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saurabhjha2638
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Saurabh jha

तुमसे मिलकर ही सीखा मैनें शब्दों को छंदो में गढना।

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Saurabh jha

पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि कहीं कोई और इसी संशय में रुकी हुई है की लोग क्या कहेंगे, मेरे भी कुछ कर्त्तव्य हैं, और ये सब सोच-सोच कर अपने आपको कष्ट दे रही है, सबकुछ जानते हुए भी की  उसकी दुनियां कहीं और है जहां उसे असीमित प्रेम मिलेगा, अपने अनुरूप खुशी से जीने की वजह मिलेगी और वो सबकुछ कर सकेगी अपनी इच्छा से , सबकुछ करवा सकेगी अपने आदेश से बिल्कुल दबंग की तरह, जिसपर कोई रोक टोक नहीं होगी। पर वो बात ही नहीं मानती। लेकिन एक दिन मानेगी जरूर और तब अपनी इच्छानुसार निकल पड़ेगी अपनी नई सी, एक खूबसूरत दुनियां में।

©Saurabh jha
  #sunrisesunset
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Saurabh jha

कुछ ख्वाहिशें जिन्दगी में बेशक अधूरी रह गई 
एक तेरे मिलने से मुक्कमल सारा जहां मिल गया।

©Saurabh jha
  #IFPWriting
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Saurabh jha

जिन्दगी में कई बार ऐसा होता है की किसी खेल में बार-बार हारकर अन्त में ऐसा लगता है की मानो अब जीत भले ही ना हो, लेकिन अब इस खेल को छोड़कर पीछे नही हट सकता, भले ही दम निकल जाए, सांस रुक जाए लेकिन पीछे हटना तो सरासर गलत लगता है। हां, इस दौरान बहुत कुछ छूट जाता है, कितनी ही ख्वाहिशें दम तोड़कर चली जाती हैं। अगर कुछ रह जाती  है तो सिर्फ महत्वाकांक्षा और वो भी चलते रहने की , जीतने की। इस दृढ़संकल्प के साथ जब वाकई जीत मिल भी जाती है तो वो उन्माद खत्म हो जाता है जिसकी कभी कल्पना रही होती है। बस रह-रहकर आंखों से एक धार निकल आती हैं , खुशी की , एक सुकून की , एक आत्मविश्वास की और तब ये लगता है की भले कुछ बचा नही पाया इस संघर्ष के कारण, लेकिन एक दृढ़संकल्प अब भी जीवित है, एक आत्मविश्वास अब भी बचा है , क्योंकी पीछे मुड़कर देखने से अब लगता है की अब रास्ता भी कितना आसान है , बस चलते ही तो जाना है। और हां, डर की अब कोई गुंजाइश नहीं , क्योंकी, खोने के लिए अब कुछ बचा भी नहीं है । बस आखिरी सांस तक चलते जाना है।

©Saurabh jha
  #grey
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Saurabh jha

#OpenPoetry जज़्बात और जुनून की मिली-जुली कश्ती में
कब सपनो का शहर पीछे छूटा पता ही नहीं चला!
तुम आऐ थे मिलने दो पल के लिए ही सही
तह-ए-दिल में कब से बैठ गए पता ही नहीं चला!
अब ख्वाहिश के पीछे भागूं की तेरे करीब बैठूं
फटाफट दौड़ती जिन्दगी में कुछ पता ही नहीं चला!
कुछ कसीदे लिखे तुम पर कुछ शेर भी कहे 
 सिर्फ तेरे लिए ही क्यूं लिखता रहा पता ही नहीं चला!
 दुनियां के रंज-ओ-गम से दूर जाकर मैनें जब सोचा
 कमबख्त इसी को मोहब्बत कहते हैं अब पता चला!

©Saurabh jha
  #OpenPoetry
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Saurabh jha

#romanticmusic
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Saurabh jha

कुछ भी नहीं बचा तेरे चले जाने के बाद 
अल्फाजों ने भी मानो ख़ुदकुशी कर ली!

©Saurabh jha


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