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indreshdwivedi1489
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Indresh Dwivedi

मेरा परिचय मेरे शब्दों में यूं तो अक्सर ही मैं बस प्रेम गुनगुनाता हूं कभी कभी सामाजिक मुद्दे भी उठता हूं आवाज को अपनी मैं अपना हथियार बनाता हूं और गुस्से को अपने मैं अपनी कविता में गाता हूं!!

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Indresh Dwivedi

White लाखों की भीड़ में भी तन्हा सा रहता था मैं
रात के अंधेरे से बहुत डरता था मैं!

फिर हुआ यूं कि मेरी उससे मुलाकात हुई
आंखों ही आंखों में पहली बात हुई!

फिर बातों का सिलसिला कुछ आगे बढ़ा 
कुछ इस तरह से हमारे प्यार का कारवां आगे बढ़ा!

राते सुहानी हो गई है मेरी, मुझे अंधेरे से अब डर नहीं लगता
मैं अकेला भी रहूं तो अकेलापन नहीं लगता!

प्यारा लगने लगा है वो चांद जिससे कभी दुश्मनी सी थी
अरे तुझसे पहले कहां मेरी किसी और से बनी थी!

अब सितम ये है कि तुझ बिन जी ना पाऊंगा
नहीं देखूंगा तुझे तो शायद मर जाऊंगा!

क्यूंकि बदरंग मेरे जीवन में केवल मायूसी थी
फिर हुआ यूं कि तुम मिली और जिंदगी सतरंगी हो गई!


कवि: इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)

©Indresh Dwivedi #love_shayari
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Indresh Dwivedi

इतना तन्हा था मैं कि मेरा कोई ना यार था 
ना कोई मेरा था ना किसी को मुझसे प्यार था
फिर यूं हुआ कि तुमसे मुलाकात हुई
वो सर्द थी रात और दिन शनिवार था!

पहले तो हो रही थी झिझक कि कैसे नजरे मिलाऊं मैं
तुमसे क्या कहूं कि बात को आगे बढ़ाऊं मैं!

पर तुम्हारी हंसी ने सब आसान कर दिया 
मुझ पागल के दिल में विश्वाश भर दिया।

तुम्हारा यूं मेरी बाइक पे मुझे लिपट जाना
मेरी जेब में हाथ डालना और गुदगुदाना
भुला नहीं पा रहा हूं तुम्हारी बदमाशियों को मैं
वो गर्म आहे और तेरा मुझमें समा जाना!!

और उस मुलाकात के नाम बस इतना कहूंगा मैं
अब हर गजल बस तुम पर लिखूंगा मैं

क्योंकि मुद्दतों बाद आज फिर से हसीं रात हुई है 
मेरी इश्क से आज फिर से मुलाकात हुई है
बह रहा हूं आज फिर से प्यार के दरिया में मैं
चंद लम्हों में ही सदियों सी बात हुई है!!

वो हंसी तुम्हारी मैं कभी भुला ना पाऊंगा
तुम्हारी हर मुस्कान पे मैं अपना दिल बिछाऊंगा 
और शर्त बस इतनी ही है कि मेरा साथ निभाना तुम
फिर देखना तुम्हारे इश्क में मैं सारी हदें भुलाऊंगा!!

कवि: इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)

©Indresh Dwivedi #tereliye
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Indresh Dwivedi

White अहिंसा परमो धर्मस्त्थाहिंसा परो दमः |
अहिंसा परमं दानम् अहिंसा परम तपः ||
अहिंसा परमो यज्ञस ततस्मि परम फलम् |
अहिंसा परमं मित्रम अहिंसा परमं सुखम् ||

यह श्लोक महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय 117 – दानधर्मपर्व में लिखा गया है। इसका अर्थ इस प्रकार हैः-

इसका अर्थ है की अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है | वही उत्तम इन्द्रिय निग्रह है | अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ दान है , वही उत्तम तप है | अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ यज्ञ है और वही परमोपलब्धि है | अहिंसा ही परममित्र है , और वही परम सुख है |

लेकिन जब धर्म की रक्षा की बात आती है तब एक और श्लोक भी कहा गया है

"अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तदैव च l" 

अर्थात - अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है.. किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है.

साथ ही अहिंसा सर्वश्रेष्ठ यज्ञ तभी होता है जब उसमे अवश्यकतानुसार हिंसा रूपी हव्य डाला जाये......तभी वह परमोपलब्धि पूरक है।

©Indresh Dwivedi #Krishna
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Indresh Dwivedi

शीर्षक : दिल और जज़्बात

कुछ दिन पहले ही आयी थी दिल में मेरे एक बात 
कैसे उसको मैं सुनाऊँ अपने दिल के जज़्बात
दिल ये डरता बहुत है कुछ भी से खोने से अब 
बस यही सोचने में  बीत गयी पूरी रात !!

रात बीति तो फिर नव सवेरा हुआ 
एहसास हल्का जो था आज गहरा हुआ 
चित ये खोया मेरा है फिर वर्षों के बाद 
साँस थम सी गयी है दिल ये ठहरा हुआ !!

ठहरे दिल में उठा है फिर से बवंडर कोई 
दिल ये पहले तो था जैसे खंडहर कोई 
उसकी सूरत तो है मेरे दिल में बसी
कैसे उसको बताऊँ बता दो कोई!!

बात दिल की उसे है बतानी मुझे 
कहानी प्रेम की अपने है सुनानी मुझे 
हाल उसके भी है मेरे जैसे ही या 
बात दिल की हाँ उसके जाननी है मुझे !!

ग़र जो दोनो के दिल के ये जज़्बात हो 
दिल में दोनो के ही एक ही बात हो
तो कोई ऐसा करम मुझपे करना हे श्याम 
साथ उसके ही अब मेरे जीवन की हर एक रात हो!!


कवि : इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)
दिल्ली

©Indresh Dwivedi #मेरी_कलम_से✍️

मेरी_कलम_से✍️ #कविता

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Indresh Dwivedi

सारे जग से न्यारा है, वो शख्स बहुत ही प्यारा है
मम्मी पापा का राजदुलारा, बहनों की आंख का तारा है
अपनी पत्नी और बच्चो का वो इकलौता एक सितारा है
और मेरी तो सारी दुनिया है वो ऐसा भईया हमारा है!!

मेरी ताकत मेरी हिम्मत, मेरे भईया से ही मेरी हस्ती है
भईया से ही है सारी खुशियां मेरी, मेरे भईया में मेरी जान बसती है
आज जन्म दिन है मेरे भईया का तो सोचता हूं क्या उन्हे उपहार दूं
भईया की एक मुस्कान के आगे तो यारों दुनिया की हर चीज  सस्ती हैं!!



भगवान मेरे भईया को कभी कोई गम ना दे, मेरे भईया को मेरी भी उमर लगे
बस इन्ही दुआओं के साथ भईया आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏❤️🙏💐🎂🥳🎉

©Indresh Dwivedi #कविता_जन्मदिवस
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Indresh Dwivedi

उसकी याद बहुत सताती है, 
मुझे सारी सारी रात जगाती है
भूलना चाहता हूं मैं उसको
कमबख्त भुलाई ही नहीं जाती है!
 
याद वो मुझको जब आती है 
दिल में हलचल मच जाती है
समझ नहीं कुछ आता है तब 
और मेरी सांसे थम जाती है!
भूलना चाहता हूं मैं उसको
कमबख्त भुलाई नहीं जाती है!!

बड़े हसीन थे वो एक एक पल
जो साथ बिताए थे हमने कल
वो कस्मे वो वादे और प्यारभरी बातें
वो मोहब्बत के लम्हे और शर्दभरी राते
भूलना चाहता हूं मैं उसको 
कमबख्त भुलाई नहीं जाती हैं!!

उसकी आंखो का वो काजल
करता था मुझको घायल
अपने हाथो से पहनाई थी मैंने 
जो घंटो ढूंढ़ के लाया था मैं उसके लिए पायल 
हां भूलना चाहता हूं मैं उसको
कमबख्त भुलाई नहीं जाती हैं!!


कवि: इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)

©Indresh Dwivedi #मैं_और_मेरी_तन्हाई✍️🧔🏻

मैं_और_मेरी_तन्हाई✍️🧔🏻 #कविता

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Indresh Dwivedi

बईठल रहनी अकेले अपने खयालन में  हम
तब तक जोर से एक हसीं गुजल और ठिठक गयिनी हम
घरबा के पूछनी तू के हउ और काहे डेरवावत हउ
पहिले त ऊ मुस्काइल फिर चिल्लाइल और कहल की तोर परेशानी हइं हम!!

तू कान्हें मोसे डराले ना कितनों तोके सताई तैं मोसे घबराले ना
अब हम्हू खूब जोर से ठहाका लगउनो 
फिर बोलनी की मोरे पिता जी के आशीर्वाद के ई प्रताप बा अउर तोरे जईसन क ओकरे आगे का औकात बा!!

परेशनियां पहिले त खिसियाइल फिर बहुत जोर से चिहाइल
कहले मोसे मत टकराव मैं तोके बर्बाद कई देबें
हम्हु कहनी की अरे पगली मोर भईया के होते तू कुछ न कर पईबी!!

एतना सुनते ऊ  त तमतमा गइल गुस्सा से बिलबिला गइल
कहल कि देख तों मोसे जुबान मत लडा नही त बहुत पछतइबे 
एईसन घुस जाइब तोरे जिंदगी में कि राह भुला जइबे
हम कहनी की सुन तों का मोके बर्बाद करबी
मोरे खातिर मोर दीदी चौथ भूक्खे ले ओकरे आगे त टिक ना पईबी!!

अब जईसे ऊ एकदम बौखला गइल लेकिन मोरे हौसला के आगे घबरा गइल
फिर थेथरई से बोलल कि देख तों मोसे थोड़ा त डेरो अरे परेशानी नाम ह मोर मैं तोर जान ले लेब
अबकी हमहू तमतमा गईनी और परेशानी के लतिया देहनी 
फिर बोलनी की सुन तों का मोर जान लेबी मोके शीओ माई क आशीर्वाद बा
अउर मोरे लंबी उमर के खातिर मोर माई खर बर क जितिया भूक्खल बा!!

©Indresh Dwivedi #अपनी_प्यारी_भोजपुरी में कविता
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Indresh Dwivedi

किसकी चंचल अदाओं ने सिहरा दिया
गंध पगली हवाओं ने बिखरा दिया 
इतना मदहोश मंजर ना देखा कभी
फूल ने जख्म पत्थर को गहरा दिया!!

©Indresh Dwivedi #HEART_BROKEN
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Indresh Dwivedi

भईया यार सीने में बहुत दर्द होता है
आप लोगो के सामने आने का अब मन नहीं होता है
छुपा लेता हूं देखकर आप लोगो को अपनी आंख का पानी पर
सच तो ये है कि आजकल आपका बाबू अकेले में खूब रोता है!

मम्मी यूं तो बहुत मजबूत हूं मैं पर आपके सामने कमजोर हो जाता हूं
लाख कोशिश करता हूं दिल को बहलाने की पर बहला नहीं पाता हूं
और सच कहूं तो ऐसा लगता है कि जैसे टूट गया हूं मैं
जो दुनिया को समझाया करता था मैं, आज खुद को ही समझा नही पाता हूं!

वैसे तो खुशनसीब हूं मैं कि इतना प्यारा परिवार पाया है 
मेरे दोस्तो ने भी हमेशा अपनी दोस्ती का फर्ज निभाया है
पर इस एक बदनुमा दाग को धो नहीं पा रहा हूं मैं
मैं भूल नहीं पा रहा हूं कि उस बेहया ने मुझे इतना बेबस बनाया है!!




कवि: इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)

©Indresh Dwivedi #बेवफा_बेशर्म_बेहया_है_वो
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Indresh Dwivedi

शाम तक सुबह की नजर से उतर जाते है
इतने समझौतों पे जीते है कि मर जाते है!

फिर वही तल्खी - ए - हालात मुकद्दर ठहरी
नशे कैसे भी हो कुछ दिन में उतर जाते है!!

इक जुदाई का लम्हा है जो गुजरता ही नहीं
और लोग कहते है कि वक्त सब गुजर जाते है!

घर की गिरती हुई दिवारे भी हैं मुझसे अच्छी
रास्ता चलते हुए लोग भी ठहर जाते है!!

हम तो बेनाम इरादों के मुसाफिर है "पंकज"
कुछ पता हो तो बताएं कि हम किधर जाते है!!

©Indresh Dwivedi
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