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Sarfaraj idrishi
ज़ुल्म के सारे हुनर हम पर यूँ आज़माए गये ज़ुल्म भी सहा हमने और ज़ालिम भी कहलाये गये... ©Sarfaraj idrishi ज़ुल्म के सारे हुनर हम पर यूँ आज़माए गये ज़ुल्म भी सहा हमने और ज़ालिम भी कहलाये गये... Sethi Ji Taibur Rahman Khan -TRK cute animator Anupriy
ज़ुल्म के सारे हुनर हम पर यूँ आज़माए गये ज़ुल्म भी सहा हमने और ज़ालिम भी कहलाये गये... Sethi Ji Taibur Rahman Khan -TRK cute animator Anupriy
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जिंदगी की सख़तियों के दरमियान हर वह लम्हा हसीन है जिस में मोहब्बत का जवाब मोहब्बत से मिले. ©Sarfaraj idrishi #Love ज़ुल्म के सारे हुनर हम पर यूँ आज़माए गये ज़ुल्म भी सहा हमने और ज़ालिम भी कहलाये गये... life shayari in hindi Sethi Ji Taibur Rahman Khan
Love ज़ुल्म के सारे हुनर हम पर यूँ आज़माए गये ज़ुल्म भी सहा हमने और ज़ालिम भी कहलाये गये... life shayari in hindi Sethi Ji Taibur Rahman Khan
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष वर्ग नारी पर भारी , क्यों होता है करो विचार । निकल पड़ो हाथो में लेकर , घर से अपने आज कटार ।। बेटे भाई पति को अपने , दान करो अपने शृंगार । तुम जननी हो इस जग की .... कितनी बहनें कितनी बेटी , होंगी कब तक भला शिकार । चुप बैठी है सत्ता सारी , विवश हुआ है पालनहार ।। मन में अपने दीप जलाओ , नहीं मोम से जग उँजियार । तुम जननी हो इस जग की ..... छोड़ों चकला बेलन सारे , बढ़कर इन पर करो प्रहार । बहुत खिलाया बना-बना कर , इन्हें पौष्टिक तुम आहार ।। बन चंडी अब पहन गले में , इनको मुंडों का तू हार । तुम जननी हो इस जग की .... बन्द करो सभी भैय्या दूज , बन्द करो राखी त्यौहार । ये इसके हकदार नही है , आज त्याग दो इनका प्यार ।। जहाँ दिखे शैतान तुम्हें ये , वहीं निकालो तुम तलवार । तुम जननी हो इस जग की .... सिर्फ बेटियाँ जन्म लिए अब , सुतों का कर दो बहिष्कार । खो बैठें है यह सब सारे , बेटा होने का अधिकार ।। मिलकर जग से दूर करो यह , फैल रहा जो आज विकार । तुम जननी हो इस जग की .... तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
गीत :- तुम जननी हो इस जग की , रच लो एक नया संसार । क्यों घुट-घुट कर फिर जीती हो , क्यों सब सहती आत्याचार ।। तुम जननी हो इस जग की .... पुरुष
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