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Dr.Meet (मीत)
#poetryunplugged सफ़ीर 'रे' No Way #शून्य राणा **Dipa ** S katha(कथा ) mittal g. aligarh
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#love_shayari Sircastic Saurabh **Dipa ** S amit pandey katha(कथा ) सफ़ीर 'रे'
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Unsplash में पेड़ का पत्ता हूं तो तुम जड़ जैसी हो। तुम नहीं तो में भी नहीं ©Dr.Meet (मीत) #leafbook **Dipa ** S ( Sirf .Tum ). nayan सफ़ीर 'रे' {**श्री.. राधा ..**} Sircastic Saurabh
#leafbook **Dipa ** S ( Sirf .Tum ). nayan सफ़ीर 'रे' {**श्री.. राधा ..**} Sircastic Saurabh
read more#काव्यार्पण
White अंधेरी रात है और चांद निकल आया है ये मेरी जुल्फ है या फिर किसी का साया है। तू मेरे दिल से गया है निकल के जिस दिन से मैने तेरे जैसा एक आईना बनाया है। छोड़ कर जाते भी हैं फिर वहीं आ जाते हैं आपने भूलभुलैया सा दिल बनाया है। वो कौन था जो मेरे सामने खड़ा था अभी ये कौन है कि जिसने सीने से लगाया है। ताज़्जुब है कि ये मुझ पर असर नहीं करता ये तुमने दर्द भरा शेर जो सुनाया है। हवस बिलखती थी दिन रात मेरे कदमों में मैंने इक आदमी को देवता बनाया है। ये दिल है उसका और वो किसी की बांहों में वो अपना है या फिर कहूं कि वो पराया है । अलग रुआब से वो आज मिला था हमसे पता चला वो किसी जिस्म से नहाया है। अभी अभी खबर मिली थी मेरे मरने की वो इतना खुश है कि अखबार बेंच आया है। नमाज उसने पढ़ी थी अभी मेरे हक में ना जाने कौन बुत में जान फूंक आया है। बोझ क्या जानेंगे मेरा ये जमाने वाले लाश को अपनी मैंने कंधों पर उठाया है। रख के मुस्कान अपने होंठों पे मैंने 'प्रज्ञा अपने दूल्हे को किसी के लिए सजाया है। ©#काव्यार्पण #love_shayari Er Aryan Tiwari Kumar Shaurya सफ़ीर 'रे' Sircastic Saurabh Yash Mehta शिवम् सिंह भूमि
#love_shayari Er Aryan Tiwari Kumar Shaurya सफ़ीर 'रे' Sircastic Saurabh Yash Mehta शिवम् सिंह भूमि
read moreSinger Chandradeep Lal Yadav
गांव रे Actor singer writer Chandradeep lal Yadav and Sanjay vish
read moreसचिन सारस्वत
#thelakecity Sircastic Saurabh करम गोरखपुरिया प्रशांत की डायरी Kumar Shaurya सफ़ीर 'रे'
read moreगोरक्ष अशोक उंबरकर
White माणूस मेल्यावर शरीराचं दर्शन घेऊन अंघोळ करतो.. निष्पाप जीवाला खाताना अंगा मांसांचं रक्त पितो.. प्रत्येक दगड मंदिरात जाऊन देव बनून जातो.. माणूस मंदिरात जाऊन सुध्धा दगड बनून राहतो.. ज्या मासिक पाळीमुळे जन्म माणसाचा होतो.. तिलाच आयुष्यभर समाज विटाळ म्हणत राहतो.. माझं माझं म्हणत सगळं भ्रमात जगत राहतो.. सगळं काही इथेच सोडून एकटाच सोडून जातो.. ©गोरक्ष अशोक उंबरकर वाह रे माणसा..
वाह रे माणसा..
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