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Stories related to राबड़ी देवी जीवनी

khushboo subraj tiwari

जीवनी

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सफर-ए-जिंदगी के भी राह  सुहाने होते हैं,
यहाँ के भी रंग अंजाने होते हैं,
खुशियों की हरियाली, दुखों की भी छठा निराली होती है,
गिरने वाले लाल और गीर कर उठने वाले रौशनी के रंगों से रौशन उनकी जीवनी होती है
 ।।



 #NojotoQuote जीवनी

ranjan

जीवनी

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सोच रहा हूँ कि अपनी  जीवनी लिखूँ 
 ज़िससे आपको भी पता चले कि एक साधारण इंसान इतना महान आदमी कैसे बना . जीवनी

Pancham Oraon

चाइल्ड जीवनी

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BUNNY_GOSWAMI

आत्म जीवनी

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ए इस्क् तू इतना बेवफ़ा कैसे हो सकता है💫

तेरी इस अदा पर तो लाखों लोग फिदा है🍁💫

©BUNNY_GOSWAMI आत्म जीवनी

Akshay Tayde.

येणा तू जीवनी

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डोळ्यात तुझ्या स्वतःला बघतो साजणी ग मी डोळ्यात परी ओठावर तुझ्या कधी ग येणार मी

तुझ्यासाठी जीव  माझा हा रोजच मरतो
प्रेमासाठी जीव हा माझा क्षणोक्षणी झुरतो

चातकापरी अवस्था माझी झाली ग रमणी
वाट तुझी ग पाहतो आहे येणं तू जीवनी येणा तू जीवनी

amarendra srivastava

शेखर एक जीवनी #MeriChaupal

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V Gurjar

जीवनी की कलम ।। #standAlone

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ये जीवन बड़ा रंगीन बताया ।
न जाने कहाँ गए वो रंग जो देखे ही नही।।
अपनी जन्दगी के कुछ रंग उड़ गए ।
तो कुछ देखे ही नही ।।

कैसा बेरंग है जीवन, फिर भी जिंदगी बड़ी रंगीन है ।।

©V Gurjar जीवनी की कलम ।।

#standAlone

Krishna Deepa

टुकड़ों में में बंट गए हैं, दिन वो दिन घट रहे हैं 
तू ही बता जिंदगी हम कितने कम हो रहे हैं 
नहीं है बाप का साया, ना ही है मां की ममता 
औरों की क्या पूछे, हम तो घटते चले जा रहे हैं 
तू ही बता ए जिंदगी हम कितने कम होते जा रहे हैं 
भाई से है किचकीच बहनों से है पिचपिच, मेहमा हटते जा रहे हैं 
तू ही बता ए जिंदगी हम कितने घटते जा गए हैं 
इंसानियत की क्या पूछे इंसान मरते जा रहे हैं 
प्यार की कसौटी पर नफरत के फूल खिलते जा रहे हैं 
तू ही बता ए जिंदगी हम कितने घटते जा रहे हैं 
चिड़ियों का चहचहाना बच्चों की किलकारी, आज हो रही है भारी 
तू ही बता ए जिंदगी हम कितने कम होते जा रहे हैं 
पड़ोस के पड़ोसी, बगल की मौसी 
रिश्तो का दरकना, अपनों का भडकना 
प्यार के बदले पैसा और गैरों पर भरोसा दिन वो दिन बढ़ते जा रहे हैं 
तू ही बता ए जिंदगी हम कितने कम होते जा रहे हैं #जिंदगी #जीवनी #संसार #दुनिया

Rajendrakumar Shelke

धुंद जीवनी💐💐

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*धुंद जीवनी...!*
*****************

वेड्या मनाला
असे *वाटले,*
तुझ्याच साठी
जीवन *आले.*

आज कळीचे
फुल *उमलले,*
हिरव्या रानी
बहरत *गेले.*

निळ्या आकाशी
घेऊ *भरारी,*
प्रेमात मला
तू दे *ललकारी.*

सांज सकाळी
अवचित *येता,*
नाजूक पावले
हळू *टाकता.*
---–------–--
*✍️ राजेंद्रकुमार शेळके.*
--नारायणगाव, पुणे.

©Rajendrakumar Shelke धुंद जीवनी💐💐

शिव झा

24 जुलाई/बलिदान-दिवस
*नरसिंहगढ़ का शेर : कुंवर चैनसिंह*

भारत की स्वतन्त्रता के लिए किसी एक परिवार, दल या क्षेत्र विशेष के लोगों ने ही बलिदान नहीं दिये। देश के कोने-कोने में ऐसे अनेक ज्ञात-अज्ञात वीर हुए हैं,जिन्होंने अंग्रेजों से युद्ध में मृत्यु तो स्वीकार की; पर पीछे हटना या सिर झुकाना स्वीकार नहीं किया। ऐसे ही एक बलिदानी वीर थे मध्य प्रदेश की नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार कुँवर चैनसिंह।

व्यापार के नाम पर आये धूर्त अंग्रेजों ने जब छोटी रियासतों को हड़पना शुरू किया, तो इसके विरुद्ध अनेक स्थानों पर आवाज उठने लगी। राजा लोग समय-समय पर मिलकर इस खतरे पर विचार करते थे; पर ऐसे राजाओं को अंग्रेज और अधिक परेशान करते थे। उन्होंने हर राज्य में कुछ दरबारी खरीद लिये थे, जो उन्हें सब सूचना देते थे। नरसिंहगढ़ पर भी अंग्रेजों की गिद्ध दृष्टि थी। उन्होंने कुँवर चैनसिंह को उसे अंग्रेजों को सौंपने को कहा; पर चैनसिंह ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया।

अब अंग्रेजों ने आनन्दराव बख्शी और रूपराम वोहरा नामक दो मन्त्रियों को फोड़ लिया। एक बार इन्दौर के होल्कर राजा ने सब छोटे राजाओं की बैठक बुलाई। चैनसिंह भी उसमें गये थे। यह सूचना दोनों विश्वासघाती मन्त्रियों ने अंग्रेजों तक पहुँचा दी। उस समय जनरल मेंढाक ब्रिटिश शासन की ओर से राजनीतिक एजेण्ट नियुक्त था। उसने नाराज होकर चैनसिंह को सीहोर बुलाया। चैनसिंह अपने दो विश्वस्त साथियों हिम्मत खाँ और बहादुर खाँ के साथ उससे मिलने गये। ये दोनों सारंगपुर के पास ग्राम धनौरा निवासी सगे भाई थे। चलने से पूर्व चैनसिंह की माँ ने इन्हें राखी बाँधकर हर कीमत पर बेटे के साथ रहने की शपथ दिलायी। कुँवर का प्रिय कुत्ता शेरू भी साथ गया था।

जनरल मेंढाक चाहता था कि चैनसिंह पेंशन लेकर सपरिवार काशी रहें और राज्य में उत्पन्न होने वाली अफीम की आय पर अंग्रेजों का अधिकार रहे; पर वे किसी मूल्य पर इसके लिए तैयार नहीं हुए। इस प्रकार यह पहली भेंट निष्फल रही। कुछ दिन बाद जनरल मंेढाक ने चैनसिंह को सीहोर छावनी में बुलाया। इस बार उसने चैनसिंह और उनकी तलवारों की तारीफ करते हुए एक तलवार उनसे ले ली। इसके बाद उसने दूसरी तलवार की तारीफ करते हुए उसे भी लेना चाहा। चैनसिंह समझ गया कि जनरल उन्हें निःशस्त्र कर गिरफ्तार करना चाहता है। उन्होंने आव देखा न ताव,जनरल पर हमला कर दिया।

फिर क्या था, खुली लड़ाई होने लगी। जनरल तो तैयारी से आया था। पूरी सैनिक टुकड़ी उसके साथ थी; पर कुँवर चैनसिंह भी कम साहसी नहीं थे। उन्हें अपनी तलवार, परमेश्वर और माँ के आशीर्वाद पर अटल भरोसा था। दिये और तूफान के इस संग्राम में अनेक अंग्रेजों को यमलोक पहुँचा कर उन्होंने अपने दोनों साथियों तथा कुत्ते के साथ वीरगति पायी। यह घटना लोटनबाग, सीहोर छावनी में 24 जुलाई, 1824 को घटित हुई थी।

चैनसिंह के इस बलिदान की चर्चा घर-घर में फैल गयी। उन्हें अवतारी पुरुष मान कर आज भी ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है। घातक बीमारियों में लोग नरसिंहगढ़ के हारबाग में बनी इनकी समाधि पर आकर एक कंकड़ रखकर मनौती मानते हैं। इस प्रकार कुँवर चैनसिंह ने बलिदान देकर भारतीय स्वतन्त्रता के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा लिया। #इतिहास #जीवनी #कुंवर #महाराज 

#InspireThroughWriting
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