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ajaykumarmishra5522
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डॉ.अजय कुमार मिश्र

असिस्टेंट-प्रोफेसर । उत्तर-प्रदेश (डेस्क प्रभारी) क्रेडिट न्यूज़-मासिक न्यूज़ पत्रिका। सँयुक्त-मंत्री(सिद्धार्थ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ) वास्तु-सलाहकार(वास्तु-सदन) नई दिल्ली। मंडल-प्रभारी(गोरखपुर-बस्ती मंडल) केसरिया हिंदुस्थान निर्माण संघ।

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White सबसे न मिला करो,
 इतनी सादगी के साथ,
यह दौर अलग है ,
यहां लोग अलग हैं ,
 यह दुनिया वो नहीं है ,
जो आप देखते हो,
- 
अगर आप इस दुनिया में
 वफ़ा ढूँढ रहे हो तो, 
बड़े नादान हो क्योंकि,
आप ज़हर की शीशी में दवा ढूँढ रहे हो ।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र जहर में दवा

जहर में दवा #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

ताक़त,तारीफ़,तकदीर,तन्हाई और तजुर्बे इन्हें तौलना गुनाह है।।

गम,गहराई,गफलत,गुनाह,और गुगें जुबान पर हंसना गुनाह है।।

शर्म,शायराना,साज़िश,सजदा और सफर में भटके मुसाफिर पर उलाहना गुनाह है।।

वैसे भगवान,ईश्वर,अल्लाह, ईश,ईशा और वाहे गुरु में अंतर करना गुनाह है।।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र गुनाह

गुनाह #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White क्यों व्यर्थ गवाता मानव तन, झूठे अभिमान के महलों पर।।
बनना है तो पारस पत्थर बन, लोहे को स्वर्ण बना डालों।।
या कट - कट कर कोहिनूर बन,
दुनियां को चमक दिखा डालो।।
या बनना है तो गांधी बन, बिन सुख सुविधा के आधी बन।
या छोड़ महल के वैभव को,  गौतम बुद्ध जैसा ज्ञानी बन।।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र पत्थर

पत्थर #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White साहिल भी अब समंदर से दूर जाने लगा हैं।
जबसे सीपियां,मोतियों के भाव बिकने लगी हैं।
लहरों के लाख थपेड़े खाकर रेत वहीं के वहीं हैं।
लेकिन किनारे,कटान के डर से दूर जा खड़े हैं।
ज्वार और भाटा अब लहरों के साथ चलने लगे हैं।
ऐसा देख तूफान भी बीच मजधार में रुकने लगे हैं।
क्या करे अब ए बेचारा समंदर गर्जना कर के।
इसके अंक में अब सबके अरमान पलने लगे हैं।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र समंदर

समंदर #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

बंदिशे लग गईं, मेरी चलती दुकान पे।
जैसे दीपक बुझ गई,इशारों की बाण से।
कितनी खुद गर्ज थीं उनकी निगाहें।
जिनकी पलकों ने रोक लीं बहती हवाएं।
हम दवा भी दिए,हम दुआ भी किए।
पर एक पल भी टिकी नही उनकी निगाहें।
उनकी सांसों से सरपट दौड़ती हैं जैसे हवाएं।
वैसे काजल पर न टिकती कोई भी बलाएं।
जैसे कागज़ का खत दूर...दूर तलक जाए।
वैसे दूर तलक मेरा मन उनके पास खींचा जाए।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र दूर तलक

दूर तलक #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White लोकतंत्र का महापर्व।।
लोकानुराग अब जारी है।।
किसके हिस्से कितनी जनमत।।
किसकी कितनी भागीदारी है।।
कौन बनेगा जननायक।।
किसके हिस्से लिखी कहानी है।।
हम तो एक मतदाता हैं।।
पर सपने मेरे काफी हैं।।
उन सपनों को पूरा करने वाला।।
ना जाने कौन खिलाड़ी है।।
लोकतंत्र के महापर्व में एक एक मत।।
भारत को भूषित  करने में काफी है।।
चलो चलें मतदान करें,लोकतंत्र निर्माण करें।।
सबके सपनों को साकार करें।।
चलो अपने मत से नव युग का निर्माण करें।।
            !!जय हिंद!!

©डॉ.अजय कुमार मिश्र
  #election_2024
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डॉ.अजय कुमार मिश्र

White चेतना के चाहरदीवारी में नव चेतना की खोज कर,चेतन मन में मैने भी चेतना का संचार किया।।

चेतन पुरुष में अचेतन प्रकृति के मिलन से नित्य नव-नव चेतना का अनुराग मिला।।

कैसे कहें चेतन और अचेतन के संयोग से मिले आनंद को;क्योंकि मुझ जैसे चेतन में तुझ जैसे का अचेतन अनुराग मिला।।

जैसे चेतन मोती को अचेतन पराग मिला,वैसे अचेतन सागर को चेतन जीवों का संसार मिला।।

चलो आज तुम भी मन मय नदी के एक छोर पर बैठ कर चिंतन करो,कैसे चेतन को अचेतन का इतना सारा प्यार मिला।।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र चेतना

चेतना #भक्ति

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

जलते हुए चिराग़ का जलना, कुछ शेष अभी बाकी है।

सफर भी शेष है,लेकिन अंधेरा बहुत काफी है।

चिराग़ बुझ भी जाए तो क्या?,
हौसले का चिराग़ जलना अभी बाकी है।

अंधेरा चाहे जितना हो;तो क्या,?
अभी तो अरमानों का चिराग़  लना बाकी है।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र चिराग़

चिराग़ #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

उसने जीवन गुजार दिया तालाब में ठहरा हुआ पानी बनकर।
काश वह पुष्कर का जनक बन गया होता तलहटी में कीचड़ बनकर।
ना वह वाष्प बन कर धरा को सींच पाया गगन का मेघ  बनकर।
ना वह पराग ही बन पाया,कमल के पंखुड़ियों का रूह  बनकर।
उत्पल की टूटी पत्तियों को भी न सहेज सका मधुकर बनकर।
वो आज भी जिंदा है वहीं का वहीं कुछ मछलियों का चहेता बनकर।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र पानी

पानी #कविता

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डॉ.अजय कुमार मिश्र

शीतलता के तरुवर से गिरती तुषार की बुदों से।
भीग रही है धारा आज बिन प्राची दिशी की किरणों से ।।
नभचर,थलचर के कलरव बिन सुने सुने हैं दिग दिगंत।
जैसे तुषार के वृष्टि विरह का होना नही है शीघ्र अंत।।
है कांप रहा है समर वीर,भूधर की शिखर शिखाओं पर।
मानों तुषार हो बज्र बना हिमखंडों के प्राणों पर।।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र तुषार

तुषार #कविता

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