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Stories related to ऑफिस टेबल

s गोल्डी

सुनो फलानी 😐🤣 मै तुम्हारे लिए व्रत रखूंगी ❤️ ऐसा कहकर 🙄ऑफिस जाकर 😂 समोचा कचौडी खाने वालियों याद रखना इस बार

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सुनो फलानी 😐🤣

मै  तुम्हारे लिए  व्रत रखूंगी ❤️

 ऐसा कहकर 🙄Class जाकर 😂

 समोचा कचौडी खाने वालियों   याद रखना इस बार 

करवा चौथ #sunday को है🤣😂

सोचा बता दूं 🤧😂😂😂

©s गोल्डी सुनो फलानी 😐🤣

मै  तुम्हारे लिए  व्रत रखूंगी ❤️

 ऐसा कहकर 🙄ऑफिस जाकर 😂

 समोचा कचौडी खाने वालियों   याद रखना इस बार

Sawan Sharma

जब सवेरा हो, तो दिखे चेहरा तेरा तस्वीर में नहीं, अपने पास में तेरी आवाज़ जाए सबसे पहले कानो में जागू तो मिले उंगलियां तेरे बालो में उलझी हु

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White जब सवेरा हो, तो दिखे चेहरा तेरा
तस्वीर में नहीं, अपने पास में
तेरी आवाज़ जाए
सबसे पहले कानो में 
जागू तो मिले उंगलियां
तेरे बालो में उलझी हुई 
जिन्हें सहलाते हुए
रात मुझे नींद आ गई थी
जीवन की कुछ इच्छाओं में 
एक इच्छा ये भी है।

बाहर निकल कर कमरे से
तेरे हाथ की चाय मिले
चीनी हो उसमें थोड़ी 
थोड़ी प्रेम की मिठास हो
संवरने लगे जाने को ऑफिस 
मैं देखु तुझे संवरते हुए
दराज़ से निकाले तू झुमके
मैं पहना दु अपने हाथों से 
जीवन की कुछ इच्छाओं में 
एक इच्छा ये भी है।

मैं सारा दिन घर रहकर
प्रेम की किताबें लिखू
शाम को घर आते ही 
चाय तुझे तैयार मिले
थकान मिटाने दिन भर की 
घर आते ही गले लगे 
फ़िर हम दोनों साथ बैठकर 
वो प्यार से बनी चाय पीये
जीवन की कुछ इच्छाओं में 
एक इच्छा ये भी है।

©Sawan Sharma जब सवेरा हो, तो दिखे चेहरा तेरा
तस्वीर में नहीं, अपने पास में
तेरी आवाज़ जाए
सबसे पहले कानो में 
जागू तो मिले उंगलियां
तेरे बालो में उलझी हु

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल  मौत थीं सामने  ज़िन्दगी चुप रही  दर्द के दौर मैं  हर खुशी चुप रही   जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को  बंद आँखें  वही मुखबिरी चुप रही 

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White ग़ज़ल 
मौत थीं सामने  ज़िन्दगी चुप रही 
दर्द के दौर मैं  हर खुशी चुप रही 

 जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को 
बंद आँखें  वही मुखबिरी चुप रही 

दीन ईमान वो बेच खाते  रहे 
जिनके आगे मेरी बोलती चुप रही 

बोलियां जो बहुत बोलते थे यहाँ
उन पे कोयल की जादूगरी चुप रही

वो जो मरकर जियें या वो जीकर मरें
देखकर यह बुरी त्रासदी चुप रही ।।

बाढ़ में ढ़ह गये गाँव घर और पुल ।
और टेबल पे फ़ाइल पड़ी चुप रही ।।

देखकर ख़ार को हम भी खामोश थे ।
जो मिली थी प्रखर वो खुशी चुप रही ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 
ग़ज़ल 
मौत थीं सामने  ज़िन्दगी चुप रही 
दर्द के दौर मैं  हर खुशी चुप रही 

 जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को 
बंद आँखें  वही मुखबिरी चुप रही 
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