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Hema ;-;

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Hema ;-;

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Hema ;-;

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Hema ;-;

शुभ संध्या

शुभ संध्या

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Hema ;-;

#UnlockSecrets
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Hema ;-;

कुछ  उपर से लिख के  लाये
कुछ  इन जख्मों ने नक्शे बनाएं
भाग्य का खेल खेचे,माथे पर रेखाएं
किस का दोष, चढ़े किसके सर खताएं !!

दिल के  मुलायम काकज पर
 नज़्मे ,रोज यह  धड़कनें सुनाए
कितनी शिकायतें,कितनी इनायते
फैसले करें कौन, बनी ना एसी अदालतें

कभी भीगी सी पलकें
 सब हाले दिल के बताएं
कभी इक  आह! जो दबाये
तो  जुबां  भी  लड़खड़ाए
महफ़िल में तमाशा ना हो
ताउम्र नकाब ओढ़े निकल जाए।।

𝖍𝖊𝖊𝖒𝖆❤️

©Hema ;-; #directions
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Hema ;-;

दोँ बूँद जब  टपकी ,आँखे नम कर गयी
...दिल का बोझ था..थोडा कम कर  गयी..
   सहारे पलको ने दिये थे काफी  हद तक
   नकाब ओडे चहरा छुपाये  गम कब तक..
  कौशिशे बेजार,.चोट बरकरार.दर्द बार बार
  लबों पर बेवजह मुस्करहट,दिल  बेकरार.
  हर शख्स लिये फिरता यहां तमाशे का बाजार....
   

#हीमा दोँ बूँद जब  टपकी ,आँखे नम कर गयी
...दिल का बोझ था..थोडा कम कर  गयी..
   सहारे पलको ने दिये थे काफी  हद तक
   नकाब ओडे चहरा छुपाये  गम कब तक..
  कौशिशे बेजार,.चोट बरकरार.दर्द बार बार
  लबों पर बेवजह मुस्करहट,दिल  बेकरार.
  हर शख्स लिये फिरता यहां तमाशे का बाजार....

दोँ बूँद जब टपकी ,आँखे नम कर गयी ...दिल का बोझ था..थोडा कम कर गयी.. सहारे पलको ने दिये थे काफी हद तक नकाब ओडे चहरा छुपाये गम कब तक.. कौशिशे बेजार,.चोट बरकरार.दर्द बार बार लबों पर बेवजह मुस्करहट,दिल बेकरार. हर शख्स लिये फिरता यहां तमाशे का बाजार.... #हीमा

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Hema ;-;

वह खुद पे किये सितम कभी है नही भूलती  
   हैँ सँस्कार मे बँधी ,कर्तव्यों  से नही  चूकती 

  निभाती दिल से फिर भी   मिले रिश्तों मे खारापन
  गैरो मे डूँडती फिरे पहले दिन से ,स्नेह वे अपनापन

  सहमी सहती  चुपके ,किस्मत से मिला, रुखापन
 नासूर बनते जख्म  हिस्से आते खामोशी वे सूनापन.

मुस्कराये ऐसी की दोखा खा जाये उसके अपना दर्पण
प्रीत की रीत मे सब कुछ कर देती उस के नाम अर्पण
क्योंकि सदियों से  स्त्रियों  का भाग्य मेँ.. पूर्ण सर्मपण।। वह खुद पे किये सितम कभी है नही भूलती  
   हैँ सँस्कार मे बँधी ,कर्तव्यों  से नही  चूकती 

  निभाती दिल से फिर भी   मिले रिश्तों मे खारापन
  गैरो मे डूँडती फिरे पहले दिन से ,स्नेह वे अपनापन

  सहमी सहती  चुपके ,किस्मत से मिला, रुखापन
 नासूर बनते जख्म  हिस्से आते खामोशी वे सूनापन.

वह खुद पे किये सितम कभी है नही भूलती हैँ सँस्कार मे बँधी ,कर्तव्यों से नही चूकती निभाती दिल से फिर भी मिले रिश्तों मे खारापन गैरो मे डूँडती फिरे पहले दिन से ,स्नेह वे अपनापन सहमी सहती चुपके ,किस्मत से मिला, रुखापन नासूर बनते जख्म हिस्से आते खामोशी वे सूनापन.


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