफसोस, तुम कुछ भी कहते नहीं,  
साथ होने का वादा, पर कभी रहते नहीं।  
दिल में हैं अनगिनत सवाल,  
तुम कहो तो सभी बताऊँ क्या। 

तुम शायद मुझे कभी समझ न पाओ,  
एक बार कह कर तो देखो,  
तुम्हें समझाऊँ क्या।

- मेरी कलम








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©kalam_shabd_ki
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kalam_shabd_ki

ज़िंदगी की राह पर कभी नींद भी आती थी,
आज सोने का दिल भी नहीं करता,

छोटी-छोटी बातों पर आंसू बह जाते थे,
अब तो रोने की भी इच्छा नहीं रहती,
कभी खुद को सब कुछ दे देना चाहता था,
अब खोने की भी चाहत नहीं रह गई,

पहले शब्द भी कम पड़ते थे कहने को,
अब मुँह खोलने का मन भी नहीं करता,
कड़वे पल मीठे यादों में मिल जाते थे,
अब सोचने की भी फुर्सत नहीं मिलती।

- मेरी कलम









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