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gudiya
पृथ्वी पृथ्वी तुम घूमती हो तो घूमती चली जाती हो अपने केंद्र पर घूमने के साथ ही एक और केंद्र के चारों ओर घूमते हुए लगातार क्या तुम्हें चक्कर नहीं आते अपने आधे हिस्से में अंधेरा और आधे में उजाला लिए रात को दिन और दिन को रात करते कभी-कभी कांपती हो तो लगता है नष्ट कर दोगी अपना सारा घर बार अपनी गृहस्थी के पेड़ पर्वत शहर नदी गांव टीले सभी कुछ को नष्ट कर दोगी पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो तुम्हारी सतह पर कितना जल है तुम्हारी सतह के नीचे भी जल ही है लेकिन तुम्हारे गर्भ में गर्भ के केंद्र में तो अग्नि है सिर्फ अग्नि पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो कितने ताप कितने दबाव और कितनी आद्रता अपने कोयलों को हीरो में बदल देती हो किन प्रक्रियाओं से गुजर कर कितने चुपचाप रतन से ज्यादा रतन के रहस्य से भरा है तुम्हारा ह्रदय पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो तुम घूमती हो तो घूमती चली जाती हो -नरेश सक्सेना ©gudiya #NatureLove पृथ्वी पृथ्वी तुम घूमती हो तो घूमती चली जाती हो अपने केंद्र पर घूमने के साथ ही एक और केंद्र के चारों ओर घूमते हुए लगातार
#NatureLove पृथ्वी पृथ्वी तुम घूमती हो तो घूमती चली जाती हो अपने केंद्र पर घूमने के साथ ही एक और केंद्र के चारों ओर घूमते हुए लगातार
read moreबेजुबान शायर shivkumar
मेरे लिए मेरे मन का पुष्प भी तुम मेरे लिए मेरे जीवन का हर त्यौहार भी तुम नवंबर की सी शाम भी तुम दिसंबर की सौंधी धूप भी तुम बारिश की बूंद भी तुम बसंत की महक भी तुम पतझड़ में नारंगी पड़ता बाग भी तुम बरसात में हरियाली से भरता कोई चारागाह भी तुम पहाड़ों की सुबह भी तुम समंदर किनारे की हवा भी तुम कहीं सुकून से बैठे हुए मेरा कोई विचार भी तुम रात को आसमान में गिनता हुआ तारा भी तुम मेरी आधी किस्मत को पूरा करने का सहारा भी तुम मेरे बालों को सहलाने वाले हाथ भी तुम मुझे पुकारने वाली आवाज भी तुम तुम शायद सब हो मेरे जीवन में मुझे मिल के पूरा कर जाने वाले ख्वाब भी तुम .. ©बेजुबान शायर shivkumar मेरे लिए मेरे मन का #पुष्प भी तुम मेरे लिए मेरे #जीवन का हर #त्यौहार भी तुम नवंबर की सी #शाम भी तुम दिसंबर की सौंधी #धूप भी तुम #
ਸੀਰਿਯਸ jatt
रंडिया निकलती है gurugram में रात को Gurugram की कितनी लड़कियाँ चोदी है तुम्हारे भाई ने!
read moreRimpi chaube
समझ आई तो बच्चे कैसे भूल गए उस बात को। मैले कपड़े पहने माता–पिता,कितना कष्ट उठाएं दिन–रात को। जीवन जिन्होंने दांव लगाया,बच्चों के पालन पोषण पर, आज वही बच्चे नहीं समझते,अपने माता–पिता के जज्बात को।। ©Rimpi chaube #मातापिता 😊 समझ आई तो बच्चे कैसे भूल गए उस बात को। मैले कपड़े पहने माता–पिता,कितना कष्ट उठाएं दिन–रात को। जीवन जिन्होंने दांव लगाया,बच्चों क
#मातापिता 😊 समझ आई तो बच्चे कैसे भूल गए उस बात को। मैले कपड़े पहने माता–पिता,कितना कष्ट उठाएं दिन–रात को। जीवन जिन्होंने दांव लगाया,बच्चों क
read moreParasram Arora
White वो रात अकेली ही बिस्तर पर पढ़ी पढ़ी अपनी तन्हाई पर आंसू बहा कर सिसकती रहीं और मैं दूर खड़ा उसकी तन्हाई और उसके आंसुओ को पीता रहा ©Parasram Arora अकेली रात
अकेली रात
read moreहिमांशु Kulshreshtha
White कल रात तुम जो आयीं मेरे ख्वाबों में एक ख़ुशनुमा अहसास हुआ जैसे तारों का झुंड उतर आया है मेरे आंगन में मैने समेट लिया उनकी चमक, उनकी महक को अपने आगोश में समेट लिया वज़ूद उनका उनकी खुश्बू को अपनी रूह में…..!!!! ©हिमांशु Kulshreshtha कल रात...
कल रात...
read moreJayesh gulati
White A appreciation post for my best friend (read in caption) ©Jayesh gulati कुछ यादें है जो कभी दिल से निकाल नहीं सकता मना खामोश रहते है अब हम दोनों मगर तेरा भाई तुझे भुला नहीं सकता आधी रात को भी तू करदे कॉल तेरा भाई
कुछ यादें है जो कभी दिल से निकाल नहीं सकता मना खामोश रहते है अब हम दोनों मगर तेरा भाई तुझे भुला नहीं सकता आधी रात को भी तू करदे कॉल तेरा भाई
read moreSarfaraj idrishi
रात को जानबूझकर रखता हूँ दरवाज़ा खुला.. शायद कोई लुटेरा मेरा गम भी लूट ले. ©Sarfaraj idrishi #Darknight रात को जानबूझकर रखता हूँ दरवाज़ा खुला.. शायद कोई लुटेरा मेरा गम भी लूट ले. life quotes in hindi Sushant Singh Rajput sad shayari
#Darknight रात को जानबूझकर रखता हूँ दरवाज़ा खुला.. शायद कोई लुटेरा मेरा गम भी लूट ले. life quotes in hindi Sushant Singh Rajput sad shayari
read moreChandrawati Murlidhar Gaur Sharma
White आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे साझा कर दूं, क्योंकि हो सकता है कि आपने भी ऐसा किया हो। जब हम बचपन में अंधेरे से डरते थे, और हमें रात को किसी काम से बाहर भेजा जाता था, या फिर किसी पड़ोसी के घर पर खेलते-खेलते देर हो जाती थी और अंधेरा छा जाने के कारण डर लगने लगता था, लेकिन घर भी तो जाना था। तो हम अपने ताऊजी, मां, काकी, या दादी से कहते थे कि "घर छोड़ कर आ जाओ।" और वे कहते, "हां, चलो छोड़ आते हैं।" जब घर का मोड़ आता तो वे कहते, "अब चल जा," लेकिन डर तो लग रहा होता था। तो हम कहते, "आप यहीं रुकना," और वे बोलते, "मैं यहीं हूँ, तेरा नाम बोलते रहूंगा।" जब तक वे हमारा नाम लेते रहते थे और जब तक हम घर नहीं पहुंच जाते थे, हमें यह विश्वास होता था कि वे हमारे साथ ही हैं, भले ही वे घर लौट चुके होते। लेकिन जब तक हमारा दरवाजा नहीं खुलता था, तब तक डर लगता था कि कोई हमें पीछे से पकड़ न ले। और जैसे ही दरवाज़ा खुलता, हम फटाफट घर के अंदर भाग जाते थे। फिर, जब घर के अंधेरे में चबूतरे से पानी लाने के लिए कहा जाता था, तो हम बच्चों में डर के कारण यह कहते, "नहीं, पहले तू जा, पहले तू जा।" एक-दूसरे को "डरपोक" भी कहते थे, लेकिन सभी डरते थे। पर जाना तो उसी को होता था, जिसे मम्मी-पापा कहते थे। वह डर के मारे कहता, "आप चलो मेरे साथ," और वे कहते, "नहीं, तुम जाओ, तुम तो मेरे बहादुर बच्चे हो। मैं तुम्हारा नाम पुकारूंगा।" और फिर जब वह पानी लेकर आता, तो वे कहते, "देखो, डर नहीं लगा न?" लेकिन सच कहूं तो डर जरूर लगता था। पर यही ट्रिक हम दूसरे पर आजमाते थे। आज देखो, हम और हमारे बच्चे क्या डरेंगे, वे तो डर को ही डरा देंगे! 😂 बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं, कुछ को फालतू भी लग सकती हैं, लेकिन हमारे बचपन में हर घर में हर बच्चे के साथ यही होता था। अब आपकी प्रतिक्रिया देने की बारी है। क्या आपके साथ भी यही हुआ ChatGPT can make ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे
कैप्शन में पढ़े 🤳 आज़ मैंने एक बच्चे को बाहर जाते हुए और पीछे मुड़-मुड़ कर देखते हुए देखा, तो मुझे अपने बचपन की बात याद आई। मैंने सोचा, इसे
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