मनोज रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भागता मुसाफ़िर जो उन करोड़ों लोगो की तरह उस भीड़ का हिस्सा था, जिनके न कोई सपने होते है न कोई पहचान ।
आगे की कहानी मनोज की ज़ुबानी …
आज मेरी बेटी का जन्मदिन था, वैसे उसका नाम ‘रिया’ रखा है मैंने समाज के लिए मगर मेरे लिए वो मेरी गुड़िया रानी थी यही बुलाता हूँ उसको… आज पाँच साल की हो चली है वो और आज सुबह ही उसने मुझे ज़िद की है कि उसे बैटरी से चलने वाली गाड़ी ही चाहिए,और कोई बहाना नहीं.. मैंने उसे वायदा तो कर दिया मगर बग़ैर जेब टटोले ।
सरपट दौड़ती बस,बाहर जुगनू से च